प्रेम और नफरत
दो किनारे हैं
कि आदमी जब भी
किसी किनारे पर होता है
वह ठहर जाता है ।
किनारे नदी का रूढ़ स्वभाव है
किनारे बदलाव का प्रतिकार है ।
नदी का जल सतत है
निरंतर परिवर्तन का वेग है ।
कि जब भी हिस्सा बनना
जल के वेग का ही हिस्सा बनना
जो बह जाय
कहीं रुके नहीं ।
मैंने देखा था
एक तालाब के पानी को
जिसे किनारों ने बांध लिया था ।
उसके आगोश में
जल भी रूढ़ हो गया
ठहराव उसका चरित्र न था ।
फिर उस ठहराव में
उसका चरित्रहीन हो जाना स्वाभाविक था ।
मन्त्र मुग्ध था अपने ठहराव पर
और ठहराव में खिले कमल के फूल पर ।
पर यह तो सतह की चमक थी
धरातल पर तो जमा हुआ कीच था ।
ठहराव ने आनंद के भ्रम को उपजा था
ठहराव ने शोक संतृप्त मन को किया था ।
ठहराव ने स्मृति में कैद कर दिया मन को
ठहराव ने उत्सुकता को मृत कर दिया था ।
कि जब भी ठहराव और गतिशीलता को चुनना हो
गतिशीलता को चुनना ।
कि जब भी हिस्सा बनना
जल के वेग का ही हिस्सा बनना
जो बह जाय
कहीं रुके नहीं।
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