मंगलवार, जून 02, 2020

पर्यावरण स्तुति:डी.ए.प्रकाश खांडे


(1)
पर्यावरण स्तुति
हे! प्रकृति प्रेमी मनुज सब जन,
         
वायु-वन-जल रक्षणम।
वारि संचय अरु विटप रोपित,
       
विकराल नित प्रदूषणम।
तरु- पवन- पानी प्रकृति प्रदत्त,
          
सरस शुचि पर्यावरण।
उमंग खग; स्वछंद विचरण,
            
वन्यजीव संरक्षणम।
सरिता -सरोवर; सुगंध सुमन,
          
तरुवर लताएं सुंदरम।
त्रिकूट- त्रिफला चूर्ण पाचक,
     
विविध व्याधि निवारणम।
पादप प्रसून पर्जन्य पर्वत,
      
हरित वसुधा आकर्षणम।
उन्मुक्त नभ; मधु गीत गुंजित,
      
सुखद कलरव वातावरण।
अवनि -अम्बर; विपिन वारि,
         
प्रति प्रकाश समर्पणम।
हे!प्रकृति प्रेमी मनुज सब जन,
       
वायु -वन -जल रक्षणम।
(2)
विटप विलाप
धनवानों का सौंदर्य बनाया,
पथिकों का मैं धैर्य बढ़ाया।
खट्टे-मीठे फल देकर,
जीवों को मैं भोज कराया॥
जीवों को मैं साँसे देकर,
बदले में सीओटू लेता।
मृदा अपरदन को भी रोका,
सूर्य तपनता को हर लेता॥
मैं हिस्से में माँगा पानी,
मानव मुझ पर तेल चढ़ाया।
पंथी को छाया देकर,
मैं उसका विश्रांत मिटाया॥
कड़क मृदा को मृदुल बनाके,
बंजर को उपजाऊ बनाया।
मैं तो जिया हवा के खातिर,
मेरे पास ही आग लगाया॥
पर्णो में वसन बाँधकर,
निश्चित किया विनाश।
कब तक टूटेगा मानव का,
ये अंतिम अंधविश्वास॥
भूख व्याधि को दूर किया,
लाख किया उपकार।
पर मानव माना नही,
कर दिया शस्त्र प्रहार॥
विरल वायु को सघन कर,
विमल वारिद निर्मित किया।
फिर धरा में नित प्रवाहित,
जन मन को  हर्षित किया॥
उष्ण शीतलता के लिए,
ऋतुओ का किया मिलाप।
मानव ने ढाये कहर,
करता विटप विलाप॥


रचना-डी.ए.प्रकाश खांडे 

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