26 जनवरी 2020 को भारतवर्ष अपना 71 वाँ गणतंत्र दिवस मनाने जा रहा है. इस दिन शासकीय और निजी संस्थाओं में समारोह का आयोजन होता है जिसमें तिरंगा ध्वज फहराया जाता है. राष्ट्रगान 'जन-गण-मन' और राष्ट्रगीत 'वन्दे मातरम्' गाया जाता है. ये तीनों ही हमारे राष्ट्रीय प्रतीक हैं जो हमारे राष्ट्र की गरिमा का बोध कराते हैं. अतः यह प्रत्येक भारतीय का कर्तव्य है कि वह इन प्रतीकों का इस तरह प्रयोग करे कि इन प्रतीकों के प्रयोग के दौरान जाने-अनजाने अपमान न हो. इसके लिए यह आवश्यक है कि इन प्रतीकों के सम्बन्ध में संसद द्वारा पारित कानूनों/नियमों एवं दिशानिर्देशों की समुचित जानकारी हो.
राष्ट्रीय ध्वज 'तिरंगा'
(अ) इतिहास- भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को इसके वर्तमान स्वरूप में 22 जुलाई 1947 को आयोजित भारतीय संविधान सभा की बैठक के दौरान अपनाया गया था. इसके पूर्व तिरंगे का जो स्वरूप था उसकी कहानी आँध्रप्रदेश के मछलीपत्तनम के निकट भात्लापेनुमारू के एक युवक पिंगली वेंकैया द्वारा डिजाइन किये ध्वज से प्रारम्भ होती है. इनके द्वारा विभिन्न देशों के झंडों का अध्ययन किया गया था. अपने अध्ययन के आधार पर इन्होंने 1921 में कांग्रेस पार्टी के लिए जो झंडा सुझाया था उसमें केवल दो रंग थे. लाल और हरा. लाल हिदुओं के लिए और हरा मुस्लिमों के लिए. गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए। वर्ष 1931 में तिरंगे ध्वज को हमारे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने के लिए कांग्रेस द्वारा एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें गांधीजी के सुझाव को शामिल कर लिया गया . यह ध्वज जो वर्तमान स्वरूप का पूर्वज है, केसरिया, सफेद और मध्य में गांधी जी के चलते हुए चरखे के साथ था। तथापि यह स्पष्ट रूप से बताया गया इसका कोई साम्प्रदायिक महत्व नहीं था। आजादी के कुछ दिनों पूर्व हुयी संविधान सभा की बैठक में इसमें संसोधन करने का निश्चय किया गया. इसमें चरखे की जगह अशोक चक्र ने ली जोकि भारत के संविधान निर्माता बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर जी ने सुझाया। इस नए झंडे की देश के दूसरे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने फिर से व्याख्या की। भारत के राष्ट्रीय ध्वज की ऊपरी पट्टी में केसरिया रंग है जो देश की शक्ति और साहस को दर्शाता है। बीच में स्थित सफेद पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का प्रतीक है। निचली हरी पट्टी उर्वरता, वृद्धि और भूमि की पवित्रता को दर्शाती है। ध्वज के बीचोंबीच स्थित धर्म चक्र को विधि का चक्र कहते हैं जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बनाए गए सारनाथ मंदिर से लिया गया है। इस चक्र को प्रदर्शित करने का आशय यह है कि जीवन गतिशील है और रुकने का अर्थ मृत्यु है।
(ब) आम जनता को राष्ट्रीय ध्वज को फहराने की अनुमति- पूर्व में आम जनता को राष्ट्रीय ध्वज को फहराने की अनुमति नहीं थी. सर्वोच्च न्यायालय के एक निर्णय द्वारा इसे कुछ प्रतिबंधों के साथ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत मौलिक अधिकार माना गया और आमजन को भी तिरंगा फहराने की अनुमति प्राप्त हुयी.
