रविवार, नवंबर 10, 2019

*विचारों का दर्पण* ●अंजली सिंह


*विचारों का दर्पण*
●अंजली सिंह
रहीम की सजदा है तेरी,
राम का जयकार  मेरा !
इस जमी की छांह तेरी,
उस जहां का धूप मेरा!
रजनी की परछाई तेरी,
प्रभात का आलोक मेरा!
तोड रहे क्यो धरा की ,
ममत्व का स्वरूप सारा!
क्यों सता रही है सबको?
स्वार्थ की घनघोर घेरा!
मानता तू क्यों नही मन?
कण-कण में साहिब है तेरा!
कोलाहल का विष लिए तू,
जल गया है जिस्म  सारा!
घाव में मरहम  लगा तू ,
तोड़कर अवसाद कारा!
खाक में मिल जाएगा तन ,
मिल न पाएगा  दुबारा !
जंग को मत दे बुलावा ,
शांति की तू बहा धारा!
खुशियो से तू भर ले दामन ,
एक दूजे का बन सहारा!
भाव सुन्दर जो हुए तो.
देश होगा सबसे न्यारा।

(राज्यपाल पुरस्कार प्राप्त, 2018)
     उच्च माध्यमिक शिक्षक
 शास. उ. मा. विद्यालय भाद
   जिला-अनुपपुर (मध्यप्रदेश)

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1 टिप्पणी:

रजनीश रैन ने कहा…

सच,आपकी कविता में हृदय की स्पर्शिता प्रतिबिंबित हो रही है.... आपके भाव -चित्र को प्रणाम है ....

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