गुरुवार, अप्रैल 02, 2020

ओले गिरे-सिर किसका फूटा:सुरेन्द्र कुमार पटेल


किसी ने कहा जोर से,
किसी ने कहा बिना शोर के।

प्रकृति का कहर,
हर गांव, हर शहर।

नहीं करता कोई भेदभाव,
न अमीर से लगाव, न गरीब से दुराव।

मैंने देखा और धीरे से मुस्कुराया,
यह तो बता प्रकृति को किसने उकसाया।

उसने, जिसने भूख-रस के सिवा कुछ नहीं चखा,
या उसने जिसके कारण धरती में रस ही नहीं बचा।

पूजते थे जो गोवर्धन, उसे किसने उखाड़े, 
तोड़-तोड़ पत्थर किसने बनाए अपने बाड़े?

किसने बदली है जरूरत की परिभाषा, 
किसने नहीं समझी प्रकृति की मूक भाषा।

उसने, जिसका छत अभी भी नीला आसमान है,
या उसने, जिसे अपने छत होने का गुमान है।

अपने हित साधन हेतु पंख प्रकृति के किसने काटे,
जल, जंगल और जमीन में विष किसने बांटे?

प्रकृति से नित्यप्रति कौन खेल रहा है, 
किसकी जीवन शैली का प्रकृति से न मेल रहा है?

किसने मानवता का मूल्य नहीं आंका, 
किसने मानवता ऊपर स्वार्थ को नापा।

शक्ति मात्र का जिसको अहं है।
प्रकृति पर विजय का जिसे वहम है।

यह दर्पण प्रकृति दिखलाने आई है,
जीवमात्र का पाठ पढ़ाने आई है।

फिर भी कीमत वही अधिक चुकाता है, 
प्रकृतिदंड का भागी वही अधिक हो जाता है।

ओले गिरे भले प्रकृति से एक समान,
कैसे शीष बचेगा जिसका छत है आसमान।

पड़ जाए यदि सूखा तो भर नहीं पाता कूप,
पर क्या कभी सुना है, प्यासा मरता है भूप?

बाढ़ प्रकोप प्रकृति ही देती है,
पर सिंहासन वालों का क्या हर लेती है?

जिसने अपने हित आगे रख साधन जुटलाए,
जिसने अपने हित सम्मुख प्रकृति को झुठलाए।

जिसके केवल कथनी में ही समरसता है, 
प्रकृतिदण्ड में भी प्राप्त उसे अमरता है।

उसके जीवन में नहीं कोई पगबाधा, न नाले,
विपदा कैसी भी हो कब पड़ते उनके पांवों में छाले?

इसीलिए मार प्रकृति की हो या हो राजा की,
क्षति होती है तो केवल गरीब प्रजा की।
-सुरेन्द्र कुमार पटेल 

तनावमुक्त जीवन कैसे जियें?

तनावमुक्त जीवन कैसेजियें? तनावमुक्त जीवन आज हर किसी का सपना बनकर रह गया है. आज हर कोई अपने जीवन का ऐसा विकास चाहता है जिसमें उसे कम से कम ...