रविवार, जुलाई 18, 2021
कोविड-19:तीसरी लहर की सुबगुबाहट और हम- आप-डा. ओ. पी.चौधरी
शनिवार, जुलाई 17, 2021
अशोक त्रिपाठी "माधव" की बारिश पर गीतिका छंद में कविता
बरसि जई घनस्याम: अशोक त्रिपाठी "माधव"
मन के पतंग -रजनीश (हिंदी प्रतिष्ठा)
मन के पतंग
-रजनीश
(हिंदी प्रतिष्ठा)
गीत हैं, गुलाल हैं बच्चे
धरा के नूतन पैगाम
हैं बच्चे
जब ये गीत मधुर पिरोते
हैं
ऐसा लगता है सुर
के ताल हैं बच्चे
कुमकुम, चंदन सरीखे सुगंधित
हैं
“मिट्टी और श्रम”
के पहचान हैं बच्चे
अपनी मस्ती की
पाठशाला में
अपने मन के मुस्कान
हैं बच्चे
जब कभी ये पतंगें
उड़ाते हैं
लगता है ऊँचाइयों
के सलाम हैं बच्चे
जिनको “नीति” से
पगे संदेश मिले हैं, वे
हर जगह सम्मान
हैं बच्चे
क्या फूलों को
बोलते किसी ने देखे हैं?
मधुर, सुहावने, हृदय के वरदान हैं बच्चे।।
💐 सम्पूर्ण बाल-मंडली को सादर
समर्पित💐
बुधवार, जुलाई 07, 2021
सरकारी वन महोत्सव एवम् सामाजिक उत्तरदायित्व–डा ओ पी चौधरी का पर्यावरण के संबंध में आलेख
सोमवार, जुलाई 05, 2021
वो है मेरी प्यारी कविता: सुरेन्द्र कुमार पटेल की कविता Kavita Par kavita in hindi
Kavita Par kavita in hindi - कविता पर एक कविता -
जिसमें अन्तस को छूने की ललक है,
जिसमें जीवन की चतुर्दिक झलक है,
जिससे जुड़ा कल-आज और कल है,
जिसमें जीवन का निनाद कलकल है।
वो है मेरी प्यारी कविता॥
जिसमें प्रिय-मिलन की मधुर स्मृति है,
जिसमें समाहित प्रिय की सुन्दर कृति है,
जिसमें सबके मन का सुन्दर स्वरूप है,
जिसमें जीवन भर की छांव और धूप है
वो है मेरी प्यारी कविता॥
जिसमें बादल और धरती की छुअन है,
जिसमें प्रिय के विरह का मौन रुदन है,
जिसमें रूठे मन को मनाने की मनौती है,
जिसमें जन-मन को जगाने की चुनौती है।
वो है मेरी प्यारी कविता॥
जिसमें प्रिय के संबोधन की ताजगी है,
जिसमें विविध प्रेम प्रकाट्य की बानगी है,
जिसमें ह्दय-वेदनाओं का अगम अंगार है,
जिसमें मन की पहेलियों का सुगम द्वार है,
वो है मेरी प्यारी कविता॥
जिसमें ममताविकल आंसुओं की झड़ी है,
जिसमें मानव मनयोग की मजबूत कड़ी है,
जिसके बिना सितारों के तार भी मौन हैं,
जिसके बिना हम-आप आधा या पौन हैं,
वो है मेरी प्यारी कविता॥
जिसमें अध्यात्म का रचा गया सुपथ है,
जिसमें व्यक्त भक्तिभाव आज अकथ है,
जिसमें वीरों के शौर्य का समृद्ध गान है,
जिसमें रणबांकुरों का उत्साही सम्मान है।
वो है मेरी प्यारी कविता॥
जिसमें बारिश से उठती मिट्टी की सुगंध है,
जिसमें अमानवीय चीत्कारों की दुर्गंध है,
जिसमें जीवन का गहरा अंधेरा कुआँ है,
जिसमें प्रथम सुहाग सेज से उठता धुआँ है।
वो है मेरी प्यारी कविता॥
जिसमें सिंहासनों को हिलाने की हुंकार है,
जिसमें गिद्ध-पंजों से छुड़ाने की पुकार है,