याचिकाकर्ता, नवीन जिंदल, एक कारखाने के संयुक्त प्रबंध निदेशक थे, जिनके कार्यालय परिसर में भारत का राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था। सरकारी अधिकारियों ने उन्हें फ्लैग कोड ऑफ़ इंडिया का हवाला देते हुए ऐसा करने की अनुमति नहीं दी। श्री जिंदल ने उच्च न्यायालय के समक्ष यह कहते हुए एक याचिका दायर की कि कोई भी कानून भारतीय नागरिकों को राष्ट्रीय ध्वज फहराने से मना नहीं कर सकता है और इसके अलावा, भारतीय ध्वज संहिता भारत सरकार का केवल कार्यकारी निर्देशों का एक सेट है और इसलिए कानून नहीं है।उच्च न्यायालय ने याचिका की अनुमति दी और कहा कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के आधार पर भारतीय ध्वज संहिता एक वैध प्रतिबंध नहीं था। भारत के संघ ने इस निर्णय के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में इस आधार पर अपील दायर की कि क्या नागरिक राष्ट्रीय ध्वज को फहराने के लिए स्वतंत्र थे, यह एक नीतिगत निर्णय था, और अदालत के हस्तक्षेप के अधीन नहीं हो सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति बृजेश कुमार और न्यायमूर्ति एस.बी. सिन्हा की दो-न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन किया जिसने भारत संघ की अपील को खारिज कर दिया। हालाँकि न्यायालय ने कहा कि प्रतीक और नाम (अनुचित उपयोग की रोकथाम) अधिनियम 1950 और राष्ट्रीय सम्मान अधिनियम 1971 के अपमान की रोकथाम, राष्ट्रीय ध्वज के फहराने को विनियमित कर सकता है. इस प्रकार कुछ प्रतिबंधों के साथ आम जनता को भी राष्ट्रीय ध्वज फहराने की अनुमति प्राप्त हुयी.
(स) तिरंगा फहराने के सम्बन्ध में कानून/नियम और दिशा-निर्देश-
1. राष्ट्रीय ध्वज का प्रदर्शन, संप्रतीक और नाम (अनुचित प्रयोग का निवारण) अधिनियम 1950 और राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम 1971 उपबंधों द्वारा नियंत्रित होता है.
2. भारतीय झंडा संहिता 2002- तिरंगे को ससम्मान फहराने एवं रखरखाव के सम्बन्ध में केन्द्रीय गृह मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 'झंडा संहिता 2002' 26 जनवरी 2002 से लागू किया गया है. इस संहिता में कहा गया है-
'भारत का राष्ट्रीय झंडा, भारत के लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है। यह हमारे राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है। ..........सभी के मार्गदर्शन और हित के लिए भारतीय ध्वज संहिता-2002 में सभी नियमों, रिवाजों, औपचारिकताओं और निर्देशों को एक साथ लाने का प्रयास किया गया है।'
भारतीय झंडा संहिता 2002 की मुख्य बातें- भारतीय झंडा संहिता तीन भागों में है.पहले भाग में राष्ट्रीय झंडे के बारे में सामान्य विवरण है.भाग दो में आम जनता, निजी संगठनों और शैक्षणिक संस्थानों आदि के द्वारा राष्ट्रीय झंडे को फहराने संबंधी विवरण है.भाग तीन का सम्बन्ध केंद्र और राज्य सरकारों और उनके विभिन्न एजेंसियों द्वारा राष्ट्रीय झंडा फहराने से है.
यहाँ पर भारतीय झंडा संहिता 2002 की मुख्य बातें नीचे दी जा रही हैं-
- झंडे का प्रयोग संप्रतीक और नाम (अनुचित प्रयोग का निवारण) अधिनियम 1950 का उल्लंघन करते हुए वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए नहीं किया जायेगा.
- किसी व्यक्ति या वस्तु को सलामी देने के लिए झंडे को झुकाया नहीं जायेगा.
- सरकार द्वारा जारी अनुदेशों के अनुरूप सार्वजानिक भवनों पर उन अवसरों को छोड़ कर जिनके लिए सरकार ने झंडे को आधा झुका कर फहराने के अनुदेश जारी कर रखे हैं, शेष अवसरों पर झंडे को आधा झुका कर नहीं फहराया जाएगा.
- आमतौर पर किये जाने वाले मृतक संस्कारों सहित किसी भी रूप में लपेटने के काम में नहीं लाया जायेगा.
- झंडे का प्रयोग न तो किसी प्रकार की पोषक या वर्दी के किसी भाग के रूप में किया जायेगा और न ही इसे तकियों, रूमालों, नेपकिन अथवा किसी ड्रेस सामग्री पर कढाई अथवा मुद्रित किया जायेगा.
- झंडे पर किसी प्रकार के अक्षर नहीं लिखे जायेंगे.
- झंडे को किसी वास्तु के लेने, देने, पकड़ने अथवा ले जाने के आधार के रूप में प्रयोग में नहीं किया जायेगा.
- किसी प्रतिमा के अनावरण के अवसर पर झंडे को विशेषतया और अलग से प्रदर्शित किया जायेगा और इसका प्रयोग प्रतिमा अथवा स्मारक को ढकने के लिए नहीं किया जाएगा.
