बुधवार, अगस्त 28, 2019

नेतृत्व क्षमता के उपयोग से सामुदायिक समस्याओं के उन्मूलन की संभावना





यह  आलेख  नहीं लिख रहा होता यदि कक्षा 9 वीं की कुछ छात्राएं कल मुझसे झगड़ नहीं रही होतीं। उसके बाद मेरे जहन में  विद्यालय के कई छात्र-छात्राओं का चेहरा आया। पहले कक्षा 9वीं की  इन छात्राओं की कहानी आपके सामने प्रस्तुत करता हूँ । हुआ यह था कि हाॅफ के बाद यह बच्चियाॅं काँधे  पर बस्ता टांगे हुए बरामदें में मुझे मिलीं। मैंने पूछा-यह क्या है? आप लोग बस्ता टांगकर जा कहाॅं रहे हैं? उनमें से एक ने बिना झिझके हुए कहा- घर सर, और कहाॅं? मैंने पूछा- लेकिन अभी तो आगे के दो पीरियड शेष हैं। हम नहीं पढेंगे सर-उन्होंने अपना विरोध प्रकट किया। मैंने जब ज्यादा जोर देकर उन्हें बैठाने के लिए कहा कि ऐसे कैसे चलेगा? हमें तुम्हारे खिलाफ नोटिस काटना पड़ेगा तो वह कंधे से बस्ता उतारते हुए कुछ ज्यादा ही गुस्सा दिखाने लगीं और कहने लगीं- सर हम बैंठेगे। पूरा पीरियड बैंठेंगे। लेकिन जब सभी पीरियड लगेंगे.... और वह बैठ गई। हमने जो देखा वह यह कि पूरी कक्षा से इन दो-तीन छा़त्राओं ने ही आवाज उठाया शेष ने नहीं  

वहीं छठवीं कक्षा के एक छात्र का चेहरा जहन में आता है। जब भी उसकी कक्षा के आसपास मैं टहलते हुए मिल जाता हूँ, वह देखते ही मुझे धर लेता है। सर चलिए हमारी कक्षा में, चलिए न। "लेकिन अभी तो किसी और शिक्षक का पीरियड होगा न?" मैं कहता हूँ "जब तक वह नहीं आते तभी तक चलिए न।" उसके आग्रह में इतनी मिठास और जिद होती है कि वह न चाहते हुए भी अपनी कक्षा तक खींच ले जाता है। एक दिन ऐसा हुआ था कि कक्षा-10  में पढ़ाने के बाद जब दूसरी  कक्षा में जाने के लिए निकला तो बाहर तेज बारिश हो रही थी। मैं कक्षा के दरवाजे पर खड़ा होकर यह देख रहा था कि कोई छात्र छतरी लेकर बाहर निकला हो तो उसे पुकारूं। तभी  कक्षा 8 का एक छात्र मेरे कुछ कहे बिना ही छतरी दिखाते हुए बोलता है - सर छाता लाऊंउसके इस कथन पर अनायास मेरे चेहरे पर एक मुस्कुराहट का भाव उभरता है और अगले ही पल वह छात्र छतरी के साथ मेरे सामने खड़ा हो जाता है। कक्षा-11  का एक छात्र है जो अपनी कक्षा  में यह ध्यान रखता है कि उसका कोई कालखण्ड रिक्त न रहे। यदि ऐसा होता है तो वह देखने की कोशिश करता है कि  उसके शिक्षक आए हैं या नहीं, यदि आयें हैं तो वह उन्हें बुलाने का आग्रह करता है और यदि नहीं हैं तो वह कक्षा को संभालने की कोशिश करता है। जबकि दूसरे बच्चे ऐसा नहीं करते  
यह कहानी एक विशेष बात की और इंगित करती है और वह यह कि समस्या के प्रति दो प्रकार का नजरिया रखने वाले लोग होते हैं। एक वे  जो समस्या के संबंध में तब तक कुछ नहीं करते जब तक कि उस समस्या के संबंध में उन्हें कोई व्यक्ति निर्देश न दे। और दूसरे वे  होते हैं जो समस्या के निराकरण के प्रति स्वतः सचेत होते हैं ,वे  समस्या के निराकरण के लिए स्वतः तो काम करते ही हैं दूसरों को निर्देशित करने में भी संकोच नहीं करते

