बघेली गजल
अशोक त्रिपाठी 'माधव' के बघेली गजल Ashok Tripathi Ke Bagheli Gazal
आपन फरज निबाहा आगे बढ़े रहा।
खासा परगति के सीढ़ी मा चढ़े रहा।।
पुरिखन हर सीख गांठ मा बांधि के राख्या।
आय जई मंजिल खुद रसता गढ़े रहा।।
थकि के बइठि न जया तूं कहौं छहांरे मा।
धीरेन-धीरे चला गमय-गम कढ़े रहा।।
निंगही से सीखा कुछ अकिल लगाबा थोरौ।
मकड़ी कस जाला रातौ-दिन गढ़े रहा।।
देखा सोच न मान्या कउनिउ बातन के।
दोस न एक दुसरे के मूड़े मढ़े रहा।।
हांथ मा हांथ धये बइठे से कुछू न होई।
कमर कसे करतब्ब मा अपने ठढ़े रहा।।
देई दइउ सहारा केबल करतब्बी का।
पाठ करम योगी बाला सब पढ़ें रहा।।
फल के इच्छा कबौ न कीन्ह्या जान लिहा।
पढ़य के साथय-साथ अउरु कुछ लढ़े रहा।।
आजु-काल बिन लढ़े पढ़ाई फीकी है सब।
माधव के या सीख के मंतर पढ़े रहा।।
अशोक त्रिपाठी "माधव"
शहडोल मध्यप्रदेश
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अतिसुंदर आचार्य माधव जी,,,बहुतै नीख
जवाब देंहटाएंबहुतय निकही रचना लिखेन आदरनीय जी।अपना केर लेखनी का नमन।
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