हास्य प्रेम
मैंने कहा रुको और वह चली गई।
पता किया तो अपनों से छली गई।
सुनकर हृदय सूख गया।
उसका दुख अंतर मन को छू गया।
मैं हो गया बीमार।
पहुंच गया ज्योतिषी के पास।
उसने कहा यह जो बीमारी लाई है।
उसका तू भाई है।
दुखी मन कुछ समझ ना पाया।
तुरंत उसके पास आया।
मैंने संकल्प किया।
अब नहीं डरुगा।
सीधे रिश्ते की बात करूंगा।
मैं रास्ता नाप रहा था।
मेरा शरीर कांप रहा था।
जैसे ही रिश्ते की बात की।
वह अंदर चली गई।
आते ही उसने कहा।
जो तुमने बीमारी बुलाई।
मेरे पास है उसकी दवाई।
उसने हाथों से मुझे छुआ।
मुझे प्रेम का एहसास हुआ।
जब लाल धागा कलाई में बंध गया।
तभी से मेरा दुख दूर हो गया।
मेरा रिश्ता मजबूत हो गया।
वह बहन और मैं भाई हो गया
रचनाकार:
शोधार्थी हिंदी
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा
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