व्यक्तियों का यह वर्गीकरण मानवों के प्रत्येक समूह में पाया जाता है। ऐसा वर्गीकरण मानव में मौजूद नेतृत्वक्षमता की मात्रा के कारण होता है। न्यूनाधिक मात्रा में सभी में नेतृत्व का गुण होता है यदि ऐसा नहीं  होगा तब  जीवन निर्वाह ही कठिन हो जाएगा। इसी गुण के कारण व्यक्ति स्वयं को  दैनिक कार्याें के लिए निर्देशित करता है। अतः नेतृत्व का गुण प्रत्येक व्यक्ति में प्रकृतिजन्य होता है। उसकी मात्रा अलग-अलग लोगों में अलग-अलग होती है। 

समाज में लोगों का  सहज रूप से जो दो प्रकार का वर्गीकरण होता है उसमें से एक में आज्ञा देने का अधिक गुण होता  है और दूसरे में आज्ञापालक का। नेतृत्व को परिभाषित करते हुए ओसवाल्ड स्पैगलर ने लिखा है कि इस  युग में केवल दो प्रकार की तकनीक ही नहीं है वरन् दो प्रकार के आदमी भी हैं। जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति में कार्य करने तथा निर्देशन देने की प्रवृति है उसी प्रकार कुछ व्यक्ति ऐसे हैं जिनकी प्रकृति आज्ञा मानने की है। यही मनुष्य जीवन का स्वाभाविक रूप है। यह रूप युग परिवर्तन के साथ कितना ही बदलता रहे किन्तु इसका अस्तित्व तब तक रहेगा जब तक यह संसार रहेगा। विकिपीडिया में नेतृत्व को व्याख्यायित करते हुए लिखा गया है नेतृत्व एक प्रक्रिया है जिसमें कोई व्यक्ति सामाजिक प्रभाव के द्वारा अन्य लोगों की सहायता लेते हुए एक काॅमन कार्य सिद्ध करता है।

आज नेतृत्व के गुणों की आवश्यकता हर स्थान पर देखी जा सकती है। हमारी आजादी ने शासन व्यवस्था में प्रजातंत्र की स्थापना की। जिसमें चुनाव एक अहम भूमिका निभाता है। चुनाव से जीता हुआ प्रत्याशी समाज की समस्याओं के निराकरण की जिम्मेदारी लेता है। इस लोकतंत्र ने समाज को संदेश दिया है कि समस्या के निराकरण लिए चुने हुए प्रतिनिधि के पास जाना चाहिए। हमारे भारतीय समाज को इसकी आदत सी हो गई है। इसे लोकतंत्र का नकारात्मक पहलू कह सकते हैं। आम आदमी का यह भाव यह एहसास दिलाने का काम किया है कि केवल नेता के पास ही नेतृत्व का गुण मौजूद है और प्रत्येक समस्या का निराकरण केवल  चुना हुआ नेता ही कर सकता है। ऐसे में  एक ओर लोगों का यह भाव; तो दूसरी ओर जिस चुने हुए नेता में नेतृत्व के गुणों की हम तलाश कर रहे हैं वह केवल अपने नेतृत्व क्षमता के कारण चुनाव नहीं जीतता बल्कि उसकी जीत में पैतृक सहयोग, धनबल और बाहुबल का भी प्रभाव होता है। ऐसे में समाज न तो स्वयं नेतृत्व की कोशिश करता है और न ही उस चुने हुए प्रत्याशी में नेतृत्व करने का गुण, क्षमता और ललक होती है जिसके लिए वह चुना गया है। ऐसी परिस्थितियाॅं समाज में नेतृत्वहीनता की स्थिति निर्मित करता है। 

