(1)
जनसंख्या की वृद्धि में, किया भवन निर्माण।
खेत-सड़क, पशुपालने, नावों का निर्माण॥
नावों का निर्माण, फर्नीचर पुल्ल बनाया।
उजाड़ किया है वन, अतिशय विनाश कराया।
आदिकाल सम्बन्ध का, कीन्हां नहिं तू शंका।
बिना सहोदर भाव, बढ़ा लिया जनसंख्या॥
(2)
प्रगति किया तूने भली, यही जरूरी होय।
आगे की भी सोच रख, अधिक जरूरी जोय॥
अधिक जरूरी जोय, प्रकृति संरक्षण कीजै।
भावी हित के हेतु, सीख औरन को दीजै।
प्रकृति सहोदर मान, करो न इनकी अवनति।
मान तुम्हारा होय, इनकी रुके न प्रगति॥
(3)
एक फूल के ही लिये, बगिया तू न उजार।
अगला दिन भी आयेगा, संकट होय अपार॥
संकट होय अपार, सोच आगे न कीन्हां।
वसुधा लीन्हि निचोड़, संसाधन हर लीन्हा॥
रखो सहोदर भाव, निज संतति को देख।
प्रकृति सन्तुलन बने, मर्यादित हो सब एक॥
(4)
वृक्ष हमारे मित्र हैं, वृक्ष हमारी जान।
वृक्षों की रक्षा करें, पर्यावरणी शान॥
पर्यावरणी शान, करो इनकी रखवाली।
रहे प्रदूषण दूर, खुशी तेरी घरवाली॥
यद्यपि तू संसार में, है कुशल बड़ा ही दक्ष।
रखो सहोदर भाव, बच जाय विनाश से वृक्ष॥
रचनाकार:
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