कपूरथा नाम का एक गांव था, जहाँ बलवान सिंह का परिवार निवास करता था। परिवार में बलवान सिंह और उसकी पत्नी सुनंदा और तीन बेटे थे।
एक दिन गाँव के नजदीक मेले में बलवान सिंह का छोटा बेटा भान सिंह खो गया। इधर-उधर बहुत खोजने के बाद भी भान सिंह नहीं मिला।
बलवान सिंह ने अपने दोनों बेटों को गाँव के अच्छे स्कूल में शिक्षा दिलाई। दोनों पढ़-लिखकर नौकरी भी करने लगे। फिर बलवान सिंह ने बड़े धूमधाम से दोनों बेटों की शादी कर दी।
अब पूरा परिवार बेहद खुश था। दोनों बेटे कमा रहे थे। बलवान सिंह भी अधिक आयु हो जाने के कारण रिटायर होकर घर में रहने लगा।
इस तरह कई दिनों तक घर में खुशहाली का आलम बना रहा।
एक दिन दोनों बहुओं के मन में पैतृक संपत्ति प्राप्त करने का👉 लालच 👈आ गया। उन्हें लगा कि यदि पिता जी अपने जीते जी घर की संपत्ति दोनों भाइयों में बराबर बांट दें तो बहुत अच्छा हो।
दोनों बहुओं ने अपने-अपने पति को हिस्सा लेने के लिए राजी कर लिया। सुबह बलवान सिंह आँगन में बैठकर चाय पी रहे थे, तभी बड़ा बेटा आया और बोला- पिताजी आपसे एक बात कहनी थी। तभी दूसरा बेटा भी आ गया और बोला जी, पिता जी! मैं भी कुछ कहना चाहता हूं। पिताजी बोले आप दोनों क्या कहना चाहते हो?
दोनों बेटों ने एक साथ कहा कि हमारी पत्नियां चाहती हैं कि समय रहते घर का हिस्सा बांट कर दिया जाय।
बलवान सिंह ने दोनों की बात सुनकर असहज महसूस करते हुए आंखों में आंसू लिए हुए फैसला सुनाया कि - मैं जीते जी परिवार का विघटन नहीं होने दूंगा। मेरे मरने के बाद आपको जो करना होगा करते रहना।
फैसला सुनते ही बेटों के पैरों तले जमीन खिसक गयी और दोनों बहुएं अपना- अपना सामान लेकर घर से बाहर निकलने लगीं और बोलीं कि हम अब इस घर में एक पल भी नहीं रहना चाहते।
इस प्रकार दोनों बेटे घर छोड़कर पत्नियों के साथ चले गए। एक दिन बाद सुनंदा की तबीयत अचानक बिगड़ गई और बलवान सिंह पूरी तरह से हताश-निराश होकर भूखे रहने को विवश था।
अचानक किसी ने दरवाजा खटखटाया और कहा- पिताजी मैं भान सिंह आ गया हूं, दरवाजा खोलिए।
भान सिंह की बात सुनकर बलवान सिंह को ताकत आ गई। बिछुडे हुए बेटे से मिलकर माता सुनंदा की तबीयत भी ठीक हो गई।
भान सिंह ने अपने दोनों भाइयों के बारे में पूछा तो पिताजी ने पूरी कहानी सुनाई।
भान सिंह माता-पिता की अच्छी सेवा करने लगा।
एक दिन उन दोनों बेटों को पता चला कि हमारा तीसरा भाई पुनः घर में आ गया है, तो हमें भी घर में जाकर माता-पिता की सेवा करनी चाहिए नहीं तो पैतृक संपत्ति से बेदखल हो जाएंगे।
दोनों बेटे पत्नियों के साथ घर आकर माता-पिता की खूब सेवा करने लगे। कई दिनों बाद पुनः हिस्सा बांट करने की बात आई तो बलवान सिंह ने कहा-मैंने अपनी पूरी सम्पत्ति तीसरे बेटे भान सिंह के नाम कर दिया है । क्योंकि वह बुरे वक्त में हमारी सेवा की है। तुम दोनों को फूटी कौड़ी भी नहीं दूँगा। लालची बहुएँ शर्म से झुक कर अपने किए हुए कर्मों का प्रायश्चित करने लगीं।
निष्कर्ष👉अपने माता-पिता की सेवा निःस्वार्थ भाव से करने से ही "सेवा का मेवा" प्राप्त किया जा सकता है। सच है लालच बुरी बला होती है।
प्रस्तुति-धर्मेन्द कुमार पटेल, नौगवां✍✍
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shaandaar
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