उपरोक्त विवेचना के साक्ष्य के तौर पर हम छोटी-छोटी चीजों की पड़ताल कर सकते हैं। शहर के भीतर सभी लोग आते-जाते है। सड़कें गड्ढों में तब्दील हो चुकी हैं। घरों के सामने नालियाॅं हैं, नालियाॅं चोक हो जाती हैं। घरों  के सामने से नालियों का पानी सड़कों पर बहता रहता है हम अपने घरों का कचरा घर से निकालकर सड़क पर फेंकते रहते हैं। स्कूलों में बच्चे हैं, बिना दक्षता प्राप्त किए कक्षोन्नत हो रहे हैं। यह सभी चीजें हमारे ही आसपास हो रही हैं, परन्तु किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। समाज में कई प्रकार की रूढ़ियाॅं विद्यमान हैं, उन्हें आँख मूंद कर मान रहे हैं, उनका विरोध करने का साहस  नहीं है। समाज में एक तरफ गरीबी  और बेकारी है तो दूसरी ओर काम करने के लिए इच्छुक पढ़े-लिखे नौजवानों की बाढ़ है। लाखों वनस्पतियाॅं बिना उपयोग किए नष्ट हो रही हैं जिनमें से कई में औषधीय गुण हैं और दूसरी ओर उचित दवाओं के अभाव में  हम बीमार हो रहे हैं। आयुर्वेद के ज्ञान का पराभव हमारी नेतृत्वहीनता के कारण ही हुआ। किसी वैद्य ने जिसके पास उसका समुचित ज्ञान था, वह सम्पूर्ण ज्ञान उसने अपनी पीढ़ी को हस्तांतरित नहीं कर किया। जबकि बाबा रामदेव ने उसी कार्य का नेतृत्व और निर्देशन करते हुए योग और आयुर्वेद को न केवल देश-विदेश में पहुँचाया बल्कि लाखों-करोड़ों का टर्नओवर देने वाली कंपनी भी खड़ा कर लियासड़कों पर, स्कूलों के आसपास और अन्य सार्वजनिक स्थानों पर असामाजिक तत्व का तमगा प्राप्त नौजवान और युवाओं का बड़ा वर्ग विद्यमान रहता है। वे सब उसी परिवेश के आसपास के घरों के लड़के होते हैं, उन्हें समझाइश देने की हिम्मत किसी में नहीं होती है। घर के लोग तो न जाने कब का हाथ खड़ा कर चुके होते हैं। लोगों ने बोलने की आजादी पाई और लोगों ने उचित बात बोलना बन्द कर दिया। इस आजादी का लाभ कौन उठा रहा है? वे लोग जो नेतृत्वहीनता का फायदा उठाकर समाज को गलत दिशा में ले जाने का प्रयास कर रहे हैं। यह भी नेतृत्वहीनता का ही उदाहरण है जब एक विधायक गुनाह करता है और उसका मुख्यमंत्री और उसकी समूची पार्टी उसके गुनाहों से लोगों को बचा नहीं पाते। जिन लोगों ने समूचे परिवार के नष्ट हो जाने के बाद विरोधस्वरुप प्रदर्शन किए, यदि वह सब इसके पहले नेतृत्व करते हुए साथ आए होते तो शायद उसका परिवार इस हद तक तबाह नहीं होता 

आम आदमी नेतृत्वहीनता की स्थिति से गुजर रहा है क्योंकि वह इसी में आराम से है। कुछ हो रहा है, कुछ गलत हो रहा है वह नहीं बालेगा। उसका एक ही कथन होगा- हमको क्या मतलब कोई रिश्वत दे रहा है, कोई ले रहा है। हमको क्या मतलब दुष्परिणाम यह होता है कि जब हमारी  बारी आती है तब हम  या तो अधिक रिश्वत नहीं दे सकने  के कारण अपना काम नहीं करा पाते या फिर रिश्वत देकर ही काम करा पाते हैं अन्यथा नहीं। हमने स्वयं के नेतृत्व क्षमता को  मारने का काम किया है। छोटे-छोटे कार्यों में जहां नेतृत्व करने में कोई खतरा नहीं  है वहां भी हमने स्वयं को सिकोड़ कर रख लिया है। आपके घरों के आसपास जो समस्याएं हैं यदि आप उनके निराकरण में रुचि लेते तो उसमें इतना खतरा नहीं  था। परन्तु सभी में हमने एक टैगलाइन  काॅमन बना रखा है -हमें क्या मतलब अधिक विकसित और समुन्न्त राष्ट्रों की एक विशेषता है कि उसके नागरिक समस्याओं के निराकरण की सारी जिममेदारी शासक वर्ग पर नहीं छोड़ते बल्कि अपने हिस्से का काम स्वयं करते हैं। 

नेतृत्वहीनता केवल समुदाय की  समस्याओं को नहीं बढ़ाता बल्कि व्यक्ति को बहुत हद तक गैर जिम्मेदार भी बनाता है जो सामुदायिक समस्याओं को और अधिक बढ़ाता है। एक नेतृत्वहीन व्यक्ति किसी नेतृत्वकर्ता को हतोत्साहित करने का भी काम करता है। वह उसे गुमराह भी करता है। और एक बढ़िया नेतृत्वकर्ता समुदाय का सही निर्देशन करते हुए उसे विकास के पथ पर अग्रसर करता है। किसी संस्था  प्रमुख में रूप में जो व्यवस्थाएं उस संस्था में दिखाई पड़ती हैं वह उस संस्था प्रमुख के नेतृत्वक्षमता का ही प्रतिबिम्ब होता है। किसी संस्था प्रमुख के नेतृत्व की छाप उस संस्था के कर्मचारियों पर प्रत्यक्षतः पड़ता है। यदि वह स्वयं आलसी है, काम को टालने का काम करता है तो उसके कर्मचारी उससे दो कदम आगे ही होंगे। एक अच्छा नेतृत्वकर्ता हर स्थिति में अच्छा निर्णय लेता है। किसी ने कहा है- यदि किसी व्यक्ति के पास सुन्दर बहुमूल्य घड़ी है और वह सही तरह से काम नही करती है तो वह उसे मामूली घड़ीसाज को सही करने के लिए नहीं देगा। घड़ी की जितनी बारीक कारीगरी होगी उसे ठीक करने के लिए भी उतना ही चतुर कारीगर होना चाहिए।

