शुक्रवार, अगस्त 30, 2019

सफलता का सूत्र:सतत अध्ययन

सफलता का सूत्र:सतत अध्ययन

    किसी प्रेरक कार्यक्रम में चेतन भगत को सुना था. उनके ही कथन से बात को आगे बढाता हूँ. उनका कहना था कि बड़ी सफलता के लिए व्यक्ति को हमेशा प्रेरित रहने की आवश्यकता होती है. उनका कहना था कि आपको किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करना है, आप उसके प्रति आज उत्साहित हैं परन्तु क्या आज का उत्साह पूरे दो सालों तक बना रह सकता है? इस पर वह कहते हैं कि वह धक्का मार प्रेरणा पर ज्यादा भरोसा करते हैं. वह कहते हैं कि पूरे दो सालों के बारे में सोचने से पहले हम यह सोचें कि जो काम आज का है उसे कर लेते हैं. कल का कल देखा जायेगा. वह इसे और छोटे टुकड़ों में तोड़ते हैं. वह कहते हैं यह धक्का मार मोटिवेशन हमसे तब भी काम करा लेता है जब हम डिमोटीवेटड होते हैं. उनका कहना है कि जब आपका मूड ऑफ हो और पढाई का मन न कर रहा हो तब आप बस तुरंत पर फोकस करें. खुद को यह कहकर पढ़ें कि चलो अभी पढ़ लेते हैं या चलो अभी दो घंटे पढ़ लेते हैं फिर आगे देखा जायेगा. उनका कहना है कि ऐसा करके हम खुद से अधिक काम ले सकते हैं. इस प्रकार दो-दो घंटे बढाकर हम खुद को धक्का दे-देकर पूरा एक दिन खपा सकते हैं और ऐसे ही एक-एक दिन करके महीना और महीने-दर-महीने साल भर पढ़ सकते हैं. यह तकनीक उन्होंने  अपने आई.आई.टी. की प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने के बतौर बताया था.
     उनकी यह बात इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि जितनी बड़ी प्रतियोगी परीक्षा होती है, उसकी तैयारी करने का व्यक्ति उतना ही अधिक उत्साह के साथ निर्णय लेता है. लेकिन दिन-प्रतिदिन की घटनाओं और अन्यों के द्वारा बांटे गये अनुभव के कारण हमारा उत्साह स्थिर नहीं रह पाता. यह पूर्णतः सत्य है कि जो कुछ भी व्यक्ति अपना अनुभव बताता है वह केवल उसका होता है, हो सकता है वह अनुभव आपके बारे में बिलकुल लागू न हो, पर आप प्रभावित तो होते ही हैं. जैसे ही आपका यह उत्साह ख़त्म होता है आपकी तैयारी पर पूर्ण विराम लग जाता है. इन सारी घटनाओं के कारण ख़त्म हुए उत्साह की स्थिति में चेतन भगत का धक्का मार मोटिवेशन वाकई जादू कर सकता है.
      ऊपर कही बात सिर्फ एक तकनीक है कि हर रोज कैसे पढ़ा जाए. परन्तु सफलता का मुख्य सूत्र तो यही है कि हर रोज पढ़ा जाए. हो सकता है कि आपकी तकनीक दूसरी हो. परन्तु यदि आपको सफल होना है तो आपको आपके अध्ययन में निरंतरता रखनी होगी. आज हर कोई दशरथ मांझी को जानता है. दशरथ मांझी ने यह नहीं सोचा कि इस पहाड़ काटने में कितना वक़्त लगेगा. दशरथ मांझी ने सिर्फ यह सोचा कि पहाड़ काटना है और वह लग गये पहाड़ काटने में. न जाने कितने लोगों ने उनके काम को पागलपन या सनक कहा होगा परन्तु वह लगे रहे. यह भी सत्य है कि बिना किसी आधुनिक औजार के वे हर रोज बहुत अधिक पहाड़ नहीं काट पाते रहे होंगे. परन्तु वह लगे रहे. निरन्तरता से मिली सफलता का उदाहरण इससे बढ़िया और कुछ नहीं हो सकता.
