:दादा वल्लभ की सांसें वतन के लिये:
दादा वल्लभ की सांस थी वतन के लिये,
उनकी हर आस थी इस वतन के लिये।
जिन्दगी की कभी भी न परवाह की,
पग बढ़ाया हमेशा वतन के लिये।।
कभी अन्याय सहना न सीखा था वह,
दया करुणा की समझो तो सागर था वह,
दीन-हीनों का समझो पुजारी था वह
उनका सपना भी होता वतन के लिये।।
धूर्त दुष्टों का अन्याय सहकर के भी,
आंग्ल क्रूरों के कोड़ों से छिल करके भी,
बन्दी खाने में भूखा ही रहकर के भी,
उनकी हर चाह होती वतन के लिये।।
पड़ा दुर्भिक्ष बेहाल जनता हुई,
भूखे प्यासे भरें टैक्स दुगुनी हुई,
तब कुशासन विरोधी कृषक सेना ले,
किया बारडोली क्रान्ति वतन के लिये।।
जान लेकर हथेली में निर्भय लड़े,
देश दुश्मन के कानून थे सिर चढ़े,
झुका अंग्रेज़ी नीति को सरदार बन,
पदवी एमपी को छोड़ा वतन के लिए ॥
देशी सारे रियासत को सम्मिलित किया,
सार्वभौमिक बना देश अखण्डित किया,
रहे लोहा सा दृढ़ लौहपुरुष थे बने,
खुद समर्पित रहे हैं वतन के लिये।।
हाथ उनके हजारों उठे साथ में,
कार्य उनके हजारों करें साथ में,
सबसे रखते सहोदर सरल भावना,
सबल संगठन बनाया वतन के लिये।।
पग बढ़ाया हमेशा वतन के लिये।।
रचनाकार: राम सहोदर पटेल, सहा. शिक्षक
शासकीय हाईस्कूल नगनौड़ी, निवास ग्राम- सनौसी थाना- ब्योहारी जिला- शहडोल (मध्यप्रदेश)
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