बुधवार, जून 17, 2020

बारूद :अनिल पटेल


सम्हल जाओ ऐ दुनिया वालो,    
वसुंधरा पर करो घातक प्रहार नहीं।
प्रकृति करती आगाह हर पल 
प्रकृति पर घोर अत्याचार नहीं॥

लगा बारूद पहाड, पर्वत उडाए,
स्थल रमणीय सघन रहा नहीं।
खोद रहा इन्सान खुद कब्र अपनी,
जैसे जीवन की अब  परवाह  नहीं॥

लुप्त  हुए  अब झील और झरने
वन्यजीवों को मिला मुकाम नहीं।
मिटा रहा खुद जीवन के अवयव 
धरा  पर बचा जीव का आधार नहीं॥

नष्ट किये हमने हरे भरे वृक्ष, लताएं  
दिखे कहीं हरियाली का अब नाम नहीं।  
लहलहाते थे कभी वृक्ष हर आंगन में     
बचा शेष उन गलियारों  का श्रंगार नहीं॥
   
कहाँ  गये  हंस और कोयल गौरैया,
गउओं का घरों में स्थान नहीं।   
जब बहती थी कभी दूध की नदियाँ 
कुओं, नलकूपों में जल का नाम नहीं॥

Ⓒअनिल पटेल,
नगनौड़ी, तहसील-जयसिंहनगर जिला शहडोल (मध्यप्रदेश)
[इस ब्लॉग में रचना प्रकाशन हेतु कृपया हमें 📳 akbs980@gmail.com पर इमेल करें अथवा ✆ 8982161035 नंबर पर व्हाट्सप करें, कृपया देखें-नियमावली

तनावमुक्त जीवन कैसे जियें?

तनावमुक्त जीवन कैसेजियें? तनावमुक्त जीवन आज हर किसी का सपना बनकर रह गया है. आज हर कोई अपने जीवन का ऐसा विकास चाहता है जिसमें उसे कम से कम ...