हमारे समुदाय की बहुत सारी समस्याओं की जड़ यह है कि हर व्यक्ति हाथ बांधकर खड़ा है। वह इन्तजार कर रहा है कि कोई उसे निर्देशित करेगा और तब वह समस्या के सम्बन्ध में कुछ करेगा। दफ्तरों में छोटे-छोटे कार्यों के लिए क्लर्क साहब की हामी का इन्तजार करता है। जबकि उसे साहब की हामी भी मालूम है। आगे बढकर कार्य करने में खतरा है। खतरा है कि लोग उसके निर्णय की आलोचना कर सकते हैं यदि उसका निर्णय सही परिणाम नहीं ला पाया। खतरा है कि कोई उसे टोक सकता है कि उसने यह काम क्यों किया जबकि यह उसका काम था ही नहीं। यह भी खतरा है कि यदि वह ऐसे निर्णय लेता रहा तो उसका जो मुख्य पेशा है, उससे उसके मुख्य पेशे का टैग हट सकता है या उसकी छवि कमजोर पड सकती है। 

आप एक वार्ड के लिए एक पञ्च का चुनाव करते हैं। एक ग्राम पंचायत के लिए एक ग्राम प्रधान या सरपंच का चुनाव करते हैं। एक विधानसभा क्षेत्र के लिए एक विधायक का चुनाव करते हैं और एक लोकसभा क्षेत्र के लिए सांसद का। अब आप उस क्षेत्र के भीतर विद्यमान समस्याओं की गिनती कीजिए। फिर आप पता लगाइए कि इन समस्याओं के निराकरण के लिए कितने पञ्च, सरपंच, विधायक और सांसद चुनने पड़ेंगे? समस्याएँ जो दिन-प्रतिदिन पैदा होती हैं, समस्याएं जो हम अपने परिवेश में स्वतः पैदा करते हैं, समस्याएँ जिनके निराकरण में सरकार की भागीदारी नहीं के बराबर होनी चाहिए, क्या उन सभी समस्याओं के लिए हम चुने हुए प्रत्याशियों की तरफ देखेंगे? यदि सच में हमारी यही मांग है तब तो .....कुछ नहीं हो सकता

हमारे भीतर नेतृत्व प्रकृतिजन्य है। कम या अधिक यह मायने नहीं रखता। अन्य छात्राएं यदि हिम्मत करतीं तो वह भी बोल सकती थीं। लेकिन ऐसा करने के लिए उन्हें अधिक साहस करना होता। समुदाय को यदि प्रगति के पथ पर ले जाना है तो सबसे अधिक आवश्यकता है कि हम हमारे आसपास विद्यमान समस्याओं के निराकरण के लिए खुद के नेतृत्व पर भरोसा करना सीखें, सबसे अधिक कि खुद के नेतृत्व का उपयोग करें। यदि ऐसा नहीं करेंगे, व्यवस्था में सुधार के बजाय अव्यवस्था बढ़ेगी। यदि हम नेतृत्व करना शुरू करें, हम मुखर होना शुरू करें, हम अपने कदम पीछे खीचने के बजाय आगे बढ़ाना शुरू करें, समस्या के प्रति सिकुड़ जाने के बजाय खुल जाएँ, उसके निराकरण के बारे में चिन्तन शुरू कर दें- समुदाय की बहुत अधिक समस्याएं मूलतः समाप्त हो जाएंगीप्रश्न है कि क्या हम ऐसा करना चाहेंगे?
(यदि आपने सच में यह आलेख पूरा पढ़ा है, हृदय की गहराई से आपका धन्यवाद। आपसे अनुरोध है इस आलेख के बारे में अपनी राय नीचे कमेंट बॉक्स में अपने नाम के साथ अवश्य लिखें)
प्रस्तुति एवं रचना: सुरेन्द्र कुमार पटेल
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