      आपको आपकी आयु तो पता होगी ही. उसे आप वर्षों में जानते होंगे. उसे आप महीनों में तोड़ डालिए. फिर आप उसे दिन में तोड़ डालिए. एक दिन में भी चौबीस घंटे होते हैं. इन चौबीस घंटों में यदि आप हर रोज पांच छोटे-छोटे कंकड़ जमा कर रहे होते तो शायद  आज  आप उन  कंकडों  को अपने सिर पर उठा नहीं पाते. छोटी-छोटी चींटियाँ मिट्टी का बड़ा ढेर तैयार कर देती हैं तो उसके पीछे का कारण है कि वह निरंतर लगी रहती हैं. ज्यादतर हमारी योजना दीर्घकालिक होती है. हम यह तय कर लेते हैं कि आगे के दो वर्षों में हमें पीएससी की परीक्षा निकालनी हैं. लेकिन हम रोज-रोज पढ़ सकें इसकी योजना नहीं बना पाते. हम बाजार से मोटी-मोटी पुस्तकें खरीदने की योजना तो बना लेते हैं, परन्तु कई बार हम बिना उसे पढ़े ही किसी और को दान कर देते हैं या यूं ही रखी रह जाती है. यही हाल उधार मांगकर पुस्तक पढने वालों का होता है, हम किसी से यह कहकर पुस्तक मांगकर ले आते हैं कि अगले सप्ताह लौटा देंगे. परन्तु जब अगला सप्ताह आ जाता है, हम बिना पढ़े ही उसे रखे रहते हैं. यदि हमें उससे अधिक शर्मिंदगी झेलने का डर नहीं है तो वह अगला सप्ताह अगले वर्ष तक पहुच जाता है.
       विद्यार्थी अक्सर दबाव में ज्यादा समय तक पढ़ते हैं. ध्यान दीजिये कि जब आप दबाव में पढ़ रहे होंगे आपका मस्तिष्क एक अलग अस्थिरता का अनुभव कर रहा होगा. ऐसे में पढी गयी सामग्री पर एकाग्रचित्त हो पाना कम संभव हो पाता है. फिर हम चयनात्मक अध्ययन शुरू कर देते हैं. चयनात्मक अध्ययन हमें परीक्षोपयोगी अध्ययन की तरफ धकेलता है जिसके कारण हम केवल मुख्य बिन्दुओं पर ही फोकस कर पाते हैं. जिससे हमारा अध्ययन समग्र नहीं हो पाता. जबकि यदि हम तब भी उसी सतता से पढ़ रहे होते जिस सतता से हम परीक्षा के निकट के दिनों में पढ़ते हैं तो हमारा अध्ययन समग्र होता और हम अधिक बारीक चीजों की जानकारी रख पाने में समर्थ होते. ध्यान देना चाहिए कि सफल न होने वालों और सफल होने वालों में यही बारीक अंतर होता है.
      आप हर रोज अध्ययन करने के बजाय सोचते हैं कि कुछ चयनित दिनों में अधिक घंटों तक पढ़ लिया जायेगा. यदि आपने इसे अपनी योजना का हिस्सा बना रखा है, तब आपको अपनी योजना में बदलाव करना चाहिए. यदि आप चाहते तो ऐसा ही हैं किन्तु ऐसा हो नहीं पाता तब आपको कुछ ऐसा करना होगा जिससे आपके अध्ययन की निरन्तरता बनी रहे. उनमें से एक उपाय तो यह है कि जिस विषय क्षेत्र का आप अध्ययन कर रहे हैं आप उसमें खुद को सिर्फ सफल होता देखें. हमारा मस्तिष्क जिन चीजों पर विश्वास करता है उस पर वह अचेतन अवस्था में भी काम कर रहा होता है. जबकि जिसमें उसका विश्वास नहीं हो उसे करने से वह बार-बार परहेज करता है. किसी काम के प्रति अरुचि का एक कारण यह भी होता है कि आप जिस कार्य को कर रहे हैं उसकी सफलता में आपको संदेह है. यदि ऐसा है तो आपका मस्तिष्क बार-बार रुकावट पैदा करेगा. आप रेलवे स्टेशन के काफी नजदीक पहुँचने पर जब यह जान लेते हैं कि आपकी ट्रेन चुकी है तब आप न जाने किस असीम थकान से गुजरते हैं कि आपके पाँव एकदम भारी हो जाते हैं और कई बार तो आप चक्कर खाते-खाते बचते हैं जबकि अभी जब तक आपको विश्वास था कि ट्रेन मिल जाएगी, आप बहुत स्फूर्ति के साथ चले जा रहे थे. जब आपके मष्तिष्क को विश्वास हो गया कि आपको ट्रेन नहीं मिलनी है तो आपका मस्तिष्क अपने आप रक्त संचार बाधित कर देता है क्योंकि अब आप ट्रेन नहीं पा सकते. अतः जिस कार्य को हाथ में लें, आप उसे सफल होता हुआ ही देखें. हमें भी पता है और आपको भी पता है कि लाखों विद्यार्थियों के मध्य प्रतियोगिता है और सब एक से बढकर एक हैं, किन्तु आपको यह भी पता होना चाहिए के उनमें से कुछ सफल होंगे ही, और उस सूची में आपका भी नाम होगा. जितने भी बड़े काम हुए हैं इस संसार में वह सतत प्रयास के कारण ही संभव हो पाए हैं और सतत प्रयास हो सका क्योंकि लोगों को उनके प्रयास पर अटूट भरोसा था.