जिसमें श्रमिक-मौत के सौदों का दृश्य है,
जिसमें नित्य ढलते सच का दुःखद हश्र है।
वो है मेरी प्यारी कविता॥
जिसमें उतरा हृदय भाव गहरा डुबोते हैं,
जिसमें मन की पीड़ा शब्दों से पिरोते हैं,
जिसमें इंद्रधनुष में समाहित रंग सभी हैं,
जिसमें गोता लगाते सभी कभी न कभी हैं।
वो है मेरी प्यारी कविता॥
वह कविता आजकल छूकर चली जाती है।
होना था आगोश में, अनछुआ रह जाती है।
मानव हृदय के तार यूँ सख्त होते जा रहे हैं,
स्वयं पर हँसती है, जब हँसाने से रह जाती है।
वो है मेरी प्यारी कविता॥
© सुरेन्द्र कुमार पटेल
ब्यौहारी, जिला-शहडोल
मध्यप्रदेश
रविवार, जुलाई 04, 2021
कोविड-19:महामारी के दौर में हमारे गांव- देहात–डॉ. ओ पी चौधरी
गाँव की ओर (कविता): मनोज कुमार चंद्रवंशी
पौधारोपण से प्रेम: राम सहोदर पटेल
पौधारोपण से प्रेम
क्या नेह बढ़ाना उचित नहीं,
जो गले लगता है तुझको।
निज स्वारथ की परवाह न कर
जो, पोषण करता है तुझको ॥
धूप ताप सहकरके जो, छाँव
मधुर देता तुझको।
कष्ट अनेकों सहकर जो,
प्यार अगम देता है तुझको॥
ज्यों सहती माता है विपदा,
निज लालन के परिपालन पर।
त्यों पौधा विपदा सहकरके,
आराम सकल देता तुझको॥
आरी, टांगी का वार सहे पर,
संताप नहीं देता तुझको।
पत्थर तुझसे खाकर भी, फल
मीठा देता है तुझको॥
उसको तुझसे कुछ चाह नहीं,
सब वह ही देता है तुझको।
तेरे जीवन का कण-कण, संचारित
करता है तुझको॥
निज जीवन का क्षण-क्षण,
बलिहारी करता है तुझको।
तू निर्मम आचार करे, वह
सदाचार देता है तुझको॥
तू काट हवन करता इसको,
निज स्वारथ की बलि वेदी पर।
तेरे छज्जे की बल्ली बन,
विश्राम मधुर देता है तुझको॥
पौधारोपण से रहे दूर
क्यों न पौधा काटे गिन-गिन के।
वह मेघ बुला वर्षा करता,
दे उल्लास भरे जीवन तुझको॥
नन्हीं सी आवश्यकता के
हित, दरख्त पेंड मिटाता तू।
वह प्राण वायु आरक्षण दे,
निष्कंटक जीवन दे तुझको॥
भीषण ग्रीष्म से तपकर जब,
हो जलाभाव जल आलय पर।
निज सीने में संचित जल
से, जलापूर्ति करता तुझको॥
पर्यावरण सुरक्षा हित
तत्पर रहता है निशदिन।
रोपित कर इससे प्रेम बढ़ा,
ईंधन दे, पोषण दे तुझको॥
साज श्रृंगार रखे धरणी,
करता कुसुमित निज कुसुमों से।
औषधि, फल-फूल अनेकन दे,
भरपूर समर्पण दे तुझको॥
फर्नीचर से दरवाजों तक, यह सदन सफल श्रृंगार करे।
जीवन तक आश्रय देता नित,
मरने पर गोदी दे तुझको॥
भाव सहोदर रख इससे,
मैत्री भाव बना ले तू।
यह है तेरा जीवन साथी, हर
मंगल हर क्षण दे तुझको॥
यह है तेरा जीवन साथी, हर
मंगल हर क्षण दे तुझको॥
रचना:
राम सहोदर पटेल,
ग्राम-सनौसी, तह.-जयसिंहनगर, थाना-ब्योहारी, जिला-शहडोल
कृपया इन्हें भी पढ़ें:
प्रकृति और मानव :राम सहोदर
वाणी (दोहा): मनोज कुमार चंद्रवंशी की कविता
ऐसी वाणी बोलिए, जिसमें होय मिठास।
सुनकर मधुरस सम लगे,आवे जिमे मिठास॥
