शुक्रवार, अप्रैल 17, 2020

दो कविताएं:कोमल चंद कुशवाहा



1.    यथार्थ
रेशम से बाल
मक्खन से गाल
मोती से दांत
कंचन से हाथ
नहीं देंगे साथ।
बाल होंगे सन की सुतली
गाल हो जाएंगे दही से।
कंचनी हाथों में होगी सिकुड़न
तब तक इस देह का प्रतिरूप
तेरे रूप सा होगा सरुप।
तब हम नहीं रहेंगे।
किसी नदी में रेत सा  बहेंगे।

2.     मजदूर

जिंदगी की ठोकरें खाकर
सारे सपनों को दे दी तिलांजलि।
सोचा करूंगा खेती अब प्यार की
पर कोई खेत उपजाऊ नहीं मिला।
ईर्ष्या, द्वेष, जलन, शंका, अविश्वास के
कंकड़ो से सारे खेत भरे मिले।
अति उत्साह में  प्रेम के बीज बो दिया।
स्नेह का सिंचन किया।
विश्वास की बाड़ लगाई।
फिर नाकामयाबी पाई।
और आत्मा चिल्लाई।
यदि करना है प्यार की खेती
तो करो कुछ ऐसा।
किसी से उम्मीद मत करना।
बल्कि सब की उम्मीद बनना।
ना रहेगा कोई सपना,
सब कहेंगे तुझे अपना।

रचना: कोमल चंद कुशवाहा
शोधार्थी हिंदी
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा
मोबाइल 7610103589

4 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

अति मनमोहन

रजनीश रैन ने कहा…

इस रचना में हृदय के शीतल धार को गति दी गयी . जीवन की वास्तविकता को उकेरा गया है . लेखक ने जैसे अपने हृदय की द्वार से मधुरस राग की ताने सजा दी हो .. सर्वत्र प्रेम की निश्छल धार को प्रवाहित कर दी हो .. बहुत बहुत धन्यवाद् ऐसे रचनाकारों को ...

कोमल चंद कुशवाहा ने कहा…

रजनीश जी आपको धन्यवाद

कोमल चंद कुशवाहा ने कहा…

रजनीश जी कविता के बारे में आपने जो टिप्पणी की है उससे ह्रदय गद् गद् हो गया आपको धन्यवाद

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