ऋतुराज
राजा बसंत के आने से,
धरा -वधू
का मुदित अंग।
शस्य श्यामला धानी घूंघट से,
निहार रही है बार-बार।
विविध
रंग के फूलों से,
सुरभीत
है देखो आज अनंग।
कोकिला
गूंज रही उपवन में,
मधुप कर
रहे राजा यश गान।
किसलय की
कोमल कुंतल से,
रवि की लालिमा की पहचान।
शशि की स्मित आभा से,
रजनी को
भी है गुमान।
बसंत राज
के आने से,
इठलाती है झरनों की धार।
बाली में
नीवार आ गये,
मुदित
हुआ है आज किसान।
राजा बसंत के आने से,
खुश है
देखो आज बिहान।
शस्य रंग से सजा यान,
वृक्ष
खड़े हैं दिग्गज बनकर
धरती की गाथा है महान॥
"तरू" (पर्यावरण)
परि आवरण सुंदर
है तो,
फिर आएगा
सुख आनंद॥
आज पौधे
रोपे हमने तो,
शोभित शिरीष कल
दिग दिगंत।
तरु -वैभव है जीवन गाथा
तरु -वैभव है जीवन गाथा
पलास में प्रेम
राग जीवंत।
नीम की टहनी विहग
बसेरा,
आम्र छाँव में सुखद कंत।
बेला की खुशबू लट
की बहार,
रजनी गंधा
सुरभित बयार,
शहतूत तले शंकरा आदि अंत।
वट से मिला जीवन की रश्मि,
तरु काट
मत धरो कलंक।
कदम की डाली वंशी
की तान,
क्यो काट रहा है
डाली सुख का करता अंत।
वृक्ष का हर भाग
औषधि है,
पत्ती तना बेल दिया
अनंत।
झंझावात सब छोड़
सघन वन,
मिलकर सब धरा सजाये
मिलकर सब धरा सजाये
नित नये पौधे की
कतार लगाये।
सैकड़ों बगिया
हमने लगा दिए तो
हमारी झोली में खुशिया होंगी अनंत।
हमारी झोली में खुशिया होंगी अनंत।
सुखद श्वास
निर्मल सलिल
हर बीमारी का
होगा अन्त॥रचना:अंजली सिंह
उच्च माध्यमिक शिक्षक
शासकीय उत्तर माध्यमिक विद्यालय भाद जिला अनूपपुर -मध्य प्रदेश
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1 टिप्पणी:
वाह! मेम बहुत खूब।
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