1.
टिड्डी दल स्वागत गीत
निकलो घर से बाहर
सब,
आए हैं सैतान
विदेशी,
खेतों में करनें
डकैती।।
सब गांवन में आए
टिड्डी दल।
मिलजुल लगाओ
जोरों का बल।
ध्वनि विस्तारक
यंत्र बजाऐं,
टिड्डी दल को
दूसरे गांव पहुंचाएं।।
टिड्डीयों का दल
हमारे मेहमान।
आए हैं वे
पाकिस्तान।
ढोल नगाडों से
करो स्वागत,
हल्ला मचानें में
लगाओ ताकत।।
चिंता की कोई बात
नहीं,
आए हैं तो जाएंगे
भी।
खेतों की जासूसी
करते,
नाहक को हम उनसे
डरते।।
आपका
भाई- धर्मेन्द कुमार पटेल
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2.
काव्यमय पर्यावरण पखवाडा़
मैं रोज आकाश के
नीचे नाचता हूं।
ए छत भी क्या चीज
है मैं नहीं जानता हू़।
भड़कीले तेज
रोशनी मुझको भाते नहीं।
चाँदनी रातों में
मैं ,बत्तियां बुझा आता हूं।
घर की चार दीवारी
मुझे क्या बांधेगी।
मैं पीपल के नीचे,बिस्तर बिछा सोता हू़ं।
स्वच्छ चाँदनी
झिंगुर कि गुंजन उड़ता सुगंध।
और इस सन्नाटे
में मैं ध्यान पूर्वक होता हूं।
आत्मा आकाशगंगा
नहानें निकली होती है।
और मैं
शून्यरसायन में डूबा होता हूं।।
आपका
भाई- धर्मेन्द कुमार पटेल
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3.
पंक्तियां
पांच जून से पहले
ही,
लेखक कवि हो गए
पस्त।
महिमामंडन कैसे
हो प्रकृति की,
जिसका आदि न
अंत।।
अब कोई कुछ नहीं
लिखता,
पर्यावरण की
बातें।
ग्रुप डिस्कशन
बंद हो रहा,
सूनी लागे दिन-
रातें।
सुन लें अनूपपुर
ब्योहारी ,
शहडोल उमरिया
वाले।
उठाओ कलम करो
लिखाई
डायरी के खोलो
तालें।।
प्रकृति की महिमा
गाओ
,संभव हो तो धरती
में वृक्ष लगा देना।
अपनें लेख और
कविताओं से,
जनमानस में
जागृति ला देना।।
सब पंचन से करुं
निवेदन,
जोड़कर दोनों
हाथ।
भव्य महोत्सव
मनाने को,
बना रहे आपका
साथ।।
आपका भाई - धर्मेन्द कुमार पटेल
नौगवां मानपुर,जिला उमरिया (म.प्र.)
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4.
पर्यावरण महोत्सव की धूम
पार्ट -1
तैयारी हो रही हो,
महोत्सव मनानें
की।
संकल्प ले रहे हो,
पर्यावरण बचानें
की।।
समय आ चुका हो,
ज्यादा वृक्ष
लगानें की।
चुनौती बढ़ रही
हो,
हरियाली बचानें
की।।
संकट बढ़ रही हो,
बढ़ते प्रदूषण
की।
मुश्किल हो रही
हो,
स्वस्थ्य जीवन
की।।
लापरवाही बढ़ रही
हो,
खानपान के सेवन
की।
उदासीनता दिख रही
हो,
कठपुतली प्रशासन
की।।
हालत् बिगड़ रही
हो,
आम जन जीवन की।
प्रभावित हो रहे
हो,
समाजिक
शिल्पकारों की।।
पार्ट -2
आइए प्रकृति के
बीच अपनें आप को पहचानें........
जिस प्रकार अन्य
जीव इस पृथ्वी के रहवासी हैं,उसी प्रकार हम भी
हैं,फिर इन प्राकृतिक तत्वों
पर हमारा निरंकुश अधिकार कैसे हो सकता है,कदापि नहीं!!
कुछ प्रकृति के
अनमोल रत्न:-
💧जल जीवन आधार,
💐फूंलों की महक ।
🍃पेंडों की पत्ती,
🦆 चिडिया की चहक।
🐱बिल्ली की म्याऊं,
🦁 शेर की गर्जना,
🐴घोडे की हिनहिनाहट,
🐒बंदर की उछल कूद,
🕸️मकडी़ की जाल,
🐢कछुआ की चाल,
🦂बिच्छू की डंक,
🐄 गाय की दूध,
🦋 रंग बिरंगी तितली,
🐟 जल की रानी मछली,
🐫कूबड़ वाला ऊंट,
🐘 धरती का बोझ हाथी,
🌎ये है धरती मानचित्र,
😎और यह है मानव।
🦚नृत्यक मोर,
🦜प्यारा मिट्ठू,
🐓 सुबह जगानें वाला मुर्गा,
💥 जग को प्रकाशित करनें वाला
आपका भाई -धर्मेन्द कुमार पटेल
निवास-नौगवां,मानपुर, उमरिया (म.प्र.)
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5.
