रविवार, जुलाई 18, 2021

कोविड-19:तीसरी लहर की सुबगुबाहट और हम- आप-डा. ओ. पी.चौधरी



कोविड-19:तीसरी लहर की सुबगुबाहट और हम- आप-डा. ओ. पी.चौधरी
             किसी ने ठीक ही लिखा है कि जिंदगी कर्कश अनुभवों का पहाड़ होती है।अलग बात है कि इस पहाड़ पर कहीं कहीं सुख के कुछ सुकोमल डूब भी उग जाते हैं। सुख की इन्हीं चंद दूबों की चाहत में उम्र बीत जाती है।ऐसा ही है वर्तमान समय जब हम महामारी से जूझते हुए,अपनों को खोते हुए भी साहस और धैर्य जीवन के प्रति रखते हुए आशा की किरण खोजने में लगे हुए हैं। कोविड का पहला मरीज जनवरी 2020 में केरल में पहचान में आया,फिर तो मार्च,20 से लॉक डाउन की स्थिति और संक्रमितों की संख्या बढ़ने का सिलसिला,उसी दौरान महानगरों से कामगारों का अपने गांव घर जल्दी से पहुंचने की जो आपाधापी हुई वह महामारी से भी ज्यादा भयावह।ऐसी भागदौड़ देश के विभाजन के समय रही होगी।उसके बाद का यह मंजर तो बहुत खौफनाक था।समय बीता, महामारी की रफ्तार सुस्त पड़ते ही लोगों की जिंदगी अपने पुराने ढर्रे की ओर अग्रसर ही हो रही थी,कामगार पुनः अपने काम की तलाश में शहरों की ओर वापस जा ही रहे थे,कुछ पहुंच भी गए थे कि तब तक दूसरी लहर का प्रचंड रूप से प्रकट हो जाना,प्रलय के समान ही हो गया। लोक और तंत्र दोनों मस्त थे और आत्ममुग्ध होकर अपनी पीठ थपथपा रहे थे कि मित्रों दुनिया के अन्य देशों की अपेक्षा सबसे कम हानि भारत में हुई। लेकिन दूसरी लहर ने बहुत ही भयावह स्थिति पैदा कर दी, सरकारी प्रबंध की कलई खोलकर रख दिया।ऑक्सीजन के लिए लोग पागलों की तरह घूम रहे थे। मरीज बेड की तलाश में अस्पताल में और परिजन दवाओं और ऑक्सीजन की तलाश में बाजार में। लाशों का अंबार लग गया, मनमाने दाम पर लोग परिजनों के अंतिम संस्कार के लिए मुंहमांगी कीमत चुकाने को तैयार ही नहीं हुए बल्कि अंतिम संस्कार किए।कुछ को तो,सरकारी अधिकारियों ने जेसीबी की सहायता से गंगा में उतराये शवों को गंगा किनारे दबा दिया,जिसका वीडियो सभी ने देखा।मरने के बाद उनका अंतिम संस्कार नहीं हो सका।मुखाग्नि क्या दो मन लकड़ी की चिता भी नहीं मुअस्सर हुई। इतनी पीड़ा और बेबसी कभी नहीं दिखी।हमारी पूरी मशीनरी उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों में व्यस्त थी,जनता भी उसी में मस्त थी,मरीज और परिजन बेहाल थे,लेकिन मजबूर और बेबस थे।पांच राज्यों के विधान सभाओं ने भी आग में घी का काम किया।मद्रास उच्च न्यायालय की टिप्पणी कि इन मौतों के पीछे "चुनाव आयोग अकेले जिम्मेदार है",उसके ऊपर हत्या का मुकदमा चलाया जा सकता है, काबिले गौर है।ठीक उसी राह पर योगी जी का हठ योग कि कावंड यात्रा आयोजित की जाएगी और बार बार उत्तराखंड के नव नियुक्त मुख्यमंत्री जी को भी कावड़ के लिए तैयार करने का प्रयास किसी तुगलकी फरमान से कमतर नहीं दिखता।ऐसे समय में जब अभी काशी दौरे पर आए मा प्रधानमंत्री जी ने तीसरी लहर के आगमन से लोगों को सचेत और ढिलाई न बरतने का साफ साफ संदेश उत्तर प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री जी के समक्ष दिया।उन्होंने कहा कि देश आज ऐसे मुहाने पर खड़ा है जहां तीसरी लहर की आशंका लगातार जताई जा रही है।लेकिन कावड़ यात्रा में युवाओं का बहुत बड़ा समूह आता है,भगवा परिधान ही नहीं बल्कि कावड़ व लोटा जिसमें गंगाजल भरते हैं,वह भी बहंगी समेत उसी रंग में रहता है।उससे एक परिवेश निर्मित होगा,जो अप्रत्यक्ष रूप से प्रदेश में आसन्न चुनाव में एक बड़ा वोट बैंक साबित होगा।कुल मिलाकर लोक की चिंता कम,तंत्र की ज्यादा।यह स्थिति बहुत भयावह होगी।भला हो मा उच्चतम न्यायालय का जिसने स्वत:संज्ञान लेकर कावड़ यात्रा के संबंध में सरकार से अपनी स्थिति को 19 जुलाई तक स्पष्ट करने के साथ ही यह भी पीठ ने कह दिया कि यदि सरकार फैसला लेती है तो ठीक है नहीं तो हम आदेश देंगे।ऐसी कड़ी टिप्पणी मा न्यायालयों को क्यों करनी पड़ रही है,क्या यह कहीं न कहीं से सरकारों का जनता के हित व उनके कल्याण से अनदेखी तो नहीं है?आम जनमानस के स्वास्थ्य और जान माल का ख्याल नही है?इस पर हमें विचार करना चाहिए।भारतीय संस्कृति की सम्यक विकास की अवधारणा रही है वह स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए मानव के सर्वांगीण विकास पर ध्यान केंद्रित करे।किसी समाज को सभ्य तभी कहा जा सकता है या कोई देश तभी प्रतिष्ठित कहलाता है,जब उसका सर्वांगीण विकास हो।हमें तो ऐसा लगता है कि अपनी अपनी आस्था को कायम रखते हुए घर पर अपना कार्य करते हुए, सुरक्षित रहते हुए अपने आराध्य का ध्यान पूजन करें।अपना कार्य करना भी इबादत ही है।शास्त्रों में कहा गया है कि कर्म ही पूजा है।सरकार को भी पूरा ध्यान टीकाकरण और स्वास्थ्य सेवाओं को और सुदृढ़ बनाने पर अपना ध्यान पूरी मुस्तैदी से केंद्रित करते हुए,शिक्षा संस्थाओं के संचालन को सुगम और सफल बनाने में अपनी पूरी शक्ति लगानी चाहिए।
(आलेख  में व्यक्त विचार लेखक के स्वयं के हैं.ब्लॉगर टीम का सहमत होना आवश्यक नहीं)
      डा ओ पी चौधरी
समन्वयक,अवध परिषद उत्तर प्रदेश;
संरक्षक, अवधी खबर,सम्प्रति एसोसिएट प्रोफेसर मनोविज्ञान विभाग, श्री अग्रसेन कन्या पी जी कॉलेज वाराणसी।
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शनिवार, जुलाई 17, 2021

