मान्यताएं, वह विश्वास है जिसे लोग बिना जांच-परख किए मानते हैं. कुछ मान्यताएं ऐसी हैं जिनसे किसी प्रकार की हानि की आशंका नहीं है पंरतु कुछ मान्यताएं इतनी आत्मघाती होती हैं कि वह लोगों के प्राण तक ले लेती हैं. आप प्रचलित जिन मान्यताओं पर विश्वास करते हैं, क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसी मान्यताएं सम्पूर्ण समाज के पतन का कारण भी बन सकती हैं? संभवतः उन मान्यताओं के मानने या न मानने से आपका बहुत लाभ या हानि नहीं हो रही हो परन्तु आप उन मान्यताओं को आगे बढ़ाने के दोषी तो हैं ही. दोषी इसलिए कि जिन मान्यताओं को आपने आगे बढाया उनसे किसी को बलि पर चढ़ा दिया जाता है तो किसी की सामाजिक प्रतिष्ठा छीन ली जाती है और न जाने कितनी पीढियां इस मान्यता के पीछे खुद को अवनत करती रहेगी.
हम गलत मान्यताओं से
बाहर कैसे निकलें, उन उपायों की चर्चा करने से पहले हमें हमारे मस्तिष्क की
कार्यप्रणाली को जानना होगा, जो काफी रुचिकर भी है. हम हमारे जिस दिमाग का
इस्तेमाल करते हैं, आपको पता होना चाहिए, उस दिमाग के पास अपना कोई दिमाग नहीं है.
आप जितनी जल्दी इस बात को जान और मान लेंगे, आपको गलत मान्यताओं से बाहर निकलने
में उतनी अधिक आसानी होगी. एक और बात कि हमारे दिमाग में किसी चीज को गलत या सही
ठहराने की कोई युक्ति नहीं है. जिस प्रकार हम जिन निर्देशों और सूचनाओं को कंप्यूटर के मष्तिष्क में प्रविष्ट करते हैं,
उन्हीं निर्देशों के आधार पर वह सूचनाओं को दूसरे माध्यम से बाहर करता है. उसी
प्रकार हम जिस तथ्य/घटना/सूचना को सही या गलत ठहराते हैं, उसका निर्णय हमारा
मस्तिष्क उस तथ्य/घटना/सूचना के सम्बन्ध में हमारे दवारा मष्तिष्क में भेजे गये पूर्व
निर्देशों और सूचनाओं के आधार पर करता है.
यह आवश्यक नहीं है
कि हम निर्देशों और सूचनाओं को यत्न पूर्वक ही मष्तिष्क में भेजते हैं. हमारी
ज्ञानेन्द्रियाँ कंप्यूटर के इनपुट की तरह काम करती हुई सूचनाओं को स्वतः ही हमारे
मष्तिष्क में भेजती रहती हैं. हमारा मस्तिष्क सूचनाओं और निर्देशों की आवृत्ति/उपयोगिता और हमारे मन
पर पड़े प्रभाव के आधार पर उसे लघु या दीर्घ समय के लिए संचित कर लेता है. इन
निर्देशों को संचित करना और वर्गीकृत करना भी हमारे द्वारा पूर्व में भेजे गए
निर्देशों के आधार पर होता है. इन बातों से यह स्पष्ट होता है कि हमारा मष्तिष्क
हमारे द्वारा भेजी गयी सूचनाओं और निर्देशों के आधार पर निर्णय लेता है और निर्देश
और सूचनाएं हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ हमारी अनुमति के बगैर भी मष्तिष्क में भेजती रहती
है.
हम जिन मान्यताओं पर
विश्वास करते हैं, हम उन्ही मान्यताओं के परिवेश में पले-बढे हैं. और इसलिए वैसी
मान्यताएं हमारे मष्तिष्क में सहज ही समाती चली गयी हैं. किसी ने कहा, बिल्ली के
रास्ता काटने पर आगे नहीं बढ़ना चाहिए, अपशकुन होता है. पहली बार हमारा मस्तिष्क उस
पर विश्वास नहीं करता (शंका करना दिमाग का स्वभाव है). परन्तु हमारे परिवेश में यह
बात समायी हुयी है. इसलिए हमने फिर इसी बात को सुना. हमारे मस्तिष्क ने फिर भी
विश्वास नहीं किया. लेकिन अगली बार किसी ने हमें एक आप बीती सुना दी. वह काम के
लिए जा रहा था, बिल्ली ने उसका रास्ता काट दिया और उस दिन उसका काम नहीं हुआ.
