आधुनिक युग में जहाँ बालिकाओं को पढ़ाने के लिए सरकारी सहायता दी जाती है। फिर भी बालिकाओं को उच्च शिक्षा तक जोड़े रखना कठिन महसूस होता है। तब सावित्री बाई फुले जैसी विदुषी को याद करना लाजिमी हो जाता है जिसने तमाम विरोधों के बावजूद न केवल बालिकाओं को पढने-लिखने के लिए प्रोत्साहित किया बल्कि इसके लिए स्वयम अनेक विद्यालय भी खोले। सावित्री बाई फुले ने समाज से लड़कर देश की हर महिला के लिए पढ़ने का हक़ दिलाया। महिला शिक्षा के क्षेत्र में आज भी हमारा देश काफी पिछड़ा है। देश के कई हिस्से ऐसे है जहाँ आज भी बालिकाओं को पढ़ाया-लिखाया नहीं जाता।
ज़रा सोचिये आज से करीब 160 साल पहले क्या हाल रहा होगा और कल्पना कीजिए एक औरत के बारे में जिसने उस जमाने में महिला शिक्षा के लिए लोगों को प्रेरित किया। क्या कहेंगे आप उस महिला को? भारत की उस बहादुर महिला ने डेढ़ सौ साल पहले समाज के भारी विरोध के बाद भी देश की महिलाओं में शिक्षा की अलख जगाई। वह महानायिका थी भारत की प्रथम शिक्षिका सावित्री बाई फुले।
जन्म और बचपन
सावित्रीबाई ज्योतिराव फुले का जन्म 3 जुलाई 1831 को हुआ था। सावित्री बाई फुले को बचपन में स्कूल नहीं भेजा गया था क्योंकि उस वक्त लड़कियों को पढ़ाना-लिखाना गलत समझा जाता था और ऐसा माना जाता था कि लड़कियों का काम शादी से पहले माता-पिता के घर की सेवा करना और शादी के बाद ससुराल की देखभाल करना ही होता है।
एक बार सावित्री कोई किताब पलट रही थी। यह देखकर उनके पिता बहुत क्रोधित हुए और सावित्री से किताब छीन ली। उनके पिता ने किताब ज़रूर छीन ली थी पर सावित्री के मन से पढने का ज़ज्बा वे नहीं निकाल पाए।
ज्योतिबा फुले से विवाह और जिंदगी में बदलाव
कहते है न जहाँ चाह है वहां राह है। 9 वर्ष की आयु में सावित्री का विवाह ज्योतिबा फुले से हुआ जो प्रसिद्ध समाजसेवक और शिक्षक थे ज्योतिबा की देखरेख में सावित्री ने पढ़ना सीखा। 1848 में सावित्री ने भारी विरोध के बाद भी देश का पहला कन्या विद्यालय खोला। उस समय उस स्कूल में मात्र 9 बालिकाओं ने दाखिला लिया था। सावित्री बाई उन बालिकाओं की मुश्किलें समझती थी क्योंकि जब सावित्री बाई स्वयं पढने जाती थी तो लोग उन पर भी पत्थर फेंकते थे और तरह तरह से परेशान करते थे। देखते ही देखते एक वर्ष में विद्यालयों की संख्या एक से बढ़कर पांच कन्या विद्यालयों की हो गयी।
सावित्री बाई फुले देश की पहली महिला शिक्षक तो थीं ही। उन्हें ही देश की पहली महिला प्रधानाध्यापक होने का भी गौरव प्राप्त हुआ। ज़रा सोचिये उस दौर में सावित्री बाई के लिए लड़कियों की पढाई के लिए लड़ना कितना मुश्किल रहा होगा लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और भारत में महिला शिक्षा की शुरुआत करके ही दम लिया। 10 मार्च 1897 को प्लेग के कारण सावित्रीबाई फुले का निधन हो गया। प्लेग महामारी में सावित्रीबाई प्लेग के मरीज़ों की सेवा करती थीं। प्लेग के छूत से प्रभावित एक बच्चे की सेवा करने के कारण उनको भी छूत लग गया। और इसी कारण से उनकी मृत्यु हुई।
सावित्री बाई फुले ने जो किया उसके लिए भारत की हर लड़की उनकी ऋणी रहेगी। सावित्री बाई फुले सिर्फ अपने स्कूल की लड़कियों की ही शिक्षक नहीं थी वो तो भारत की हर महिला की शिक्षक थी आखिर सावित्री बाई फुले ही तो थी जिनकी वजह से आज ना सिर्फ हर महिला आसानी से पढ़ सकती है अपितु पुरुष से कन्धे से कन्धा मिलाकर चल सकती हैं।
प्रस्तुति: अनिल पटेल, नगनौड़ी
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2 टिप्पणियां:
धन्यवाद.........,!
अनिल जी का धन्यवाद !
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