चलो एक खत लिखें,
उनके नाम
जो मेरे अपने थे
बिछड़ गये जीवन के सफर में,
कोई था ऐसा
आपके भी जीवन में,
ज़ब नन्हा सा था
कोई भी उठा लेता था गोद में,
मेरे रोने की आवज पर सब चले आते
गोद में उठा कर चुप करा जाते,
अब रोता हूँ तो तन्हाई में,
डरता हूँ कोई देख न ले,
पर चाहत तो है,
सब चले आएं मेरे अपने,
और चुप करा जाएं
जब हुआ खेलने लायक,
सब चले आते थे बेरोकटोक
खेलते थे, लड़ते थे,
रूठकर चले जाते थे
कभी न आने की कस्में खाते थे
फिर चले आते
अब तो हर कोई रूठ गया
कभी न आने की कसमें खा गया हर कोई,
दोस्त भी बनते हैं मतलब से
तरस गये हैं सच्चे दोस्तों को,
फिर चलने लगे स्कूल
न होम वर्क की चिंता,
न स्कुल जाने की चिंता
बस सर की बेंत का डर
बेंत ने वहाँ पंहुचा दिया
जो कल्पना से परे था
आज भी वो हमारे प्रिय शिक्षक हैं
जो दुश्मन हुआ करते थे
अब तो दूसरों की सीख से भी डर लगता है
कहीं मतलब न हो कहीं
फिर खो गये किसी के इश्क में
क्या वो एकतरफा तो नहीं था
समय बदलता गया
आ गया वह दौर
जहाँ लग गया हूँ आपाधापी में
बीवी के साथ बच्चों की परवरिश में,
पर छूट गये हैं
कुछ सच्चे से, कुछ अपने से
जब याद करता हूँ इन्हे
बस तन्हा पाता हूँ
सोचता हूँ पत्र लिखूँ इन्हे
पर डरता हूँ
खुद से, अपने अहम से,
कहीं चोट ना लग जाये इसको
और चुपचाप जीता हूँ ख़ामोशी से।
उनके नाम
जो मेरे अपने थे
बिछड़ गये जीवन के सफर में,
कोई था ऐसा
आपके भी जीवन में,
ज़ब नन्हा सा था
कोई भी उठा लेता था गोद में,
मेरे रोने की आवज पर सब चले आते
गोद में उठा कर चुप करा जाते,
अब रोता हूँ तो तन्हाई में,
डरता हूँ कोई देख न ले,
पर चाहत तो है,
सब चले आएं मेरे अपने,
और चुप करा जाएं
जब हुआ खेलने लायक,
सब चले आते थे बेरोकटोक
खेलते थे, लड़ते थे,
रूठकर चले जाते थे
कभी न आने की कस्में खाते थे
फिर चले आते
अब तो हर कोई रूठ गया
कभी न आने की कसमें खा गया हर कोई,
दोस्त भी बनते हैं मतलब से
तरस गये हैं सच्चे दोस्तों को,
फिर चलने लगे स्कूल
न होम वर्क की चिंता,
न स्कुल जाने की चिंता
बस सर की बेंत का डर
बेंत ने वहाँ पंहुचा दिया
जो कल्पना से परे था
आज भी वो हमारे प्रिय शिक्षक हैं
जो दुश्मन हुआ करते थे
अब तो दूसरों की सीख से भी डर लगता है
कहीं मतलब न हो कहीं
फिर खो गये किसी के इश्क में
क्या वो एकतरफा तो नहीं था
समय बदलता गया
आ गया वह दौर
जहाँ लग गया हूँ आपाधापी में
बीवी के साथ बच्चों की परवरिश में,
पर छूट गये हैं
कुछ सच्चे से, कुछ अपने से
जब याद करता हूँ इन्हे
बस तन्हा पाता हूँ
सोचता हूँ पत्र लिखूँ इन्हे
पर डरता हूँ
खुद से, अपने अहम से,
कहीं चोट ना लग जाये इसको
और चुपचाप जीता हूँ ख़ामोशी से।
रचनाकार:एफ. शिव
उत्कृष्ट विद्यालय कटंगी
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