अशोक त्रिपाठी "माधव" की बारिश पर गीतिका छंद में कविता


(अशोक त्रिपाठी "माधव" की बारिश पर कविता)
Ashok Tripathi "Madhav" ki Barish par Kavita)
आधार छंद-गीतिका

नहीं बरसना था तो बादल 
क्यूँ निकले थे घर से।
कृषि कर्षक सब जीव जगत के
बूँद-बूँद को तरसे।।

जेठ मास में कीच मचाया,
आर्द्रा में नहिं बूँद गिराया।
उमस कड़ी गर्मी दम तोड़े 
बरसो तो मन हरषे।।

घर के अन्न खेत में पहुँचे,
खाली हुए भँडारे।
अब तो रहम करो हे बादल,
मिटे गरीबी सर से।।

देर हुई सब नाश करो मत,
इतना मत तड़पाओ।
उबरे नहीं अभी कोविड से,
तुम उधेड़ते चरसे।।

बिन पानी के जग है सूना,
मुश्किल जीवन जीना।
पुनर्वसु ने बहुत रुलाया,
पुख्ख सुख्ख से बरसे।।

लाज रखो निज जलद नाम का,
माधव विनती करता।
टूट चुका मानव मानो तुम,
अब भीतर बाहर से।।

अशोक त्रिपाठी "माधव"
शहडोल मध्यप्रदेश
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बरसि जई घनस्याम: अशोक त्रिपाठी "माधव"

(अशोक त्रिपाठी 'माधव' की बारिश पर बघेली कविता)
(Ashok Tripathi 'Madhav' ki baarish par bagheli kavita)

बरसि जई घनस्याम

जेठ मास मा चहला कीन्हेन,किहेन असाढ़े घाम।
आय के बरसि जई घनस्याम।।

दिहेन खेत मा खादा करसी,
तबहूँ घाम उधेरिसि चरसी।
फेकेन खेते अन्न घरे कय,
सोचे रहेन जो थोरौ बरसी।
लटे लम्मरे कइसौ-मइसौ
जइहीं बिजहा जाम।
आय के बरसि जई घनस्याम।।

अरहर उरदा तिली बोबायन।
सोयाबीन मूँग छिटबायन।।
खादि खितिर चउगिरदा बागेन।
तबहूँ भरे मा निन्चय पायन।।
कोटेदार सेल्समैनन से,
कीन्हेन ताम-झड़ाम।।
आय के बरसि जई घनस्याम।।

जब ते जनबुध भये रहेन ते।
जेतना जोरे धये रहेन ते।
कुछ लड़िकन के खाता माहीं,
फिक्स-डिपाजिट कये रहेन ते।
सगला खरच दिहेन बिजहा मा,
बचा न एकौ दाम।
आय के बरसि जई घनस्याम।।

अद्रा मा नहिं बूँद गिराया।
पुनरबसू मा खूब तिपाया।
थरहे रहेन धान बंधी मा,
ओहू का खुब नगदि जराया।
त्राहि मची है चारिउ कइती,
रोट लेबाला सबै चढ़ायन,
तबौ किहा नहिं काम।
आय के बरसि जई घनस्याम।।

अब ता चिरई लीलय काँकर।
परा हबय किसमत मा पाथर।
माधव मरै बिपति के मारे,
मरे जात हें गोरुअउ राकर।।
सगले लड़िका खटिआ पकड़े,
दीदिउ हबय बेराम।
आय के बरसि जई घनस्याम।।

बिनती सुनी रहम कइ देई।
धरती का शीतल कइ देई।
बरसि के सबके जान बचाई,
पुनि के चकाचक्क कइ देई।।
जब तक जिअब करब नित पूजा।
हे सीता पति राम।
आय के बरसि जई घनस्याम।।

अशोक त्रिपाठी "माधव"
 शहडोल मध्यप्रदेश
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मन के पतंग -रजनीश (हिंदी प्रतिष्ठा)


            

मन के पतंग

                              -रजनीश (हिंदी प्रतिष्ठा)

गीत हैं, गुलाल हैं बच्चे

धरा के नूतन पैगाम हैं बच्चे

              जब ये गीत मधुर पिरोते हैं

              ऐसा लगता है सुर के ताल हैं बच्चे

कुमकुम, चंदन सरीखे सुगंधित हैं

“मिट्टी और श्रम” के पहचान हैं बच्चे

              अपनी मस्ती की पाठशाला में

              अपने मन के मुस्कान हैं बच्चे

जब कभी ये पतंगें उड़ाते हैं

लगता है ऊँचाइयों के सलाम हैं बच्चे

          जिनको “नीति” से पगे संदेश मिले हैं, वे

          हर जगह सम्मान हैं बच्चे

क्या फूलों को बोलते किसी ने देखे हैं?

