दूसरों को शिक्षा देते समय, काव्य का वर्णन करते समय मंच पर वक्तव्य देते समय सभी शिष्ट होते हैं और होना भी चाहिए अन्यथा उसे तुरंत ही अपमान का सामना करना पड सकता है। तथा बिना शिष्टता के शिष्ट काव्यों की रचना ही नहीं हो सकती और पाठक के लिए वह रसहीन हो जाएगी।
इंसान को शिष्ट होना ही चाहिए किन्तु शिष्टता का ढोंग करना किसी अहंकार से कम नहीं। क्योंकि ढोंगी वैचारिक वाला इंसान सामने वाले को अशिष्टता की श्रेणी में रखकर अपने को निर्मल और शिष्टाचारी घोषित करने की कोशिश करता है। अहंकारी नहीं तो क्या है? जो अपनी विचारधारा दूसरों पर थोपना लाजिमी समझता है और सामने वाले के विचार को अपनी सहमति नहीं दे सकता।
ऐसे इंसान कहते हैं कि हमारी सामाजिक दशा बिखर गयी है, हम आपस में टूट चुके हैं। यही इनका ढोंग है क्योंकि अपने बीच का कोई भी आदमी इनसे किसी भी सामजिक कार्य में शामिल होने हेतु आग्रह करे तो इसके प्रत्युत्तर को सुनकर उसका हमेशा के लिए दिल बैठ जायेगा और वह अपने आप को कोसेगा कि मैंने इनसे यह बात क्यों कही। जबकि जवाब मुझे मालुम था। ये बहुचर्चित व्यक्ति होते हैं। ये अपने अलावा किसी की भी नहीं सुनते। ये दूसरों के द्वार में छुट-पुट कचरे को देख उस घर वाले को अनाप-शनाप सुनाने में कोई कसर न छोड़ेंगे और अपने दरवाजे पर कचरे का ढेर लगा रखेंगे। यदि कोई जरा सा बोल दे तो उसकी नानी याद दिला देंगे। यह उनका अहंकार नहीं तो क्या है?
ये बड़े विशिष्ट होते हैं। यदि इनका काम दूसरों से पड़ जाये तो मक्खन-पालिश शुरू! चाहे जैसे भी बने, जो भी वादा करना पड़े, सब स्वीकार। सामने वाला न भी चाहे इनकी मदद करना तो भी इनके गिड़गिड़ाहट को देखकर इनके लल्लो-चप्पो की बातों में उसका दिल पिघल ही जायेया क्योंकि सामने वाला उसके जैसा पत्थर दिल नहीं होता है। यह कब तक? काम न सरक जाय तब तक। फिर तो वही होता है मतलब निकल गया पहचाने नहीं।
इतना ही नहीं, ये समाज को सुधारने की दुहाई भी देते हैं और अपने को भी सुधारने की बात कहते हैं किन्तु दुःख की बात तो यह है कि ये कहते हैं अपनी त्रुटि हम देख नहीं सकते। बड़े आश्चर्य की बात है आप दूसरे के परामर्श को प्राथमिकता दे नहीं सकते। और अपनी त्रुटि को समझ नहीं सकते। यह समाज सुधारक बनने का ढोंग नहीं तो क्या है? यही है इनका अहंकार। न स्वयं कुछ करो न किसी को करने दो। किन्तु इन्हें इतना भी नहीं मालूम कि इनके रोकने से किसी समाज की विकासगति रुक नहीं सकती।
माना कि इन्हें अपनी त्रुटि दिखाई नहीं देती किन्तु क्या यह भी नहीं दिकता कि कोई हमारा उपकार किया है। तुम पर किसी का एहसान है यह भी नहीं दिखता।किसी से किया हुआ वादा भी नहीं ख्याल रहता। वादा नहीं निभाया कोई बात नहीं परन्तु एहसान के बदले कभी धन्यवाद देकर भी हिसाब चुकता कर देता। अपने रहने के लिए सुंदर सा घर बनवाया। डबल मंजिल का छत के बॉर्डर को रोलिंग लगाकर आकर्षक बनाया, फर्श को टाइटल्स से सजाया। विविध वर्णों से पुताई कर सबसे अच्छा बनाने के धुन में 12-15 लाख खर्च कर दिए। अपने घर की कीमत 5 या 6 लाख बताने से किसी का भला होने वाला हो तब आप अपने घर की कीमत एक लाख बताते हैं और यह कहते हैं कि हमें अपनी त्रुटि दिखाई नहीं देती। जान-बूझकर गलत करने वाला ये कहे कि हमें अपनी त्रुटि दिखाई नहीं देती, यही है अहंकार।
यह सच है कि अहंकार या अभिमान हरेक इंसान में होता है किन्तु ये जो दूसरों को स्वार्थी कहते हैं। इन्हें केवल दूसरों का छिद्र दिखाई देता है। एक बार किसी ने अजमाइस में इनसे कह ही डाला कि-“ चला हो चली आज समाज की बैठक लगी है।“ यह सुनते ही इनकी त्योरी चढ़ गयी और रूखे स्वर में बोल पड़े-“ क्यों जांय हम बैठक में, समाज हमें क्या दे देता है?” जरा सोचने की बात है कि इन्होंने आज तक समाज को क्या दिया? यही बात समझ से परे हो जाता है। जिसने आज तक समाज को गली देने देने के अलावा कुछ नहीं दिया वे समाज को सुधारने की बात क्यों करने लगे। जिन्हें केवल दूसरों का छिद्र ही दिखाई देता है। यही है इनका अहंकार और ढोंग।
मेरे भाई इतना अहंकारी मत बनो, जो कहो और जो लिखो उसमें दिखावा मत करो। कथनी और करनी को एक रखो। यदि समाज की सेवा करनी हैतो भाव को निश्छल करो। दूसरों की बुराई करके समाज में सुधार नहीं लाया जा सकता। समाज को कुछ देने के बाद ही कुछ लेने की आश रखो। नहीं ऐसे ही बुराई करते दिन निकल जायेंगे न तुम समाज को पहचान पाओगे न तुम्हें समाज।
रचनाकार:राम सहोदर पटेल,एम.ए.(हिन्दी,इतिहास)
स.शिक्षक, शासकीय हाई स्कूल नगनौड़ी
गृह निवास-सनौसी, थाना-ब्योहारी जिला शहडोल(मध्यप्रदेश)
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