दिखावटी इंसान धर्मेन्द्र कुमार
ऐ इंसान तू दिखावा बिल्कुल भी न कर,एक दिन सब कुछ ओझल हो जाना है।
कुछ भी अमर नहीं यह समझ लेना,
यह जग है नश्वर सबकुछ मिट्टी में मिल जाना है।।
झूठ पाखंड के रास्ते पर चलने वाले दरिंदे,
वक्त रहते सम्भल सको तो सम्भल जाना।
वरना प्रकृति हर पल सब कुछ निहार रही,
यह समझ कर सुधर सको तो सुधर जाना।।
क्या लेकर आया है जग में क्यों इतना इतराता है,
झूठे वादे करके लोगों पर झूठी रौब जमाता है।
पर मत भूलो यह तुम्हारी बहुत बड़ी अज्ञानता है,
यहां जो भी है सब झूठी काया और झूठी माया है।।
जो भी है तुम्हारे पास सबकुछ प्रकृति ने दिया है,
मनमोहक जिन्दगी मिली जिसे दिल खोलकर जिया है।
फिर भी तेरे जीवन में खुशियों की कमी झलक रही है,
क्योंकि तू इंसान नहीं है बल्कि इंसान दिखावटी है।।
जब तक रहो सृष्टि में हंसकर जी लेना तुम,
गिले-शिकवे भुलाकर एकजुट रह लेना तुम।
नफरत करने वालों पर दमनचक्र चला दो तुम,
प्यार मुहब्बत सौहार्दपूर्ण के रंग जग में भर दो तुम।।
ऐ इंसान आज तुम्हें साबित करना ही होगा,
मानवता की रक्षा के लिए सहयोग करना ही होगा।
गलत आचरण कुप्रथाओं का त्याग करना ही होगा,
दिखावटी इंसान नहीं बल्कि वास्तविक इंसान बनना ही होगा।
रचना: धर्मेन्द्र कुमार पटेल, नौगवां, मानपुर जिला-उमरिया (मध्यप्रदेश)
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