मदिरा दुश्मन देह की,
नेह गवामै नैन।
इज्जत जाती आपकी,
स्वजन न पावैं चैन।।
दारू का दर्शन बुरा,
दारू छूना पाप।
जिसकी लत दारू लगी,
भस्मासुर-सी श्राप।।
दारू भख मरना भली,
त्यागहूं पीना आज,
काया को कजरा करे,
घर का करे अकाज।।
मानुष पीना बन्द कर,
मद से घटता मान।
धन घटता, कंगाली बढ़ती,
घटती जाती शान।।
मद पीता छैला सुनो,
इसको दे तू छोड़।
मानवता का नशा करे यदि,
रहोगे मूंछ मरोड़।।
धन की कमजोरी रहे,
दुखी रहे औलाद।
जिनके हिय दारू बसे,
डूब जात मरजाद।।
नशा नशाये नश सभी,
मदिरा, धूम्र, तम्बाकू।
गांजा, चरस, अफीम और,
गुटखा तथा गुड़ाखू।।
जो सुख चाहो सज्जनों,
नशा से रहिये दूर।
परिवार बने वैभवशाली,
धन-दौलत भरपूर।।
मानव जीवन है सर्वश्रेष्ठ,
समझ तू इसका मोल।
बनाओ समाज को नशामुक्त,
जीवन है अनमोल।।
निर्मल देश हमारा होगा,
निर्मल व्यक्ति बनेगा जब,
रहे सहोदर भाव सभी से,
उन्नत देश बनेगा तब।।
रचनाकार:राम सहोदर पटेल,एम.ए.(हिन्दी,इतिहास)
स.शिक्षक, शासकीय हाई स्कूल नगनौड़ी
गृह निवास-सनौसी, थाना-ब्योहारी जिला शहडोल(मध्यप्रदेश)
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2 टिप्पणियां:
अच्छी कविता सर
Nice
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