●ये मेहनतकश लोग●
ये मेहनतकश लोग
जो जा रहे हैं समूह में
देर शाम ही लौटेंगे अपने घर
किसी के कंधे पर
फावड़ा है कुदाल है
किसी के सिर पर
है तसला
किसी की साड़ी की छोर पर
बंधा है चूना-तम्बाखू
किसी के पीठ पर बंधा है
दुधपिया बच्चा
तो किसी की जेब में है
चिलम और बीड़ी का कट्टा
ये लोग
दिनभर करेंगे कड़ी मेहनत
बनायेंगे सड़क
जहाँ पर फर्राटा भरेंगी
कतारबद्ध अनगिनत गाड़ियां
ये बनायेंगे बड़ी-बड़ी इमारतें
शॉपिंग मॉल/बहुमंजिला होटल
जहाँ इन्हें बाद में
कदम रखना भी मुमकिन न होगा
ये लोग
जो जा रहे हैं समूह में
भरी दोपहरी में
किसी पेड़ के नीचे
या किसे खुले मैदान में
थोड़ा करेंगे आराम
पुरुष-
थकान उतारने
लगायेंगे कश
उड़ायेंगे धुँआ
स्त्रियाँ-
बतियाएंगी बात इधर-उधर की
सब मिल हांकेंगे गप्पे
पलभर के लिए भरेंगे खर्राटे
कुछ देर बाद फिर
शुरू हो जायेंगे पत्थर तोड़ने
इस कमरतोड़
मेहनत के बाद
पसीने से तर
देर शाम को ही
लौट पायेंगे अपने-अपने घर
लौटते ही
स्त्रियाँ लग जाएँगी
झाड़ू-बर्तन, खाना-पानी में
और पुरुष सम्हालेंगे गाय-बैल
लग जायेंगे भूसा-चारा-सानी में
मुट्ठी भर अमीर
चूसते हैं ख़ून
इन मेहनतकशों का
जब भी देखता हूँ
इन्हें
इनके शोषित होने का आभास होता है ।
कविता - अमलेश कुमार
●अंतरराष्ट्रीय
मज़दूर दिवस की शुभकामनाएं●
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- आपकी रचनाएँ हमें हमारे ईमेल पता akbs980@gmail.com पर अथवा व्हाट्सप नंबर 8982161035 पर भेजें। कृपया अपने आसपास के लोगों को तथा विद्यार्थियों को लिखने के लिए प्रोत्साहित करने का कष्ट करें।
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