बेटे की पढ़ाई
सुसैनी नामक गांव में एक गरीब किसान संतू रहता था। उसका एक ही बेटा हितेश था। संतू और उसकी पत्नी श्रुतिया खेत में कठिन परिश्रम करके अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। उन्होंने किसी प्रकार अपने बेटे को गांव के ही स्कूल में बारहवीं तक की पढ़ाई पूरी करवाई ।
संतू और उसकी पत्नी की कोशिश थी कि हितेश उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए शहर के कालेजों में एडमिशन ले। हितेश भी पढ़ने में बहुत होशियार था। तभी तो उसने बारहवीं की परीक्षा 88% अंकों के साथ उत्तीर्ण की थी।
संतू ने कुछ पैसों का इंतजाम करके बेटे को शहर के डिग्री कॉलेज में प्रवेश करवा दिया।
सब ठीक चल रहा था कि अचानक श्रुतिया की तबीयत बिगड़ी और कुछ दिनों बाद वह चल बसी। अब संतू घर में अकेला हो गया, घर की स्थति बिगड़ने लगी। संतू को चिंता सताने लगी कि बेटे की पढ़ाई कैसे पूरी होगी? और हितेश भी चिंतित रहता कि पिता जी की देखभाल कैसे करूं, कभी-कभी तो पढ़ाई को बीच में ही छोड़ने का विचार आने लगा।
कुछ दिनों बाद संतू की आंख में दिखने की समस्या होने लगी तो हितेश ने शहर के अस्पताल में पिता जी की आंखों का आपरेशन भी करवा दिया। आंखों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए डाक्टर ने खेत में काम करने के लिए संतू को मना कर दिया।
अब संतू घर में अकेला रहता था। उसके चचेरे भाई की नजर संतू के खेत को हडपनें में थी, वह जब भी आता तो यही कहता भाई खेत को बेंच दो और पैसे लेकर बेटे के पास शहर चले जाओ।पर संतू खेत बेचने के लिए राजी नहीं हुआ।
अगले साल बारिश भी नहीं हुई और कुआं भी सूख गया था। संतू परेशान होकर बेटे के लिए चिट्ठी लिखवाया और कहा कि बेटा कुछ दिनों के लिए घर आ जाओ और कुएं को गहरा करवा दो।
हितेश चिट्ठी पढ़कर हैरान हो गया और सोचने लगा कि क्या करूं, घर चला जाऊंगा तो परीक्षा की तैयारी में विपरीत असर होगा। उसे एक उपाय सूझी, उसने चिट्ठी में लिखा कि पिताजी कुएं में मां ने दादी द्वारा दी गई सोने की मोहरें छिपाई थी। इसलिए कुएं में किसी को न घुसने देना। मैं जब आऊंगा तभी खुदाई शुरू करेंगे।
हितेश की चिट्ठी संतू को मिली तो अपने चचेरे भाई के पास जाकर बोला कि इसे पढ़कर सुनाओ।
चचेरे भाई ने चिट्ठी में लिखे शब्दों को बदलकर पढ़ दिया।
लेकिन उसके मन में मोहरें प्राप्त करने की इच्छा जागृत हो गई। वह रात को अपने बीबी-बच्चों के साथ रात भर कुएं की खुदाई करता। इससे मोहरें तो नहीं मिलीं लेकिन कुआं में पानी जरूर भर गया।
चचेरा भाई परेशान हो गया और वापस चला गया।
संतू सुबह उठकर देखा तो आश्चर्य चकित हो गया। पानी की समस्या खत्म हो गई थी। पढे-लिखे बेटे की चतुराई से।
कुछ दिनों बाद हितेश की पढ़ाई पूरी हो गई और वह वापस गांव आ गया। गांव में ग्राम सचिव के पद पर नौकरी भी मिल गई। और अगले साल विवाह हो गया।
अब संतू बेटे-बहू के साथ सुखद जीवन जीने लगा। लेकिन बेटे की पढ़ाई के दौरान आए मुसीबतों को याद करते हुए आंसू टपकने से नहीं रोक पाता।
संदेश- लाख मुसीबतों का सामना करते हुए भी बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाएं और बच्चों को भी मुसीबतों का सामना करते हुए अपनी पढ़ाई पूरी करनी चाहिए।अधूरी पढ़ाई किसी काम की नहीं होती।
धर्मेंद्र कुमार पटेल
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