आज हमारे दिमाग में पूर्व में भेजी गई सूचना कि बिल्ली के रास्ता काटने से अपशकुन
होता है, उसे एक सन्दर्भ मिल गया. इसे सन्दर्भ निर्माण कहते हैं. हमारा
मस्तिष्क सन्दर्भों से सीखता है. एक बार उसने फिर अविश्वास किया कि नहीं हो
सकता है यह आदमी झूठ बोलता हो, परन्तु फिर किसी और ने किसी और दिन वही कहानी सुना
दी. धीरे-धीरे उसका विश्वास उसकी मान्यता में बदल गया कि हाँ, बिल्ली के रास्ता काटने पर
अपशकुन होता है. अब बात पक्की हो गयी. आज हमारे मष्तिष्क का संशय दूर हो गया.
मस्तिष्क का संशय दूर होना बहुत खतरनाक स्थिति होती है. यदि आपको गलत मान्यताओं से
बचना है, आपको गलत सन्दर्भों से बचना होगा, गलत सन्दर्भों पर विश्वास करने से बचना
होगा. आपने पंचतंत्र की कहानियां पढी होंगी. आचार्य, शिष्यों को कोई भी बात
सीधे-सीधे नहीं कहते, वह कहानियां कहते हैं. कहानियाँ सन्दर्भ निर्माण में बहुत
उपयोगी हैं. पुराणों में भी छोटी-छोटी कहानियों/आख्यानों का सहारा लिया गया है.
गलत संदर्भों से हम
केवल गलत मान्यताओं का ही निर्माण नहीं करते बल्कि हम किसी की क्षमता का पतन भी करते
हैं. इस बात को शिक्षकों और अभिभावकों को ठीक तरह से समझना चाहिए. हम जिस बालक को
कहते हैं, तुम कुछ नहीं कर सकते, तुम्हारे भीतर वह क्षमता ही नहीं है. हम उसके मष्तिष्क
को इसी बात पर विश्वास कर लेने के लिए बाध्य कर रहे हैं. हमारा मष्तिष्क सन्दर्भों पर विश्वास करता है.
माँ ने कहा, तुम तो गधे हो. बच्चे को शंका हुई, क्या वह गधा है? उसके पिता ने भी
वही बात कह दी, उसे कुछ-कुछ विश्वास हो गया, वह गधा है. ऊपर से उसके शिक्षक ने भी
वही बात दुहरा दी, उसका विश्वास पक्का हो गया. इन्सान के रूप में जन्मा बालक गधा
बनकर बड़ा हुआ. कुछ लोगों के लिए नालायक,
गधा कहना उनका तकिया कलाम बन जाता है, परन्तु जाने-अनजाने हम बालकों को गलत
सन्दर्भ देने के दोषी बन रहे हैं. हमारा मष्तिष्क सन्दर्भों पर विश्वास करता है.
बच्चों को कभी भी हीनताजन्य शब्दों से संबोधित नहीं करना चाहिए. उनका मष्तिष्क
उन्ही शब्दों पर विश्वास कर लेता है. बच्चों की क्षमता को प्रोत्साहित करने वाले
शब्दों से उन्हें संबोधित करना उनके लिए सही सन्दर्भ का निर्माण करना है. किसी
बालक के सामने किसी और बालक की विफलताओं की कहानी कहेंगे, उस कहानी को बालक खुद के
सन्दर्भ में ग्रहण करेगा. उसका मष्तिष्क उस कहानी पर विश्वास कर लेगा.
हमारे परिवेश में
गलत मान्यताओं के रूप में केवल जादू-टोना ही नहीं है. यह तो हैं ही गलत मान्यताएं परन्तु
कुछ और भी हैं. हमारी गलत मान्यता है कि हममें से कोई आई.ए.एस. की परीक्षा
उत्तीर्ण नहीं कर सकता. आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि ह्ममें से किसी ने भी आई.ए.एस.
की परीक्षा की तैयारी ही नहीं की या बहुत थोड़े लोगों ने की. जिन लोगों ने कोई
तैयारी नहीं की, वही कहते फिर रहे हैं कि हममें से कोई आई.ए.एस. की परीक्षा
उत्तीर्ण नहीं कर सकता. और इतने थोड़े लोगों का (या बिल्कुल नहीं) आई.ए.एस. की परीक्षा में शामिल होने के पीछे
ऐसी गलत मान्यताएं ही जिम्मेदार हैं. यदि हम इस मान्यता को बदलें, समुदाय के बीच उन
लोगों की कहानियां पहुंचाएं जो आई.ए.एस. की परीक्षा में उत्तीर्ण हो रहे हैं,
लोगों को आई.ए.एस. की परीक्षा की तैयारी के लिए प्रोत्साहित करें तो पहले लोग जाना
शुरू करेंगे फिर कुछ दिनों में आई.ए.एस. की परीक्षा उत्तीर्ण भी करने लगेंगे.