वाणी रम्य आभूषण, वाणी है अनमोल।
सबको मनभावन लगे, ऐसी वाणी बोल॥
सुडौल वाणी बोलिए, वाणी महिम अपार।
वाणी से झलकन लगे, सदा सद् व्यवहार॥
वाणी ही श्रृंगार है, वाणी औषधि मूल।
वाणी से बन जाए, ये जीवन अनुकूल॥
वाणी जीवन मंत्र है, सदा दिलाता मान।
कर्कश वाणी कटु लगे,मिले सदाअपमान॥
कोयल कूकत डार में, करती कुहू पुकार।
काका वाणी कटु लगे,करते सभी दुत्कार॥
ऐसी वाणी बोलिए, खुशियाँ मिले अपार।
मीठी वाणी मधु लगे, हो वाणी में सार॥
वाणी तन शोभित करे, वाणी है परिधान।
बदन झलके वाणी से, वाणी है पहचान॥
सपना (कविता) : सुरेन्द्र कुमार पटेल
रचना:
स्वरचित एवं मौलिक
मनोज चन्द्रवंशी "मौन"
बेलगवाँ जिला अनूपपुर मध्यप्रदेश
शनिवार, जुलाई 03, 2021
सावन आयो (मत्तगयन्द सवैया) मनोज चंद्रवंशी sawan aayo sawan par kavita
विधान 211,211,211,211,211,211,211,22
भानस×7 +2 गुरु= एक चरण
मेघ चले अब बारिस लेकर,
अंबर में अब बादल छायो।
शीतल मंद चले अब मारुत,
भू पर पावन सावन आयो॥
सावन माह लगे मनभावन,
कूकत कोयल कानन भायो।
नाचत मोर चराचर मोहित,
मेघ सुहावन बारिश लायो॥
कोकिल तान सभी सुनो अब,
कोयल की सुर मीठ जुबानी।
भीग गयी अब भू तल अंबर,
सावन का बरसात सुहानी॥
सावन गीत अली मिल गावत।
मीठ मनोहर गीत सुहायो।
डारन में सखियाँ सब झूलन,
मोहक झूलनियाँ मन भायो॥
रचना
स्वरचित एवं मौलिक
मनोज कुमार चन्द्रवंशी मौन
बेलगवाँ जिला अनूपपुर मध्यप्रदेश
अशोक त्रिपाठी 'माधव' के बघेली गजल Ashok Tripathi Ke Bagheli Gazal
शुक्रवार, जुलाई 02, 2021
उमड़ घुमड़ जब आए बादल(बाल कविता)-रजनीश की बारिश पर बहुत सुन्दर कविता
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उमड़ घुमड़ जब आए बादल(बाल कविता) -रजनीश
उमड़-घुमड़
जब आए बादल
मन
को रस
दे जाए बादल
बादल
की गर्जन को देखो
मन
को भी कड़काये बादल।
नभमंडल
में छाए बादल
घुप्प अंधेरी
लाए बादल
अमृत-सा जल मोती
से
धरती
को मन भर
नहलाए बादल।
चमक-दमक
की छवि को देखो
श्वेत रेख की
मणि को देखो
यहाँ-वहाँ बस छाये
बादल
मन
को मनभर लुभाये बादल।
बरस-बरस
ललचाए बादल
हम
सबको हर्षाये बादल
धरती
की आभा को देखो
नित-प्रतिदिन
चमकाए बादल।
कदंब
फूल गए डाली-डाली
मदमस्ती
बस फूलों वाली
अपनी
बीन बजाए बादल
मन
को मन भर तरसाए बादल।
दादुर,
मोर,
पपीहा को
अपनी
तान से बुलाए बादल
देख-देख
सब नाच रंग को
मन
से भी शर्माए बादल।
अकड़ू-बकड़ू
जिया को पकड़ू
देख-देख
हहराता बादल
पानी की जलबूँदों से
सबका मन सहलाता बादल।
तपन
खींचता ठंडक देता
धरती
पर यह प्यारा बादल
मनभर
मन में दीप जलाता
और
मन को सुलगाता बादल।
हे
बादल!
तुम जलवाहक हो
बरसो
कि हम भर जाएँ
जल
से तू
आपूरित करना
कि
सारी सृष्टि तर जाये।
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