मधुर, सुहावने, हृदय के वरदान हैं बच्चे।।

💐 सम्पूर्ण बाल-मंडली को सादर समर्पित💐


बुधवार, जुलाई 07, 2021

सरकारी वन महोत्सव एवम् सामाजिक उत्तरदायित्व–डा ओ पी चौधरी का पर्यावरण के संबंध में आलेख



सरकारी वन महोत्सव एवम् सामाजिक उत्तरदायित्व–डा ओ पी चौधरी
           वन को हम फॉरेस्ट से समझें तो लैटिन शब्द के फोरिस से निर्मित,जिसका अर्थ है गांव के सीमा या चारदीवारी से बाहर की समस्त भूमि,जिस पर खेती न की गई हो तथा जो निर्जन हो।अब वन से तात्पर्य है कि जिसका उपयोग वानिकी के उद्देश्य से किया गया हो।वन किसी भी राष्ट्र की बहुमूल्य प्राकृतिक संपदा है और प्रकृति की मनोरम विशिष्टता है।वनों के महत्व को दर्शाते हुए कहा जाता है ," वन से जल,जल से अन्न, अन्न से जीवन"इसी तर्ज पर अब हम कहने लग गए हैं कि जल ही जीवन है।वन को लोगबाग हरा सोना भी कहते हैं।यह हमारे जीवन को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं।हमें एक और इनसे फल,इमारती लकड़ी,पशुओं का चारा,पक्षियों का भोजन आदिअनेक चीजें प्राप्त होती हैं,वहीं दूसरी ओर पर्यावरण को स्वच्छ,समृद्ध,मिट्टी के कटाव को रोकने व उसमें नमी बनाए रखने का कार्य करते हैं।ऑक्सीजन को बहुततायत मात्रा में प्रदान करने वाले ये वन हमारे जीवन के अविभाज्य अंग सरीखे हैं। कोरोना महामारी में ऑक्सीजन के लिए जो आपाधापी मची थी,उससे हमे सबक लेकर अधिक से अधिक वृक्षारोपण और उनका संरक्षण करना चाहिए।यह हमारा सामाजिक और नैतिक दायित्व है।




           सरकारी वन महोत्सव जो प्रदेश सरकारें आयोजित करती हैं,उसकी एक बानगी देखी जाए।उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वृक्षारोपण जन आंदोलन-2021 के तहत बृहद वृक्षारोपण कार्यक्रम 04 जुलाई,2021 को महामहिम श्री राज्यपाल जी ने पहूज नदी,सिमरधा डैम,झांसी तथा मा मुख्यमंत्री जी ने पूर्वांचल एक्सप्रेस वे, बड़ाडांड,बल्दीराय,सुल्तानपुर से वृक्षारोपण कर वन महोत्सव का आगाज किया गया।सम्प्रति यह भी निर्देश/आग्रह किया गया है कि "मेरा पेड़ –मेरा साथी" से संबंधित फोटो व वीडियो अपलोड करें।साथ ही प्रदेश में इस सीजन में 30 करोड़ वृक्षारोपण का लक्ष्य रखा गया है।04 जुलाई को 12 घंटे में 25 करोड़ पौधे लगाए गए।इसी तर्ज पर 2017 18 में 5.71 करोड़,2018 19 में 11.77 करोड़,वर्ष 2019 20 में 22.60 करोड़,2020 21 में 25.87 करोड़ पौधे तथा इस वर्ष 2021 22 में 30 करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य है।इस तरह पांच वर्षों में सरकार ने कुल 95.95 करोड़ पौधे लगाए गए, उत्तर प्रदेश सरकार के वन मंत्री श्री दारा सिंह चौहान ने वन विभाग के मुख्यालय में पत्रकार वार्ता में बताया है कि मा मुख्यमंत्री जी ने 100 करोड़वा हरिशंकरी का पौधा रोपित किया है।इससे स्पष्ट है कि इस सरकार में 100 करोड़ पौधे केवल सरकारी महकमों ने लगाए हम जैसे लाखों लोगों की जो अपने से लगा रहे हैं,उनकी गिनती नहीं है,और पूर्ववर्ती सरकारों ने भी ऐसे ही योजना बद्ध तरीके से वृक्षारोपण अभियान चलाया था।लेकिन सरकार द्वारा रोपित इसमें से कितने पौधे बचे हैं,इसका अभी तक विवरण प्राप्त नहीं हुआ है,इस ओर ध्यान देकर हम कम खर्च में अधिक पौधो को सुरक्षित रख सकते हैं।मुझे भी वृक्षारोपण का शौक बचपन से ही है( 1971 में बांग्ला देश बनने की खुशी में अपने अग्रज स्मृतिशेष डा घनश्याम चौधरी की प्रेरणा से पहला पेड़ आम का लगाया था),तबसे अभी तक विराम नहीं लिया है,अब यह मेरे जीवन का एक अपरिहार्य हिस्सा हो गया है।लेकिन एक पेड़ को लगाकर उसे बड़ा करने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है,बहुत सारा वक्त लगता है,फिर वह पौधा पेड़ बनकर समस्त प्राणियों को शुद्ध ऑक्सीजन, पुष्प व फल प्रदान करता है। एक पेड़ अपने जीवनकाल में लाखों लीटर ऑक्सीजन के साथ आजीविका के दर्जनों साधन,जहर सोखने की क्षमता,ठंडक,छाया,औषधि,फल-फूल,ईंधन, इमरती लकड़ी,और जीवन भर सकून देने के साथ ही हमारे मन को प्रफुल्लित करता है,उमंग और जोश से भर देता है।