- झंडे का प्रयोग न तो वक्ता की मेज को ढकने के लिए और न ही वक्ता के मंच के ऊपर लपेटने के लिए किया जायेगा.
- झंडे को जानबूझकर जमीन अथवा फर्श को छूने अथवा पानी में डूबने नहीं दिया जाएगा.
- झंडे को वाहन, रेलगाड़ी, नाव अथवा वायुयान के ऊपर, बगल अथवा पीछे से ढकने के काम में नहीं लाया जायेगा.
- झंडे का प्रयोग इमारत को ढकने के लिए नहीं किया जायेगा और
- झंडे को जानबूझकर "केसरिया" रंग को नीचे प्रदर्शित करते हुए नहीं फहराया जाएगा.
साधारण जनता, किसी गैर-सरकारी संगठन अथवा विद्यालय के सदस्य राष्ट्रीय झंडे को सभी दिवसों और अवसरों, समारोहों अथवा अन्य अवसरों पर सम्मान व प्रतिष्ठा के अनुरूप राष्ट्रीय झंडे को-
- जब भी कभी राष्ट्रीय झंडा फहराया जाय तो उसकी स्थिति सम्मानपूर्ण और विशिष्ट होनी चाहिए.
- क्षतिग्रस्त अथवा अस्त-व्यस्त झंडा प्रदर्शित नहीं किया जाना चाहिए.
- झंडे को किसी अन्य झंडे अथवा झंडों के साथ एक ही समय में एक ही ध्वज-दंड से नहीं फहराया जायेगा.
- संहिता के भाग 3 धारा 9 में निहित उपबंधों के सिवाय झंडे को किसी वाहन पर नहीं फहराया जायेगा,
- यदि झंडा किसी वक्ता के सभा मंच पर फहराया जाता है तो उसे इस प्रकार फहराया जाना चाहिए कि जब वक्ता श्रोतागण की ओर मुँह करे तो झंडा उनके दाहिनी ओर रहे अथवा झंडे को दीवार के साथ पट्ट स्थिति में वक्ता के पीछे और उससे ऊपर फहराया जाना चाहिए.
- जब झंडा किसी दीवार के सहारे, पट्ट और टेढ़ा फहराया जाते तो केसरिया भाग सबसे ऊपर होना चाहिए और जब वह लम्बायी में खड़ा करके फहराया जाये तो केसरिया भाग झंडे के हिसाब से दायीं ओर होगा(अर्थात यह झंडे को सामने से देखने वाले व्यक्ति के बायीं ओर होगा)
- झंडे की लम्बाई और चौडाई का अनुपात 3;2 होना चाहिए.
- किसी दूसरे झंडे या पताका को राष्ट्रीय झंडे से ऊंचा या ऊपर या बराबर नहीं लगाया जायेगा और न ही पुष्प अथवा माला या प्रतीक सहित अन्य कोई दूसरी वस्तु उस ध्वज-दंड के ऊपर रखी जाएगी जिस पर झंडा फहराया जाता है.
- झंडे का इस्तेमाल सजावट के लिए बंदनवार गुच्छे अथवा पताका के रूप में या इसी प्रकार के किसी कामों के लिए नहीं किया जायेगा.
- पेपर से बने झंडे का प्रयोग जनता द्वारा महत्वपूर्ण अवसरों, संस्कृति और खेलकूद स्पर्धा पर फहराया जा सकता है परन्तु ऐसे कागज के झंडों को समारोह पूरा होने के पश्चात न तो विकृत किया जाएगा और न ही जमीन में फेंका जायेगा. जहाँ तक संभव हो, ऐसे झंडों का निपटान पूरे गौरव के साथ और निजी तौर पर किया जायेगा.
- जहां झंडे को खुले में फहराया जाना हो उसे जहाँ तक हो सके, उसे सूर्योदय से सूर्यास्त तक मौसम सबंधी परिस्थितियों का ख्याल किये बिना फहराया जाना चाहिए.
- झंडे को इस तरह से फहराया या बाँधा न जाए जिससे कि वह क्षतिग्रस्त हो और
- जब झंडा क्षतिग्रस्त या खराब हो जाये तो उसे पूरी तरह से एकांत में और अधिमान्यतः जलाकर या ऐसा कोई तरीका अपनाकर पूर्णतया नष्ट कर दिया जाये जिससे उसकी गरिमा बनी रहे.
