गुरुवार, अक्टूबर 10, 2019

गुस्सा काहे करे रे मानव:पंकज यादव


गुस्सा काहे करे रे मानव
पंकज कुमार यादव
गुस्सा काहे करे रे मानव,
जिसका न कोई आदि न अंत।
गुस्सा तुझको खा जाएगा,
फिर तू पछताएगा अनंत।

है गुस्से की तीव्र भावना,
सोचने की प्रवृत्ति खत्म।
जुर्म की है यही भावना,
दिमाग पूरी तरह से भस्म।

आर्यभट्ट ने कही कहानी,
सुन मूरख मानव फलकामी,
जिसकी सोच हो तेरे जैसी,
उसकी होगी भलाई कैसी।

कलयुग की यह दुनिया,
इसमें ना कोई सीताराम।
सोच समझकर करोगे कर्म सदा,
तो बन जाओगे बेहतर इंसान।

गुस्से से शरीर होता नष्ट,
चाहने वालों को होता कष्ट।

चाहे जितना खा लो फल,
सदा रहोगे तुम असफल।

गुस्से से होती है मौत,
चाहे हो अपना या हो सौत।

बड़े बुजुर्ग भी जाते हैं डर,
शब्द गुस्सा वाला सुनकर।

गुस्से से होती है हानि,
नशा है यह, नहीं है पानी।

जिससे डरती दुनिया सारी,
इससे होती कई बीमारी।

किसी से मिलती ना इज्जत,
ना देता कोई आराम।
घर में बैठे रह जाओगे,
सदा मिलेगा यही परिणाम।

गुस्सा आग समान है,
जिसमें जलकर सबकुछ होता राख।
क्या बुरा और क्या भला,
सबको मिलती इसकी आंच।

हम सब हैं बच्चे उसके,
हम पर गुस्से की छाया।
हम सब लेते हैं शपथ,
अब यह गुस्सा नहीं दिखाना।
रचना:पंकज कुमार यादव
ग्राम-बिहार, पोस्ट-गौरेला,
तहसील-जैतहरी, जिला-अनुपपुर(मध्यप्रदेश)
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