हे छात्रों, आलस त्यागो
हे छात्रों आलस त्यागो,
गहरी निद्रा से तुम जागो।
देखो,कर्तव्य तुम्हें बुलाएं
सपने देख तुम्हें मुस्काएं।
सहस्त्र सूर्य का तेज लिए,
क्यों तुम मन निस्तेज किए।
तुम धरा के उत्साही धावक हो,
करने जीवन कुंदन, तुम पावक हो।
सागर-सा गहरा जिसका हृदय,
उसमें होता प्रेम-भाव उदय।
निर्मित कर चलो निज पथ,
तुम्हीं पूर्ति कर सकते संकल्प, शपथ।
प्रात उठो और सरपट दौड़ो,
श्रम साधना से विमुख न हो।
ध्यान लगाओ अध्ययन में,
निद्रा बसाओ न नयन में।
समय नित्य क्रिया का तय हो,
शाला जाने का न भय हो।
गृह कार्य कभी अपूर्ण रहे न,
अक्षम, अज्ञानी कोई कहे न।
विनीत भाव से आदर हो शिक्षक का,
अचूक ज्ञान-ग्रहण हो अक्षर-अक्षर का।
जो कुछ समझ न आये,
पूछने में मन क्यों घबराए।
खुश होते शिक्षक जिज्ञासु से,
करते प्रेम सदा ज्ञान पिपासु से।
शाला में मित्र भले अनेक हों,
ध्यान रहे वे सब नेक हों।
शिक्षा का अनुगामी होना ध्येय रहे,
शिष्टजनों का ऋण न अदेय रहे।
घर में भी कुछ हाथ बटाना सीखो,
अपने प्रियजनों की तकलीफ मिटाना सीखो।
कर्तव्यपूर्ति कर और अधिक कर्तव्य तुम मांगो,
उत्तरदायित्व छोड़ कभी न तुम भागो।
हे छात्रों आलस त्यागो,
गहरी निद्रा से तुम जागो।
रचना:सुरेन्द्र कुमार पटेल
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1 टिप्पणी:
शानदार कविता
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