कृति और प्रेमिका -शायरी
बगिया मा पौधा
हरी - भरी,
तुम्हारी याद आये
घरी-घरी।
गुलाब का फूल लाल
- लाल,
बडा़ नींक लागत
चाल-ढाल।
आम और आंवला का
अचार,
हमार तुमसे मिलत
है विचार।
जामुन का फल काला काला,
बहिनी साली,भाई लागै साला।
अमरुद का फल
प्यारी-प्यारी,
संग चलनें की कर
लो तैयारी।
लौकी भिण्डी़
करेला सब्जी,
रहो संग में ऐसी
हमारी मर्जी।
कटहल पपीता आलू -
प्याज,
कभी न होऊं तुमसे
नाराज।
छोहारा बादाम
काजू किसमिस,
मैं तेरा तू मेरी
करता हूं प्रामिस।
चावल गेहूं
सोयाबीन और मक्का,
जब तक मैं हूं
नहीं लगेगा धक्का।
मिर्ची मूली
धनिया टमाटर,
मैं और तुम हैं
दोंनों बराबर।
बनी रहे धरती में
हरियाली,
मैं घरवाला,
और तू घरवाली।
पर्यावरण दिवस
मनाएंगे,
धरती को स्वर्ग बनाएंगे
आपका भाई धर्मेन्द कुमार पटेल
🤪श्रृंगार रस स्पेस्लिस्ट😩
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6.
पानी बचाओ - जीवन बचाओ
एक सुंदर नारि
करि श्रृंगार,
पहुंच गयी पनिया
भरन को।
सिर पे गगरिया
पकड़ हाथ से,
लचके कमरिया अजब
गजब से।
चेहरे में चमक
माथे पे पसीना,
सूखा कंठ मन हुआ गमगीना।
जब देखे उसनें
कूप की हालत्,
जोर जोर से लगी
वो रोंना।।
??क्यों??
सूखा कूप मारे
किलकारी,
बहना मेरी हालत्
स्वयं भिखारी।
बूंद बूंद को तरस
रहा हूं,
प्यास के मारे
तड़प रहा हूं।
देख लो बहना मानव
नें,
कर दी सीमा हद की
पार।
अधिक सिंचाई के
कारण,
जलस्तर को दिया
गर्त में डार।।
अब कौन करेगा
मेरा उद्धार,
जल बिन जीवन है
बेकार।
जाओ मेरा संदेश
पहुंचाओ,
पानी बचानें की
मुहिम चलाओ।।
फिरै नारि गांव
गांव में,
पानी की महत्व
समझाय रही।
पानी बचाओ जीवन
बचाओ,
लोगों में
जागरुकता लाय रही।।
हमारा भी अब यही
प्रयास,
बुझे सबकी
प्यास।।
आपका भाई
धर्मेन्द कुमार पटेल
………………………………………………….
7.
मृदा अपरदन
मृदा अपरदन ऐसे
होगा,
तो भूमि बंजर हो
जाएगी।
हरियाली मिट
जाएगी धरा से,
धरती माता बांझ
कहलाएगी।।
मृदा अपरदन
रोकनें का,
सबसे अच्छा यही
उपाय।
वृक्ष कटाई पर हो
अंकुश,
बनी रहे वृक्षों
की छांव।।
सीढी़ नुमा खेत
बनाओ,
छोटे नालों में
बांध बंधाओ,
उत्खनन पर रोंक
लगाओ,
मृदा संरक्षक की
फर्ज निभाओ।।
आपका भाई- धर्मेन्द कुमार पटेल,
मानपुर,उमरिया,(म.प्र.)
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8.
पर्यावरण महोत्सव स्पेशल
उसनें सब कुछ
दिया,और तूनें सब कुछ लिया,
बदले में तूनें
ये क्या किया
( 1)
जिस
मातृभूमि पर जन्म लिया,
उसी का ह्रदय खोद
खोद कर छलनीं किया।
रासायनिक
पदार्थों के द्वारा,
उर्वरा शक्ति का
नाश किया।
धरती बंजर कर
डाला , न
मैदान बचा और न
नाला।
और तूनें हरदम
मौज किया।
उसनें सब कुछ
दिया........!
बदलें में तूनें ............❓
(2)
बहती धार पर कर
प्रहार,रफ्तार को रोक दिया,
नदी नाले की दिशा,
उल्टा -पुल्टा
मनमाना मोंड़
दिया।
जिस अमृत जल को
पी कर बडा़ हुआ।
उसी जल को तूनें
प्रदूषित कर नष्ट किया।
उसनें सब कुछ
दिया............!
बदले में तूनें
.............
(3)
लहलहाती इठलाती
लताओं को ऐंठ मरोड़ कर तोड़ दिया,
जिस डालियों ने
जीनें के लिए प्राणवायु दिया।
तूनें उसे भी
नहीं छोडा़,जिसनें स्वयं तिल तिल
जलाकर अगेठी में रोटियां पकाई,
हरे पेंड कहलाने
वाले को तूनें सूखी लकडी़ बना दिया।
उसनें सब कुछ
दिया...........!
बदले में तूनें ............
आपका भाई - धर्मेन्द कुमार पटेल
…………………………………………………………….
सुनों गौर से
दुनिया वालों,
बुरी नजर न
वृक्षों में डालो।
चाहे जितना पेंड़
लगा लो,
ना होगी कोई हानी,
ना होगी कोई
हानी......
अब तो सुनों,अब तो जागो,
क्या सोंचते हो,
कुछ तो करो,
अपनें हाथों से
पौधा लगाओ,
पौधा लगाकर पानी
डालो,
पाल पोस कर उसे
बढाओ,
शुद्ध हवा और
मीठे फल खाओ।
अब तो न करो,
बेईमानी बेईमानी
नहीं तो उठानी
होगी ,
हानि हानि।
आगे बढो़ बढ़ते
चलो।
पर्यावरण सुरक्षा
करते चलो।
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