पुरानी मान्यताओं को
ढहाना इतना आसान नहीं है. मान्यताएं तब तक नहीं बदल सकतीं जब तक कि सन्दर्भ न बदल
दिए जायें. आपको पुराने सन्दर्भों के स्थान पर नये सन्दर्भ प्रयोग करने होंगे. खुद
का भी सन्दर्भ बदलना होगा. यदि आपने लगातार विफलता की कहानियां सुनी हैं, ऐसे
लोगों से घिरे रहे हैं जो निराश हो चुके हैं, वह आपको सही सन्दर्भ नहीं दे सकते.
आपको उस परिवेश से अलग होना होगा. आपको सफल हो चुके लोगों की कहानियां ढूढनी होगी.
यदि आप सफल होना चाहते हैं, आपको सफल व्यक्तियों से मिलना चाहिए. यदि आप जादू-टोने
पर विश्वास रखते हैं, और ऐसे ही लोगों से घिरे हैं आप ऐसी मान्यता से कभी मुक्त
नहीं हो सकते. आपको उन व्यक्तियों की बात सुननी होगी, जो इन पर विश्वास नहीं करते. इन्टरनेट पर
जादू-टोने को बेनकाब करने वाली सामग्री उपलब्ध हैं. हम उनसे सही सन्दर्भ का
निर्माण कर सकते हैं.
गलत मान्यताओं से
समुदाय का बहुत नुकसान हुआ है. ग्रामीण परिवेश में सही सन्दर्भों का अभाव है.
अशिक्षा और जागरूकता का अभाव मान्यताओं को जड़ता प्रदान करते हैं. जादू-टोने के चक्कर में
हम कितने ही परिवारों की प्रतिष्ठा समाप्त कर देते हैं. कितनी ही महिलाओं को मारा-पीटा जाता है. उनके साथ अत्याचार किया जाता है.
ओझा-पंडा बने लोग व्यवसाय करते हैं. लोग इन मान्यताओं में पड़कर इलाज नहीं कराते,
और असमय मौत का शिकार होते हैं. आज देश में बाबाओं का जो मकडजाल फैला है, उसके
पीछे गलत मान्यता ही जिम्मेदार है. ऐसे बाबाओं की जब असली कहानी सामने आती है तब
उनके संपर्क में गया परिवार शर्मसार होता है. विडंबना है कि तकनीक ने गलत
मान्यताओं को बढाने में सहयोग किया है. उसने गलत संदर्भों को व्यापक क्षेत्र में
प्रसारित करने में मदद की है. हमें गलत मान्यताओं के प्रसार में सहयोगी बनने से
बचना होगा. टीवी चैनलों और इन्टरनेट पर गलत मान्यताओं पर आधारित व्यवसाय फलफूल रहा
है और लोग लुट रहे हैं. कृपा करके गलत मान्यता पर आधारित कहानियां लोगों को सुनाने
से परहेज करें. यह कहने से परहेज करें के किसी ओझा के झाड़-फूंक करने से आपकी
बीमारी ठीक हो गई. यह नहीं कहें के किसी ओझा से झाड़-फूंक कराने से किसी को संतान
की प्राप्ति हो गई. यह नहीं कहें कि किसी ओझा के झाड़-फूंक करने से आप धन-धान्य हो
गये. आपके साथ जो कुछ हुआ वह ओझा के झाड़ने से नहीं बल्कि प्रायिकता के नियम के
अनुसार हुआ. किसी भी घटना के पीछे कई संभावनाएं विद्यमान होती हैं, प्रत्येक
सम्भावना का एक निश्चित अनुपात होता है, इसे ही प्रायिकता कहते हैं. बाबा और ओझा
लोग इसी का फायदा उठाते हैं. कुछ को मष्तिष्क
के उसी विश्वास और इच्छाशक्ति का फायदा होता है, जिसकी चर्चा कर चुके हैं. आपने
कहा, झाड़-फूंक से आप ठीक हो जाओगे, और वह ठीक हो गया.
