होलिकोत्सव
(होला का त्यौहार)
मन का भावन फाग आया, होलिका धू-धू जली।
है बुराई पर विजय अच्छाई की रंग रंग चली॥
होलिका की दर्प काया धू-धू धुआँ धूसर गयी।
है प्रेम रंग चढ़ झूमें सब, पिच-पिच के पिचकारी नई॥
होली में जलकर होलिका, बरदान झूठी कर गयी।
अन्याय जलकर राख बन, प्रहलाद प्रमुदित कर गयी॥
संदेश भाई चारा देता, शिकवा गिले सब भूल कर।
धर्म जाति तोड़ बन्धन, रंग गुलाल संग भूल कर॥
ऋतुराज ऋतु की होलिकोत्सव बसंत पंचमी से शुरू।
मस्ती मजे की रंग, टेसू फाग फागुन की गुरू ॥
रंगों से रंगकर युवक-युवती बाल, बूढ़े सब खिले।
भूले पुराने बैर कटुता, आपस में गलबहिया मिले॥
सोहे अबीरन गुलाल रंगन, मस्त मन खुश राखहीं।
रंगों का यह त्यौहार, होली हुर्रियारे गावहीं॥
होली की जब डोली निकलती, गीत फगुआ झोंकहीं।
बच्चों के दिल में है तसल्ली, रुकते न तिलभर रोकहीं॥
प्रेम के रंग में रंगे रंगरेलियां रंग झोकहीं।
घर में गुझिया दिल में खुशियाँ, मिल प्रेम रंग परोसहीं॥
बाजे नगाड़े, ढोल टिमकी गीत मिल सब गावहीं।
हैं नाचते सब धुन में अपने, बढ़-चढ़ के मस्ती पावहीं॥
युवती भी पीछे क्यों रहें, व्यंजन है विविध पचावहीं।
सखियों के संग में रंग में रंगकर रास रंग मनावही॥
है मनोहर पर्व रौनक, वर्णन करूॅं बस में नहीं।
बाॅंटे सहोदर भाव सब मिल, द्वेष है मन में नहीं॥
(होला का त्यौहार)
मन का भावन फाग आया, होलिका धू-धू जली।
है बुराई पर विजय अच्छाई की रंग रंग चली॥
होलिका की दर्प काया धू-धू धुआँ धूसर गयी।
है प्रेम रंग चढ़ झूमें सब, पिच-पिच के पिचकारी नई॥
होली में जलकर होलिका, बरदान झूठी कर गयी।
अन्याय जलकर राख बन, प्रहलाद प्रमुदित कर गयी॥
संदेश भाई चारा देता, शिकवा गिले सब भूल कर।
धर्म जाति तोड़ बन्धन, रंग गुलाल संग भूल कर॥
ऋतुराज ऋतु की होलिकोत्सव बसंत पंचमी से शुरू।
मस्ती मजे की रंग, टेसू फाग फागुन की गुरू ॥
रंगों से रंगकर युवक-युवती बाल, बूढ़े सब खिले।
भूले पुराने बैर कटुता, आपस में गलबहिया मिले॥
सोहे अबीरन गुलाल रंगन, मस्त मन खुश राखहीं।
रंगों का यह त्यौहार, होली हुर्रियारे गावहीं॥
होली की जब डोली निकलती, गीत फगुआ झोंकहीं।
बच्चों के दिल में है तसल्ली, रुकते न तिलभर रोकहीं॥
प्रेम के रंग में रंगे रंगरेलियां रंग झोकहीं।
घर में गुझिया दिल में खुशियाँ, मिल प्रेम रंग परोसहीं॥
बाजे नगाड़े, ढोल टिमकी गीत मिल सब गावहीं।
हैं नाचते सब धुन में अपने, बढ़-चढ़ के मस्ती पावहीं॥
युवती भी पीछे क्यों रहें, व्यंजन है विविध पचावहीं।
सखियों के संग में रंग में रंगकर रास रंग मनावही॥
है मनोहर पर्व रौनक, वर्णन करूॅं बस में नहीं।
बाॅंटे सहोदर भाव सब मिल, द्वेष है मन में नहीं॥
रचना:
राम सहोदर पटेल, शिक्षक
ग्राम-सनौसी थाना-ब्योहारी जिला-शहडोल (मध्यप्रदेश)
1 टिप्पणी:
बहुत अच्छी पंक्तियां
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