ऐसी ही अभिव्यक्ति,हमारे मित्र और प्रधान न्यायाधीश,पारिवारिक न्यायालय हरदोई श्री एम पी चौधरी,जो स्वयं वृक्षारोपण का शौक रखते हैं,कहते हैं कि अपने द्वारा रोपे गए पेड़ में जब पहला फल लगता है तो उसे देखकर उतनी ही खुशी होती है, जितनी पहली बार तनख्वाह मिलने पर होती है,व्यक्त करते हैं।पेड़ लगाना अच्छा कार्य है,उससे भी महत्वपूर्ण उसे बचाना है,उसकी परवरिश है। अन्यथा एक पौधे की हत्या उसके बाल्यकाल में ही कर देना है,यदि हमने उसे लगाकर केवल छोड़ दिया।हमने अपने आस- पास जो देखा है वह पौधों की बाल हत्या ही ज्यादा हो रही है।किसान या कोई भी व्यक्ति प्रति वर्ष 2 –4 पौधों को ही लगाने और उसे सुरक्षित रखने में पसीना छोड़ देता है,छुट्टा जानवरों व घड़रोज की बाढ़ सी आ गई है,देखते ही देखते वे इन पौधों को नष्ट कर देते हैं।फिर जिसे लोग लगाकर फोटो/वीडियो बनाकर चले जाते हैं,फिर उनका क्या हश्र होता होगा? कभी सोचा या देखा? एकइसलिए जितने बड़े पैमाने पर सरकार वृक्षारोपण करती है,उतने पौधों को जिंदा और सुरक्षित रख पाना एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य है।बावजूद इसके वन महोत्सव कार्य एक बहुत ही सराहनीय कदम है,पर्यावरण को स्वस्थ व स्वच्छ बनाने का,इसे जनमानस से जोड़कर एक जन आंदोलन का रूप देना होगा।लोगों को उनके सामाजिक दायित्व का एहसास कराना होगा।तभी सही मायने में वन महोत्सव की सरकार की योजना परवान चढ़ेगी।सरकार के कुछ अधिकारी गण पर्यावरण को लेकर बहुत संवेदनशील हैं।ऐसे ही संवेदनशील व्यक्तित्व हैं श्री सिया राम वर्मा जी,एआर टी ओ,प्रयागराज,
जिन्होंने न केवल अपने कार्यालय को ही हरा भरा कर दिया अपितु अपने गृह जनपद में भी अभियान चलाकर वृक्षारोपण के पुनीत कार्य को अंजाम देकर,प्रकृति की गोंद को सजोने का कार्य करते आ रहे हैं।
          विश्व के कुछ देश ऐसे हैं जहां बिना पौधारोपण किए विद्यार्थियों को उपाधि नहीं प्रदान की जाती है।हमारे पूरे प्रदेश में स्नातक द्वितीय वर्ष में पर्यावरण एक अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाता है,लेकिन प्रत्येक विद्यार्थी को छोड़ दीजिए 100 में ही एकाध मिलेंगे जो सचेत होंगे पर्यावरण के प्रति,लगभग कमोवेश यही हाल हम शिक्षकों का भी है। हमें वनों के प्रति ज्यादा सजग व संवेदनशील होने की जरूरत है,क्योंकि वन ऑक्सीजन के संचित कोष स्थल हैं जो कार्बन डाई ऑक्साइड को अवशोषित कर हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं तथा पर्यावरण में विविध गैसों का संतुलन बनाए रखते हैं।आजकल मियावकी तकनीक से हम कम क्षेत्रफल में अधिक पेड़ लगा सकते हैं।इस पद्धति में पौधों को एक दूसरे से बहुत कम दूरी पर लगाया जाता है,जिससे पौधे अगल बगल की अपेक्षा केवल ऊपर की ओर सूर्य की रोशनी प्राप्त कर बढ़ते हैं।प्रयागराज नगर निगम द्वारा इस विधि से पौध लगाने की घोषणा की गई है।केरल सरकार द्वारा इस विधि को अपनाया गया है।इस पद्धति से एक हेक्टेयर में दस हजार तक पौधे लगाए जा सकते हैं।वन अनेक जीव जंतुओं व पशु पक्षियों के आश्रय स्थल हैं जो पारस्थितिकी तंत्र को संतुलित बनाए रखने में हमारी मदद करते हैं।जल के प्रवाह को कम करके मृदा अपरदन को रोकते हैं।वायु प्रदूषण,ध्वनि प्रदूषण,जल प्रदूषण को नियंत्रित करने में वनों की महत्व पूर्ण भूमिका होती है।हमारी अर्थ व्यवस्था को सुदृढ़ करते हैं।मानव के लिए वन संपदा अमृत के समान है।इसका संरक्षण व संवर्द्धन हम सभी का सामाजिक और नैतिक दायित्व है।
     डा ओ पी चौधरी
एसोसिएट प्रोफेसर, मनोविज्ञान विभाग
श्री अग्रसेन कन्या पी जी कॉलेज वाराणसी।
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सोमवार, जुलाई 05, 2021