गलत मान्यताओं के
कारण लोग नया व्यवसाय नहीं अपनाते. लोग अपने बच्चों को बाहर पढने नहीं भेजते. लोग
विश्वास दिलाते हैं कि आप व्यवसायी नहीं बन सकते और आप शुरुआत नहीं करते. यह गलत
मान्यता का दुष्परिणाम है. आज व्यवसाय का भू-मंडलीकरण हो चुका है. व्यवसाय के
नये-नये स्वरुप बन गये हैं. लेकिन जिस व्यक्ति के मन में मान्यता स्थापित कर दी गई
है कि वह व्यवसाय नहीं कर सकता, वह कैसे व्यवसाय करेगा. हीनता के सन्दर्भ के स्थान
पर प्रोत्साहन के शब्दों का प्रयोग करना होगा. क्योंकि हम जो कहेंगे हमारा मष्तिष्क
उन्हीं शब्दों पर विश्वास कर लेगा.
गलत मान्यताओं के
स्थापन में आज पढ़ा-लिखा वर्ग कहीं अधिक दोषी है. समुदाय में उसका प्रभाव है. वह समुदाय
का नेतृत्व करता है. कम पढ़ा-लिखा वर्ग मान्यताओं को इसलिए मानता है क्योंकि उसे
वैसी मान्यता विरासत में मिली हैं. उसे गलत सन्दर्भ विरासत में प्राप्त हुए हैं. पढ़े-लिखे
वर्ग को सूरज और चाँद की असलियत पता है, गृह और उपगृह की स्थिति पता है, उसे
सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण के कारण पता है. किन्तु वह इन वैज्ञानिक कारणों को समुदाय
तक पहुंचाने के बजाय स्वयं को समुदाय की मान्यता में सहभागी बना लेता है.
चुप रहने और सहने से
गलत मान्यताओं को गति मिलेगी. वह समय के साथ आगे बढेंगी. जिससे आने वाली पीढी का
भी नुकसान होगा. मस्तिष्क में गलत सन्दर्भ जाने देने से बचाइये. अपने बच्चों को
जिन्हें इतने मंहगे स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ाने का सपना पाला है, उन्हें उनकी
क्षमता पर भरोसा करना सिखाइए. आप गलत मान्यताओं का पालन करेंगे और बच्चों को उन
मान्यताओं से दूर रहने की सीख देंगे. ऐसा नहीं चलेगा. आप स्वयं ही उन्हें गलत सन्दर्भ दे रहे हैं. अतः स्वयं को
उन सन्दर्भों को पैदा करने से बचाइए जिनसे गलत मान्यताएं स्थापित होती हैं. जो आप
कहते हैं, वह औरों के लिए सन्दर्भ है, आप जो सुनते हैं, वह औरों का सन्दर्भ है....
और हमारा मष्तिष्क हमारे सन्दर्भों से सीखता है. इसलिए गलत संदर्भो को न कहिये, न
सुनिए और सही संदर्भों को जरूर कहिये, जरूर सुनिए.
प्रस्तुति- सुरेन्द्र कुमार पटेल
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2 टिप्पणियां:
व्यवस्थाएं मानव निर्मित हैं, इसमे जोड़ना एवं घटाना पूरी तरह संभव है । पूर्व में समाज सुधारकों ने सामाजिक कुरीतियों पर लिखा,बोला और समाज की दिशा , दशा बदलने के लिए प्रयासरत रहे हैं । इसलिए समाज का बुद्धिजीवी जिस तरह का आचरण व्यवहार करते हैं वही शेष समाज के लिए अनुकरणीय बनता है।
परंतु कुरीतियां, व्यवस्थाएं प्रचलन कई बार समाज के शीर्ष वर्ग , एवं राजनैतिक संस्थानों के लिए सत्ता के माध्यम की तरह काम करते हैं तब उस परिस्थितियों में इसपर लिखना बोलना कहना आसान नही होता क्योंकि गलत मान्यताओं एवं परंपरा को राजनीतिक बल मिला होता है। पिछले कुछ सालों में ब्लॉगर्स , लेखकों की हत्तायें हुई हैं और उनको अंजाम देने वालों को पकड़ा नही गया। आज न्यूज़ चैनल भी झूंठ और कुरीति फैलाने में अपना खूब योगदान दे रहे हैं ।राशिफल बताने और धनलक्ष्मी यंत्र बेचने वाले कई आस्था चैनल सक्रिय हैं। आपने अपने ब्लॉग से इस विसय पर लोगों का ध्यान खींचा है आपको बहुत बहुत साधुवाद । उम्मीद करता हूँ प्रकाश चारो तरफ फैलेगा, दूर तक जाएगा ...
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