स्कूलों में राष्ट्रीय झंडा फहराने, उसका अभिवादन करने तथा शपथ लेने आदि के सबंध में निम्नलिखित आदर्श अनुदेशों का पालन किया जाये-
- स्कूल के विद्यार्थी एक खुले वर्ग की आकृति बनाकर इकट्ठे होंगे, जिसकी तीन भुजाओं पर विद्यार्थी खड़े होंगे और चौथी भुजा के बीच में ध्वज-दंड होगा. प्रधानाध्यापक, मुख्य छात्र और झंडे को फहराने वाला व्यक्ति (यदि वह प्रधानाध्यापक के अलावा कोई दूसरा हो) झंडे के डंडे से तीन कदम पीछे खड़े होंगे.
- छात्र कक्षा क्रम से 10-10 के दल में (अथवा कुल संख्या के अनुसार किसी दूसरे हिसाब से) खड़े होंगे. ये दल एक के पीछे एक रहेंगे. कक्षा का मुख्य छात्र अपनी कक्षा की पहली पंक्ति की दाईं ओर खड़ा होगा और कक्षा अध्यापक अपनी कक्षा की अंतिम पंक्ति से तीन कदम पीछे बीच की ओर खड़ा होगा कक्षाएं वर्ग की आकृति बनाते हुए इस प्रकार खड़ी होंगी की सबसे ऊंची कक्षा दाईं ओर रहे और बाद में उतरते क्रम से अन्य कक्षाएं आयें.
- हर पंक्ति के बीच कम से कम एक कदम या 30 इंच का फासला होना चाहिए और इतना ही फैसला हर कक्षा के बीच में होना चाहिए .
- जब हर कक्षा तैयार हो जाए तो कक्षा का नेता आगे बढ़कर स्कूल के चुने हुए छात्र नेता का अभिवादन करेगा जब सारी कक्षाएं तैयार हो जाएं तो स्कूल का छात्र नेता प्रधानाध्यापक की ओर बढ़कर उनका अभिवादन करेगा. प्रधानाध्यापक अभिवादन का उत्तर देगा इसके बाद झंडा फहराया जाएगा. इसमें स्कूल का छात्र नेता सहायता कर सकता है.
- स्कूल का छात्र-नेता जिसे परेड या सभा का भार सौंपा गया है, झंडा फहराने के ठीक पहले परेड को सावधान हो जाने की आज्ञा देगा. और झंडे के लहराने पर अभिवादन करने की आज्ञा देगा. परेड कुछ देर तक अभिवादन की अवस्था में रहेगी और फिर ऑर्डर का आदेश पाने पर सावधान अवस्था में आ जाएगी.
- झंडा अभिवादन के बाद राष्ट्रगान होगा. इस कार्यक्रम के दौरान परेड सावधान अवस्था में रहेगी.
- शपथ लेने के सभी अवसरों पर शपथ राष्ट्रगान के बाद ली जाएगी. शपथ लेने के समय सभा सावधान अवस्था में रहेगी प्रधानाध्यापक औपचारिक रूप से शपथ दिलाएंगे और सभा उनके साथ साथ शपथ दोहराएगी.
- स्कूलों में राष्ट्रीय झंडे के प्रति निष्ठा की शपथ लेते समय निम्नलिखित कार्य विधि अपनाई जाएगी-
हाथ जोड़कर खड़े हुए
सभी लोग निम्नलिखित शपथ दोहराएंगे-
"मैं राष्ट्रीय झंडे
और उस लोकतंत्रात्मक गणराज्य के प्रति निष्ठा की शपथ लेता या लेती हूं जिसका यह
झंडा प्रतीक है."
(द) भारतीय
संविधान के अनुच्छेद 51क. मूल कर्तव्य में भी लेख है कि भारत के
प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह- संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों,
संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर
करे.
राष्ट्रगान 'जन-गण-मन'
(अ) इतिहास- जन गण
मन, भारत का राष्ट्रगान है जो
मूलतः बंगाली में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ
टैगोर द्वारा लिखा गया था। राष्ट्रगान
के गायन की अवधि लगभग 52 सेकेण्ड है। संविधान सभा ने जन-गण-मन भारत
के राष्ट्रगान के रूप में 24 जनवरी 1950 को
अपनाया था। इसे सर्वप्रथम 27 दिसम्बर 1911 को कांग्रेस के
कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया था। पूरे गान में 5 पद हैं।
आधिकारिक हिन्दी
संस्करण-
जन-गण-मन अधिनायक
जय हे
भारत-भाग्य-विधाता
पंजाब-सिन्धु -
गुजरात-मराठा
द्राविड़-उत्कल-बंग
विन्ध्य-हिमाचल-यमुना-गंगा
उच्छल-जलधि-तरंग
तव शुभ नामे जागे,
तव शुभ आशिष मागे,
गाहे तव जय गाथा। जन-गण-मंगल-दायक जय हे
भारत
भाग्य विधाता!