वो है मेरी प्यारी कविता: सुरेन्द्र कुमार पटेल की कविता Kavita Par kavita in hindi


कविता जो हमारे सुख-दुःख की साथी है, कविता जो हमारे हर्ष और विषाद की वाहिका है, कविता जो हमारी  मनःस्थिति और हृदयतल को स्पर्श करती है, कविता जो प्रेम और आक्रोश को अभिव्यक्त करती है, ऐसी कविता पर कोई कविता न हो, ऐसा कैसे हो सकता है. एक छोटी सी कोशिश की है कविता पर कविता करने की. कविता पर कविता लिखने की. आशा है कविता पर यह कविता आपको जरूर पसंद आएगी. यदि यह आपके हृदयतल को अंश मात्र भी स्पर्श करने में सक्षम हो तो आपसे प्रार्थना है कि इसे अपने मित्रों एवं परिचितों तक अवश्य पहुंचाएं.
प्रस्तुत है सुरेन्द्र कुमार पटेल  के ब्लॉग से ली गयी यह कविता. 

Kavita Par  kavita in hindi - कविता पर एक कविता -

....वो है मेरी प्यारी कविता
जिसमें अन्तस को छूने की ललक है,
जिसमें जीवन की चतुर्दिक झलक है,
जिससे  जुड़ा कल-आज और कल है,
जिसमें जीवन का निनाद कलकल है।
वो है मेरी प्यारी कविता॥


जिसमें प्रिय-मिलन की मधुर स्मृति है,
जिसमें समाहित प्रिय की सुन्दर कृति है,
जिसमें सबके मन का सुन्दर स्वरूप है,
जिसमें जीवन भर की छांव और धूप है
वो है मेरी प्यारी कविता॥


जिसमें बादल और धरती की छुअन है,
जिसमें प्रिय के विरह का मौन रुदन है,
जिसमें रूठे मन को मनाने की मनौती है,
जिसमें जन-मन को जगाने की चुनौती है।
वो है मेरी प्यारी कविता॥


जिसमें प्रिय के संबोधन की ताजगी है,
जिसमें विविध प्रेम प्रकाट्य की बानगी है,
जिसमें ह्दय-वेदनाओं का अगम अंगार है,
जिसमें मन की पहेलियों का सुगम द्वार है,
वो है मेरी प्यारी कविता॥


जिसमें ममताविकल आंसुओं की झड़ी है,
जिसमें मानव मनयोग की मजबूत कड़ी है,
जिसके बिना सितारों के तार भी मौन हैं,
जिसके बिना हम-आप आधा या पौन हैं,
वो है मेरी प्यारी कविता॥


जिसमें अध्यात्म का रचा गया सुपथ है,
जिसमें व्यक्त भक्तिभाव आज अकथ है,
जिसमें वीरों के शौर्य का समृद्ध गान है,
जिसमें रणबांकुरों का उत्साही सम्मान है।
वो है मेरी प्यारी कविता॥


जिसमें बारिश से उठती मिट्टी की सुगंध है,
जिसमें अमानवीय चीत्कारों की दुर्गंध है,
जिसमें जीवन का गहरा अंधेरा कुआँ है,
जिसमें प्रथम सुहाग सेज से उठता धुआँ है।
वो है मेरी प्यारी कविता॥


जिसमें सिंहासनों को हिलाने की हुंकार है,
जिसमें गिद्ध-पंजों से छुड़ाने की पुकार है,
जिसमें श्रमिक-मौत के सौदों का दृश्य है,
जिसमें नित्य ढलते सच का दुःखद हश्र है।
वो है मेरी प्यारी कविता॥


जिसमें उतरा हृदय भाव गहरा डुबोते हैं,
जिसमें मन की पीड़ा शब्दों से पिरोते हैं,
जिसमें इंद्रधनुष में समाहित रंग सभी हैं,
जिसमें गोता लगाते सभी कभी न कभी हैं।
वो है मेरी प्यारी कविता॥


वह कविता आजकल छूकर चली जाती है।
होना था आगोश में, अनछुआ रह जाती है।
मानव हृदय के तार यूँ सख्त होते जा रहे हैं,
स्वयं पर हँसती है, जब हँसाने से रह जाती है।
वो है मेरी प्यारी कविता॥
(मौलिक एवं स्वरचित)
© सुरेन्द्र कुमार पटेल
ब्यौहारी, जिला-शहडोल
मध्यप्रदेश

