शुक्रवार, मई 01, 2020

हम भारत के मजदूर(कविता):डी.ए.प्रकाश खांडे

(1)
हम भारत के मजदूर
हम भारत के हैं मजदूर,
 हर गाँव शहर में रहते जरूर। 

 ऐसा कोई महल नहीं,
 जिसको मैंने  रचा नहीं
 शहर गाँव की सड़के भी,
 मेरे पसीने से बचा नहीं।

 दो रोटी के खातिर,
 तेरे शहर में मजदूर हुए।
 लाकडाउन के कारण,
 अब घर जाने मजबूर हुए।

 घर में रहकर खेती करता,
 फिर कामगार बन जाता हूँ।
 सुनकर मालिक के फरमान,
 मै  वफादार बन जाता हूँ।

 नहीं मेरे में रिश्वतखोरी,
 मेहनत से आगे बढ़ता हूँ।
 महलों और दीवारों को,
 फुरसत से  आगे गढ़ता हूँ।

 हम भारत के हैं मजदूर,
 हर गाँव शहर में रहते जरूर।
(2)
किसान का ब्यान 
दुनिया की नजर में जान गए।
मॉस्क लगाना सुथरा है,
कोरोना कहर से जान गए।

पहले कहते थे;घूमो फिरो,
अब कहते हैं घर में रहो।
आँखे अब तो थक सी गई है,
अब रक्षक जी  रहम करो।

नही कहीं है शोर शराबा,
घर पर रहना जान  गए।
जब से आया है; ये कोरोना,
परिवार पिरोना जान गए।

नही कहीं है नेह-निमंत्रण,
सब  चर्चाएं  बचे  रहे।
दूर दराज की जनम-मरण,
सब  खर्चांए बचे  रहे ।

घर में सब सोये बैठे ,
फसल काटता रहा किसान।
कर्मचारी भी घर में  बैठे ,
खेत जोतता रहा किसान ।

लाकडाउन से बंद उत्पाद,
राह देखता रहा खदान ।
व्यापारी सब बंद घरों में ,
दूध बेचता रहा किसान ।

सबका जीवन अन्न है साथी,
सब मानव का यह आहार।
पूरी सब्जी बिक नही पाती,
बंद पड़े हैं सब  बाजार ।

बढ़ ना पाए अब विपदा,
हे! रक्षक  हूंकार भरो ।
प्रकृति पुरुष; हे अन्तर्यामी,
क्रूर कोरोना संहार करो।

    रचनाकार:

  • आपसे अनुरोध है कि कोरोना से बचने के सभी आवश्यक उपाय किये जाएँ।
  • बहुत आवश्यक होने पर ही घर से बाहर जाएँ, मास्क का उपयोग करें और शारीरिक दूरी बनाये रखें।
  • कम से कम 20 सेकंड तक साबुन से अच्छी तरह अपने हाथों को धोएं। ऐसा कई बार करें।
  • आपकी रचनाएँ हमें हमारे ईमेल पता akbs980@gmail.com पर अथवा व्हाट्सप नंबर 8982161035 पर भेजें। कृपया अपने आसपास के लोगों को तथा विद्यार्थियों को लिखने के लिए प्रोत्साहित करने का कष्ट करें।

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