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे।।
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(ब) नियम- जब राष्ट्र
गान गाया या बजाया जाता है तो श्रोताओं को सावधान की मुद्रा में खड़े रहना चाहिए। राष्ट्र
गान को गाने के सभी अवसरों पर सामूहिक गान के साथ इसके पूर्ण संस्करण का उच्चारण
किया जाएगा।
राष्ट्रगीत 'वन्दे
मातरम' -
वन्दे मातरम् बंकिमचन्द्र
चट्टोपाध्याय द्वारा संस्कृत बाँग्ला मिश्रित भाषा में रचित इस
गीत का प्रकाशन सन् 1882 में उनके उपन्यास 'आनन्द
मठ' में अन्तर्निहित गीत के रूप में हुआ था। इस उपन्यास में यह
गीत भवानन्द नाम के संन्यासी द्वारा गाया गया है। इसकी धुन यदुनाथ
भट्टाचार्य ने बनायी थी। इस गीत को गाने में 65 सेकेंड
(1 मिनट और 5 सेकेंड) का समय लगता है। राष्ट्रगीत इस प्रकार
है-
वन्दे मातरम्,वन्दे
मातरम्।
सुजलां सुफलाम्
मलयजशीतलाम्
शस्यश्यामलाम मातरम
।वन्दे मातरम्।।
शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीम्
फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीम्
सुहासिनीं सुमधुर
भाषिणीम्
सुखदां वरदां
मातरम्। वन्दे मातरम्।।
स्वतन्त्रता
प्राप्ति के बाद डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद ने
संविधान सभा में 24 जनवरी 1950 में 'वन्दे
मातरम्' को राष्ट्रगीत के रूप में अपनाने
सम्बन्धी वक्तव्य पढ़ा जिसे स्वीकार कर लिया गया।
डॉ॰ राजेन्द्र
प्रसाद का संविधान सभा को दिया गया वक्तव्य इस प्रकार है-
'शब्दों व संगीत की
वह रचना जिसे जन गण मन से सम्बोधित किया
जाता है, भारत का राष्ट्रगान है;
बदलाव के ऐसे विषय, अवसर आने पर सरकार अधिकृत करे और वन्दे
मातरम् गान, जिसने कि भारतीय स्वतन्त्रता
संग्राम में ऐतिहासिक भूमिका निभायी है; को जन गण
मन के समकक्ष सम्मान व पद मिले। (हर्षध्वनि)। मैं आशा करता हूँ कि यह
सदस्यों को सन्तुष्ट करेगा।'
राष्ट्रगीत 'वन्दे
मातरम' के गायन के समय वही सम्मान दिया जाता है जो राष्ट्रगान को दिया जाता
है.
उपसंहार-
राष्ट्रीय ध्वज,
राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत हमारे राष्ट्र के गौरव के प्रतीक हैं.
प्रत्येक भारतीय स्वभावतः ही इनके प्रति आदर व सम्मान व्यक्त करता है, किन्तु
कतिपय अज्ञानता अथवा पर्याप्तरूप से सचेत न रहने की स्थिति में त्रुटियाँ हो जाती
हैं. जिसके फलस्वरूप राष्ट्रीय त्यौहार के दूसरे दिन के अखबार शासकीय कार्यालयों
की इन विसंगतियों के प्रदर्शन से भरी होती हैं.एक तो राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान
करना हमारा मूल कर्तव्य है, वहीं इसके लिए कानूनी प्रावधान भी हैं जिसके चलते
सावधानी के अभाव में कानूनी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. अतः यह उचित होगा
कि हम हमारे राष्ट्रीय प्रतीकों का प्रयोग पूरी जानकारी और सजगता के साथ करें.
(उपरोक्त आलेख
विभिन्न श्रोतों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है. कृपया इसे ही पर्याप्त न मानते
हुए प्रामाणिक जानकारी स्वतः जुटाने का कष्ट करें)
प्रस्तुति- सुरेन्द्र कुमार
पटेल
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3 टिप्पणियां:
बहुत ही सुंदर व उपयोगी संकलन है।
Great Job Sir.
अतिसुंदर
❤️🇮🇳
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