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रविवार, जुलाई 04, 2021

कोविड-19:महामारी के दौर में हमारे गांव- देहात–डॉ. ओ पी चौधरी



कोविड-19:महामारी के दौर में हमारे गांव- देहात–डॉ. ओ पी चौधरी
Kovid-19: Our village Countryside-Dr. O PChowdhary
           कोविड-19 ने एक महामारी के रूप में बहुत तबाही मचाई,पूरे विश्व में त्राहि- त्राहि मच गई।एक साल से भी अधिक का समय बीतने के बाद भी अभी दहशत गर्दी और आशंका  का माहौल है।भला हो उन वैज्ञानिकों का जिन्होंने बहुत ही कम समय में वैक्सीन का ईजाद कर लिया और बड़ी आबादी का टीका करण भी हो चुका है।लगातार टीके लगवाने को प्रोत्साहित भी किया जा रहा है।क्योंकि कोरोना से बचने के लिए सावधानी बरतने के साथ ही टीका आवश्यक है।
           कोरोना महामारी का प्रभाव अपने देश में मार्च, 2020 में बढने लगा तो भारत सरकार को लॉकडाउन की घोषणा करनी पड़ी।बहुत बड़ी संख्या में गांवों से रोजी - रोटी के लिए शहर गए कामगारों को अपने उसी गांव में शरण मिली जहां से वे चले गए थे,कितनों ने तो भुला ही दिया था की हम कहां से यहां तक की यात्रा किए हैं।शहर की चकाचौंध में अतीत की स्मृतियां विलुप्त हो गई थी।किंतु इस महामारी ने एक ही झटके में सब कुछ याद दिला दिया, गांव की पगडंडी, सरपत से भरी खाईं वाली खोर जो अब चकरोड़ और सड़क में परिवर्तित हो चुकी हैं,कुंए का स्थान आधुनिक पंप ले चले हैं।घर में ढिबरी और लालटेन का स्थान एलईडी ने ले लिया है।खाना बनाने के लिए लकड़ी के स्थान पर गैस या इंडक्शन आ गया है।आधुनिकता का लिबास पहनकर गांव भी इतरा रहा है।बावजूद इसके भी अभी कुछ हद तक भारतीय संस्कृति और सभ्यता को अपने में समेटे है,रीति रिवाजों,परंपराओं को सहेजे हुए है।गांव- देहात में मानवीय संवेदना का पुट अभी शेष है।
          कोरोना वायरस ने अधिकांश घरों में अपनी दूसरी लहर में  पाँव पसारना शुरू कर दिया तो जो कभी गाँव छोड़कर शहर की ओर रोजी-रोटी के लिए केवल रुख ही नहीं कर लिए थे बल्कि घरबारी हो गए थे।कुछ ने अपना आशियाना बना लिया  तो कुछ किरायेदारी पर ही चैन से रह रहे थे।कुछ लोग झोपड़- पट्टियों में गुजर बसर कर रहे थे। कोरोना महामारी में सभी लोग अपने गाँव की ओर रुख कर लिये। लाकडाऊन की घोषणा हुई, निर्माण कार्य,मिलें,कार्यालय, कल-कारखाने सभी बंद होना शुरू हो गये।लोगों के रोजी- रोटी का ठिकाना न रहा तो लोग बहुत बड़ी संख्या में अपने-अपने परिवार के साथ गठरी-मोटरी लेकर पैदल ही चल दिए,अपने उस गांव देश जहां से वे निकलकर शहर गए थे।उस समय बड़ा ही भयावह दृश्य था,चारों ओर सड़क पर आदमी ही दिख रहे थे।कुछ लोगों ने रास्ते में ही दम तोड दिया।कितने लोग घर पहुँचे तो लोगों ने उन्हें बहुत आत्मीयता से स्वीकार नहीं किया।इतना ही नहीं जिन राज्यों से ऐसे लोग पुनः अपने-अपने घरों की ओर रुख किए,ऐसे लोगों को वहाँ की सरकारों ने उन्हें, उनके ही हाल पर छोड़ दिया।पूरा परिवार बच्चों के साथ उस मार्च-अप्रैल की तीखी धूप में बगैर भोजन-पानी के बेहाल हो गया।चारों ओर अफरा-तफरी का आलम था। 
            जब मामला 2020 का अंत आते-आते कुछ कमी की ओर चला और लोग फिर गांवों से शहर जाते,कुछ चले भी गए,तब तक कोविड-19 की दूसरी लहर मार्च, 2021 से समुद्र की लहरों से भी अधिक उफान मारते हुए आगे बढने लगी।पूरा विश्व एक बार फिर से इसके चपेट में भयंकर रूप से आ गया ।इस बार बहुत ही अधिक संख्या में युवा एवं मध्य आयु वर्ग के लोग अपनी जान गवां बैठे।अबकी ज्यादा तांडव अपने ही देश में महामारी ने मचाया।केन्द्र सरकार और कुछ राज्यों में जहाँ चुनाव चल रहा था उन राज्यों की सरकारों ने इसके बढते हुए खतरे को या तो भांप नहीं पाये या अनदेखी किया ।अन्य राज्यों की सरकारों ने भी शुरुआती दौर में कोविड-19 की दूसरी लहर को गंभीरता से नहीं लिया। उत्तर प्रदेश में पंचायतों के चुनाव का दौर अपने पूरे सबाब पर था।जब मामला हाथ से निकलने लगा और भारी संख्या में लोग इसकी चपेट में आने लगे ।सरकारी अस्पतालों में इससे निपटने के लिए संसाधन नहीं थे,सुविधाएं नहीं थी।न तो बेड और न ही दवाएं ।इतना ही नहीं आक्सीजन के अभाव में बहुतों ने दम तोड़ दिया । एक तरफ चिकित्सकों एवं पैरा मेडिकल स्टाफ की कमी ।ऐसे में सरकारों को  निर्णय लेना पड़ा कि  लोग गैर सरकारी अस्पतालों में अपना इलाज करायें ।वहाँ भयंकर रूप से एक तो पहले से ही जीवन रक्षक दवाइयों की कालाबाजारी तो दूसरी तरफ नकली दवाओं का कालाजाल था ही ।वेन्टीलेटर की कमी दिखा कर तो कभी-कभी जाँच रिपोर्ट देरी से आने का बहाना बनाकर अधिकांश गैर सरकारी अस्पतालों में खूब लूटपाट हुई ।महीनों तक वेन्टीलेटर पर मरीजों को रखा गया ।घर वालों को देखने तक नहीं दिया गया ।एक-एक मरीज  से 5 से 6लाख या उससे भी अधिक वसूला गया और फिर अंत में कह गया कि आपका मरीज नहीं हम बचा पाए सारी! इन सब स्थितियों में लोग अब गाँव की ओर रुख कर रहे हैं। कहते हैं कि-आओ फिर गाँव लौट चलें । गाँव में शहर से लौटे कुछ लोगों ने परिवार का खर्च चलाने के लिए कोई न कोई कार्य करना भी शुरू कर दिया है,नहीं तो अपने परंपरागत व्यवसाय में ही हाथ बंटा रहे हैं।।सरकारों को भी  चाहिए कि ऐसे लोगों का सर्वेक्षण कराकर उन्हें गाँव और आसपास के स्थानीय बाजारों में स्वरोजगार के साधन और उन्हें आत्म निर्भर बनाने के लिए सड़क,बिजली, पानी,शिक्षा एवं स्वास्थ्य की सुविधाएं उपलब्ध कराये ही साथ ही उन्हें सस्ते दर पर भूमि और धन उपलब्ध करायें जिससे लोग  गांव की ओर रुख कर पुनः अपने-अपने घरों की ओर लौट आएं और वहीं अपनी रोजी रोटी का बेहतर प्रबंध कर सकें।सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्योगों(एम एस एम ई),कृषि,पशुपालन एवम् संबद्ध क्षेत्रों और सामाजिक क्षेत्र को सहायता प्रदान करने की जरूरत है,ताकि स्थानीय स्तर पर प्रवासी कामगारों को रोजगार मुहैया कराया जा सके। इससे शहरों का जनसंख्या घनत्व भी कम होगा,उनका प्रबंधन भी आसान होगा। वर्तमान परिवेश में भी अभी गाँव की आबो-हवा बहुत ही उपयोगी है,पर्यावरण में शुद्धता है।कृषि कार्य एवं संबंधित कार्यों में भी लोग जुड़ेगे,उनका जीवन स्तर सुधरेगा।देश की अर्थ व्यवस्था भी पटरी पर आएगी।कृषि ही एक ऐसा क्षेत्र रहा है जिसने इस महामारी के दौर में भी हमारी अर्थ व्यवस्था को मजबूत बनाने का कार्य किया।स्वास्थ्य संबंधी परेशानी के कारण जैविक खेती की तरफ भी लोगों की रुझान बढ़ी है,इससे पर्यावरण तो स्वच्छ होगा ही लोगों को शुद्ध अन्न मिल सकेगा।दुग्ध,कुक्कुट और मत्स्य पालन को भी बढावा मिलेगा ।जो गाँव लोगों के परदेश चले जाने से सूने से लग रहे थे,वहां चहल पहल शुरू हो गई, वे पुनः गुलजार होने लगे।गांव की चौपाल सजने लगेगी।आत्मनिर्भर भारत का स्वप्न साकार होगा। प्रवजन पर भी अंकुश लगेगा।लोग अपने गांव, हाट और कस्बों में ही रहकर अपना काम धंधा करने लगेंगे।इसमें सरकार की "एक जनपद,एक उत्पाद" की कार्ययोजना प्रवासी कामगारों के लिए मुफीद साबित होगी। गांवों के विकास से ही देश के विकास का पथ प्रशस्त होगा।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के स्वयं के हैं.जिससे  ब्लॉगर टीम का सहमत होना आवश्यक नहीं)
      डा ओ पी चौधरी
एसोसिएट प्रोफेसर, मनोविज्ञान विभाग
श्री अग्रसेन कन्या पी जी कॉलेज वाराणसी।
मो:9415694678
   कृपया इन्हें भी पढ़ें:
  