    आपको सतत अध्ययन के लिए अपनी दिनचर्या का कुछ हिस्सा बिलकुल फिक्स करना होगा. यही वह फिक्स समय होगा जिसे आप अपने नियमित अध्ययन को देंगे. अक्सर हम अपने समय को ढुलमूल तरीके से व्यतीत करते हैं. तात्पर्य यह कि जब जैसी जरूरत हुई उस हिसाब से समय का उपयोग कर लेते हैं. ऐसा करके हम स्वयं ही अपने समय का मूल्य खो देते हैं. जब हम ऐसा करते हैं तब हम अपने नियमित अध्ययन को आगे के लिए टाल देते हैं. और अगला समय फिर किसी दूसरे कार्य में उपयोग में आ जाता है. जब एक बार हमें इसकी लत लग जाती है तब हमारा समय इसी प्रकार आगे खिसकता जाता है. हम अपने चौबीस घंटों का कुछ समय ऐसा आरक्षित करें जिसमें हम केवल अध्ययन में ही उपयोग करें, ऐसा फिक्स किया गया समय हमारे किसी-किसी रोज आठ घंटों से पढने से भी ज्यादा बेहतर है कि हर दिन दो घंटे ही पढ़ा जाए.
     अध्ययन में निरन्तरता हमारे मस्तिष्क को अतिरिक्त सोचने का अवसर प्रदान नहीं करता. कल जो लाइन खिची थी वही लाइन और बड़ी हो  जाती है बस. सतत अध्ययन से विषय का ज्ञान हमेशा ताजा बना रहता है. हम निरंतर अध्ययन करके अपने उद्देश्य को भी पकडे रख सकते हैं. जब आप सतत अध्ययन करते हैं, आपका मस्तिष्क उसके साथ-साथ उस अध्ययन का उद्देश्य भी याद रखता है. जबकि यदि हम अध्ययन करना छोड़ दें, हमारा मस्तिष्क हमारे उस उद्देश्य को भी भुला देता है, जिसके लिए हम अध्ययन कर रहे थे. इसके अलावा सतत अध्ययन से अध्ययन करने की हमारे मस्तिष्क की आदत बनती है जो हमे बिना थकाए अध्ययन करने देता है. यदि आप कभी-कभी अध्ययन करें, आप उबाऊ पन महसूस करेंगे जबकि सतत अध्ययन करने वाले व्यक्ति को समय का पता नहीं लगता. सतत अध्ययन करने से अध्ययन की गई सामग्री आपस में एक दूसरे  से बेहतर ढंग से आबद्ध होती है जो जरूरत पड़ने पर अधिक स्पष्टता के साथ मस्तिष्क में उभरता है.
     खरगोश और कछुए की कहानी की याद दिलाते हुए इस आलेख को समाप्त करना प्रासंगिक होगा. खरगोश स्फूर्तवान प्राणी है. जबकि कछुआ अपनी धीमी चाल के लिए जाना जाता है. जब दोनों में प्रतियोगिता होती है तक खरगोश कुछ दूर तक जाकर पेड़ की छांव में सुस्ताने लगता है. उसे लगता है कछुए को आने में तो अभी बहुत अधिक समय लगेगा. कछुआ अपनी  चाल जानता है. वह हार नहीं मानता. उसकी प्रकृति प्रदत्त जो गति है, उसके साथ वह निरंतर चलता रहता है और गंतव्य पर खरगोश से पहले पंहुचता है. बचपन का आपका कोई साथी पढाई में मध्यम दर्जे का होते हुए भी किसी अच्छे पद पर पंहुच जाए और आप ब्रिलियंट होते हुए भी न पहुँच पायें तो आपको इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए तब आप इस कहानी को अवश्य याद कीजियेगा.
प्रस्तुति एवं रचना: सुरेन्द्र कुमार पटेल
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