मै मजदूर हूं
देश की मैं नींव हूं,
सबसे बड़ा गरीब हूं।
दो जून की रोटी की खातिर,
घर छोड़ने को मजबूर हूं।
क्योंकि मैं मजदूर हूं।..-2
पसीने से सींच कर,
मैंने करोड़ो महल बनाए।
जब आयी मुसीबत मुझ पर,
तो महलों के ही मालिक न अपनाएं।
धूप पसीने से मैंने,
खुद को जला डाला।
तब जाकर बच्चों की खातिर,
मैं ला पाया एक निवाला।
इस पेट की खातिर सब सहने को मजबूर हूं,
क्योंकि मैं मजदूर हूं।...-2
महलों के जो बन बैठे मालिक,
हवाई यात्रा कर रहे।
और हम घर जाने की खातिर,
पैदल चलते-चलते मर रहे।
चलते चलते पैरों में मोटे छाले पड़ गए,
कुछ ने तो देखा साहब, कुछ देखकर भी निकल गए।
झूठे यह सरकारी पुतले,
ना जाने क्या क्या कह गए।
भोजन देने की आड़ में,
हमारा मजाक बना कर चले गए।
इस भूख और लाचारी में, फोटो खिंचाने को मजबूर हूं।
क्योंकि मैं मजदूर हूं।। क्योंकि मैं मजदूर हूं।।
©सतीश कुमार सोनी
जैतहरी, जिला-अनूपपुर (म०प्र०)
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