गाँव की ओर (कविता): मनोज कुमार चंद्रवंशी

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पौधारोपण से प्रेम: राम सहोदर पटेल



पौधारोपण से  प्रेम

क्या नेह बढ़ाना उचित नहीं, जो गले लगता है तुझको।

निज स्वारथ की परवाह न कर जो, पोषण करता है तुझको

धूप ताप सहकरके जो, छाँव मधुर देता तुझको।

कष्ट अनेकों सहकर जो, प्यार अगम देता है तुझको॥

ज्यों सहती माता है विपदा, निज लालन के परिपालन पर।

त्यों पौधा विपदा सहकरके, आराम सकल देता तुझको॥

आरी, टांगी का वार सहे पर, संताप नहीं देता तुझको।

पत्थर तुझसे खाकर भी, फल मीठा देता है तुझको॥

उसको तुझसे कुछ चाह नहीं, सब वह ही देता है तुझको।

तेरे जीवन का कण-कण, संचारित  करता है तुझको॥

निज जीवन का क्षण-क्षण, बलिहारी करता है तुझको।

तू निर्मम आचार करे, वह सदाचार देता है तुझको॥

तू काट हवन करता इसको, निज स्वारथ की बलि वेदी पर।

तेरे छज्जे की बल्ली बन, विश्राम मधुर देता है तुझको॥

पौधारोपण से रहे दूर क्यों न पौधा काटे गिन-गिन के।

वह मेघ बुला वर्षा करता, दे उल्लास भरे जीवन तुझको॥

नन्हीं सी आवश्यकता के हित, दरख्त पेंड मिटाता तू।

वह प्राण वायु आरक्षण दे, निष्कंटक जीवन दे तुझको॥

भीषण ग्रीष्म से तपकर जब, हो जलाभाव जल आलय पर।

निज सीने में संचित जल से,  जलापूर्ति करता तुझको॥

पर्यावरण सुरक्षा हित तत्पर रहता है निशदिन।

रोपित कर इससे प्रेम बढ़ा, ईंधन दे, पोषण दे तुझको॥

साज श्रृंगार रखे धरणी, करता कुसुमित निज कुसुमों से।

औषधि, फल-फूल अनेकन दे, भरपूर समर्पण दे तुझको॥

 फर्नीचर से दरवाजों तक, यह सदन सफल श्रृंगार करे।

जीवन तक आश्रय देता नित, मरने पर गोदी दे तुझको॥

भाव सहोदर रख इससे, मैत्री भाव बना ले तू।

यह है तेरा जीवन साथी, हर मंगल हर क्षण दे तुझको॥

यह है तेरा जीवन साथी, हर मंगल हर क्षण दे तुझको॥

रचना:

राम सहोदर पटेल,

ग्राम-सनौसी, तह.-जयसिंहनगर, थाना-ब्योहारी, जिला-शहडोल

कृपया इन्हें भी पढ़ें: 

प्रकृति और मानव :राम सहोदर

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वाणी (दोहा): मनोज कुमार चंद्रवंशी की कविता

वाणी (दोहा) 

ऐसी  वाणी  बोलिए,   जिसमें  होय मिठास।
सुनकर मधुरस सम लगे,आवे जिमे मिठास॥

वाणी रम्य आभूषण,    वाणी  है   अनमोल।
सबको  मनभावन  लगे,  ऐसी  वाणी बोल॥

सुडौल  वाणी बोलिए,  वाणी महिम अपार।
वाणी से झलकन लगे,  सदा सद् व्यवहार॥

वाणी  ही  श्रृंगार  है,   वाणी  औषधि मूल।
वाणी  से बन जाए,   ये  जीवन  अनुकूल॥

वाणी  जीवन मंत्र है,  सदा  दिलाता  मान।
कर्कश वाणी कटु लगे,मिले सदाअपमान॥

कोयल कूकत डार में,  करती कुहू पुकार।
काका वाणी कटु लगे,करते सभी दुत्कार॥

ऐसी वाणी बोलिए, खुशियाँ  मिले अपार।
मीठी वाणी मधु लगे, हो  वाणी   में सार॥

वाणी तन शोभित करे, वाणी है परिधान।
बदन झलके वाणी से,  वाणी है पहचान॥
कृपया इन्हें भी देखें:-  

सपना (कविता) : सुरेन्द्र कुमार पटेल


                         रचना:
               स्वरचित एवं मौलिक
              मनोज चन्द्रवंशी "मौन"
       बेलगवाँ जिला अनूपपुर मध्यप्रदेश 

शनिवार, जुलाई 03, 2021

सावन आयो (मत्तगयन्द सवैया) मनोज चंद्रवंशी sawan aayo sawan par kavita

🌹मत्तगयन्द सवैया 🌹
sawan aayo sawan par kavita

विधान 211,211,211,211,211,211,211,22
भानस×7 +2 गुरु= एक चरण

मेघ चले  अब  बारिस लेकर,
              अंबर में  अब  बादल  छायो।
शीतल मंद चले  अब मारुत,
              भू पर  पावन  सावन आयो॥

सावन  माह  लगे   मनभावन,
              कूकत कोयल कानन  भायो।
नाचत  मोर   चराचर  मोहित,
              मेघ  सुहावन  बारिश  लायो॥

कोकिल तान सभी सुनो अब,
             कोयल की सुर मीठ जुबानी।
भीग गयी अब भू तल अंबर,
             सावन का बरसात सुहानी॥

सावन गीत अली मिल गावत।
             मीठ मनोहर गीत सुहायो।
डारन में सखियाँ सब झूलन,
            मोहक झूलनियाँ मन भायो॥


                      रचना
            स्वरचित एवं मौलिक
     मनोज कुमार चन्द्रवंशी मौन
  बेलगवाँ जिला अनूपपुर मध्यप्रदेश 

