शनिवार, मई 09, 2020

हाय! मेरी माँ (कविता):मनोज कुमार


हाय! मेरी माँ
हे ! मां तू जग में, करुणा एवं प्रेम की प्रतिमूर्ति है।
इस पावन वसुंधरा में, तव वात्सल्य   की कीर्ति है॥
मां तू मुझे अपनी गोद की, आंचल  तरु  में छुपाया।
तू अमृत समान दूध पिलाकर,    चलना   सिखाया॥
हाय! मेरी माँ।


हे! मां तूने मुझे वसुधा में, पल्लवित,पुष्पित किया।
तूने  मेरे लालन-पालन में, कष्टों का प्याला पिया॥
माँ तू अपने इस जीवन को,  मेरे स्नेह में तपाई।
तू  मुझे आह्लादित करने के लिए, प्रेम की लोरी गाई॥
हाय ! मेरी माँ।

जब मुझे कसक होता है, तो हो   जाती अधीर।
मुझे खुश पाते ही, नयन से बहता प्रेम का नीर॥
हे! जगत जननी माँ,  मैं तेरे कितना हूं करीब।
तुझ जैसा माँ पाकर, मैं हूँ कितना खुद नसीब॥
हाय! मेरी माँ।

हे! माँ तू वात्सल्य  सौंदर्य है, इस भारत देश की।
तुम्हारी नेह कीर्ति अमर है, सगुण मूर्ति सर्वेश की॥
इस पावन सी वसुंधरा की, तव   बंदिनीय नारी है।
तू मां मेरे लिए इस जग में,  जननी सुख प्यारी है॥
हाय! मेरी माँ।

हे ! माँ तू इस धरा में, बहाती प्रेम की रसधार हो।
निज करुणा बरसाती रहो, मेरा जीवन साकार हो॥
माँ तुझे जीवन में पाकर, दूर होता हृदय का ताप है।
मिटता है तन का दु:ख ,और मिटता ह्रदय का पाप है॥
हाय! मेरी माँ।

हे! माँ तुम्हारी सुत प्रेम की, गाथा जग में अपार है।
मां तू मेरी करुण भरी, जिंदगी का मुख्य आधार है॥
हे मां अपने चरणों में, मेरा अभिवादन स्वीकार करो।
सदमार्ग की प्रेरणा देकर, इस भव से नैया पार करो॥
हाय! मेरी माँ।
काव्य रचना:
© मनोज कुमार चंद्रवंशी, विकासखंड पुष्पराजगढ़
जिला अनूपपुर (मध्य प्रदेश ) मोबाइल नंबर-9399920459
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