बुधवार, जून 24, 2020

जीवन की तब्दीलियाँ: रजनीश

   
जीवन की तब्दीलियाँ 
                           - रजनीश हिंदी(प्रतिष्ठा)

वह अजब सा क्षण था
   तब्दीलियों का सफर था
मानव जब ज्ञान के सागर को गँदलाकर 
   व्यसन विष पीता रहा 
तब वह एकांत बैठकर 
   अंतःकरण की परिभाषा लिखता रहा 
लोग जब जीभ को तरासे यूँ धन व्यर्थ बहाकर
  तब वह आम के बौर से जीभ सेंकता फिरता रहा
लोग जब तन-सौंदर्य के लिये इत्र में बहाते थे संपदा
  वह यूँ नवीन फूलों के रंग से
मन महकाता था 
  जब मानव आधुनिकता से ग्रसित था
तब वह संस्कृति के क्षणों में परिणित था
  वाह! क्या तब्दीलियाँ थीं जीवन की
मर्म,स्मृति की शर्बत पिलाती थीं तब्दीलियाँ
  मानव जब कोलाहल और झकझोरियों से
खेलता प्रसन्न रहता
  तब वह एकांत बैठा स्वच्छ जीवन को तलाशता 
तब्दीलियाँ जीवन रेखा थीं
  वह अजब सा क्षण था
तब्दीलियों का सफर था
  मानव जब ज्ञान के सागर को गँदलाकर
अधर्म-पान करता रहा
  तब वह कहीं दूर एकांत बैठा
अंतर-हृत को सहलाता रहा 
  हाँ,वह अजब सा क्षण था 
तब्दीलियों का सफर था !!


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