अशोक त्रिपाठी 'माधव' के बघेली गजल Ashok Tripathi Ke Bagheli Gazal


बघेली गजल
अशोक त्रिपाठी 'माधव' के बघेली गजल Ashok Tripathi Ke Bagheli Gazal
आपन फरज निबाहा आगे बढ़े रहा।
खासा परगति के सीढ़ी मा चढ़े रहा।।

पुरिखन हर सीख गांठ मा बांधि के राख्या।
आय जई मंजिल खुद रसता गढ़े रहा।।

थकि के बइठि न जया तूं कहौं छहांरे मा।
धीरेन-धीरे चला गमय-गम कढ़े रहा।।

निंगही से सीखा कुछ अकिल लगाबा थोरौ।
मकड़ी कस जाला रातौ-दिन गढ़े रहा।।

देखा सोच न मान्या कउनिउ बातन के।
दोस न एक दुसरे के मूड़े मढ़े रहा।।

हांथ मा हांथ धये बइठे से कुछू न होई।
कमर कसे करतब्ब मा अपने ठढ़े रहा।।

देई दइउ सहारा केबल करतब्बी का।
पाठ करम योगी बाला सब पढ़ें रहा।।

फल के इच्छा कबौ न कीन्ह्या जान लिहा।
पढ़य के साथय-साथ अउरु कुछ लढ़े रहा।।

आजु-काल बिन लढ़े पढ़ाई फीकी है सब।
माधव के या सीख के मंतर पढ़े रहा।।

अशोक त्रिपाठी "माधव"
  शहडोल मध्यप्रदेश
कृपया इन्हें भी पढ़ें:
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शुक्रवार, जुलाई 02, 2021

उमड़ घुमड़ जब आए बादल(बाल कविता)-रजनीश की बारिश पर बहुत सुन्दर कविता

 keywords : School children who have written some poems or stories

उमड़ घुमड़
जब आए बादल(बाल कविता)

        -रजनीश

उमड़-घुमड़ जब आए बादल

मन को रस दे जाए बादल

बादल की गर्जन को देखो  

मन को भी कड़काये बादल।

 

नभमंडल में छाए बादल

घुप्प अंधेरी लाए बादल

अमृत-सा जल मोती से

धरती को मन भर नहलाए बादल।

 

चमक-दमक की छवि को देखो

श्वेत रेख की मणि को देखो

यहाँ-वहाँ बस छाये बादल

मन को मनभर लुभाये बादल।

 

बरस-बरस ललचाए बादल

हम सबको हर्षाये बादल

धरती की आभा को देखो

नित-प्रतिदिन चमकाए बादल।

 

कदंब फूल गए डाली-डाली

मदमस्ती बस फूलों वाली

अपनी बीन बजाए बादल

मन को मन भर तरसाए बादल।

 

दादुर, मोर, पपीहा को

अपनी तान से बुलाए बादल

देख-देख सब नाच रंग को

मन से भी शर्माए बादल।

 

अकड़ू-बकड़ू जिया को पकड़ू

देख-देख हहराता बादल

पानी की जलबूँदों से

सबका मन सहलाता बादल।

 

तपन खींचता ठंडक देता

धरती पर यह प्यारा बादल

मनभर मन में दीप जलाता

और मन को सुलगाता बादल।

 

हे बादल! तुम जलवाहक हो

बरसो कि हम भर जाएँ

जल से तू आपूरित करना

कि सारी सृष्टि तर जाये।

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कृपया इन्हें भी देखें:-

बरसात पर मनोज कुमार चंद्रवंशी की एक अच्छी कविता

प्रकृति : एक अनमोल उपहार (कविता) : शोभा तिवारी

बढ़ती भौतिकता विलुप्त होती संवेदनाएंडा ओ पी चौधरी

तू ही है मेरा अभिमान:अर्पिता शिवहरे की कविता

प्रकृति और मानव :राम सहोदर

वसुधा:बी एस कुशराम

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गुरुवार, जुलाई 01, 2021

बघेली पर्यावरण गीत: अशोक त्रिपाठी 'माधव' BAGHELI PARYAWARAN GEET



बघेली पर्यावरण गीत
हेरे मिलै नहिं पीपर बहेरा

मनई के जीबन मा होइगा अँधेरा
हेरे मिलै नहिं अब पीपर बहेरा

न आमा बगैचा न तेंदू न महुआ
नहीं अब खरहरी न हर्रा न कहुआ।
न चिरई चनूँगुन के खोंथइला बसेरा।
हेरे मिलै नहिं अब पीपर बहेरा।

न सालैं न गुँइजा न छुइला न सगमन।
जामुन खम्हार नहीं न बीही न सहिजन।
करौंदा बरारी अउ न बइरि मिलै हेरा।
हेरे मिलै नहिं अब पीपर बहेरा।

सीसम न नीलगिर सेमर न खैरा।
कैथा न इमली बेल सेहेरुआ सजैरा।
न चंदन चचेंड़ा न चिरुल चार चेरा। 
हेरे मिलै नहिं अब पीपर बहेरा।

सताबर पसारन न गुरिज अस्सगंधा।
पेंड़ काट मनई बनाय लिहिस धंधा।
बेंचि-बेंचि पेंड़न का बनाये है डेरा।
हेरे मिलै नहिं अब पीपर बहेरा।

एहिन के कारण आजु बगरा प्रदूषन।
हेरत फिरैं सब आजु शुद्ध आक्सीजन।
मरा रोइ-रोइ चाहे मूड़ का कचेरा।
हेरे मिलै नहिं अब पीपर बहेरा।

अबहूँ भरे भरे मा चेता बिरछा लगाबा।
नाहक मा देखा खुद के नास ना कराबा।
पइहा न हेरे कहौं जंगल-पतेरा।
हेरे मिलै नहिं अब पीपर बहेरा।

प्रकृति के कहर का माधव समझा न रोग हो।
मनई के तन पा के रचा न कुजोग हो।
अबहूँ भरे मा जागा करा न अबेरा।
हेरे मिलै नहिं अब पीपर बहेरा।

अशोक त्रिपाठी "माधव"
   शहडोल मध्यप्रदेश
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