ये कैसी तेरी दुनिया
एक गाॅंव था। वहाॅं एक बूढ़ी औरत रहती थी। उम्र यही कोई 80 बरष। नाम था जलेबी। प्यार से गाॅंव वाले दादी कहकर पुकारते थे। उसका कोई सहारा नहीं था। एक रात की बात है वह अपनी झोपड़ी में सो रही थी। मध्यरात्रि को आसमान मे घनघोर घटा छा गई। अचानक से तेज बिजली कड़कने लगी और बादल जोर-जोर से गरजने लगे। अचानक से आवाज सुनकर दादी की नींद खुल गई और वह बहुत डर गई। झोपड़ी के छोटे से रोशनदान से बाहर झाॅंककर देखा तो घोर अंधेरी रातमें बिजली चमक रही थी। बादल गरज रहे थे और देखते ही देखते तेज बारिश होने लगी। बारिश भी ऐसी, मानो बादल फट गए हों और सब कुछ प्रलय कर देना चाह रहे हों।
दादी की झोपड़ी से पानी अंदर टप-टप टपकने लगा। दादी कभी इधर तो कभी उधर जाती। बहुत सिकुड़ती, पानी से बचने का प्रयास करती लेकिन बारिश भी आज कहाॅं मानने वाली थी। दादी पूर्णतः भींग गई और ठंड से कांपने लगी। उसका बिस्तर, अनाज आदि भींग गए। दादी की आंखों से अश्रुधारा बहने लगी। वह मन ही मन सोचने लगी-वाह!रे भगवान, तेरा खेल भी अजब निराला है किसी गरीब को झोपड़ी में रहने की मजबूरी तो किसी को राजमहल में रहने वाला बना दिया। तूने अच्छी खाईं बनाई। किसी को दो वक्त की रोटी नसीब नही तो कोई छप्पन भोग लगाता है। और तो और, मन्दिर में तेरे छप्पन भोग लगते हैं और बाहर तेरे चौखट में बैठा हुआ व्यक्ति टुकुर-टुकुर निहारता रहता है लेकिन छप्पन भोग में से एक भोग भी नसीब नहीं होता। ये कैसा तेरा खेल, ये कैसी तेरी दुनिया?
यही सोचते-सोचते और रोते-रोते कब सुबह हो गई, दादी को पता न चला। बारिश से दादी ऐसी भींगी कि दादी के लिए न फिर कभी वैसी रात हुई और न कभी सुबह!
रचना:
बीरेश प्रताप सिंह सुपुत्र श्री भानू प्रसाद पटेल, (उम्र-10 वर्ष) कक्षा-5 ख्रिस्ता ज्योति मिशन स्कूल ब्योहारी
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7 टिप्पणियां:
बहुत अच्छा लिखा है बीरेश आपने। आपको शुभकामनाएं आगे और भी लिखते रहे।
बहुत-बहुत धन्यवाद सतीश जी।
बहुत सुनंदर कहानी बेटे
Nice
Nice it's seeming a little baby with having greatest thought.... God bless for your next ,I am waiting for....
Very nice
बहुत बहुत बधाई हो बीरेश जी आपको ऐसी कहानी लिखने के लिए.......
....!
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