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उमड़ घुमड़ जब आए बादल(बाल कविता) -रजनीश
उमड़-घुमड़
जब आए बादल
मन
को रस
दे जाए बादल
बादल
की गर्जन को देखो
मन
को भी कड़काये बादल।
नभमंडल
में छाए बादल
घुप्प अंधेरी
लाए बादल
अमृत-सा जल मोती
से
धरती
को मन भर
नहलाए बादल।
चमक-दमक
की छवि को देखो
श्वेत रेख की
मणि को देखो
यहाँ-वहाँ बस छाये
बादल
मन
को मनभर लुभाये बादल।
बरस-बरस
ललचाए बादल
हम
सबको हर्षाये बादल
धरती
की आभा को देखो
नित-प्रतिदिन
चमकाए बादल।
कदंब
फूल गए डाली-डाली
मदमस्ती
बस फूलों वाली
अपनी
बीन बजाए बादल
मन
को मन भर तरसाए बादल।
दादुर,
मोर,
पपीहा को
अपनी
तान से बुलाए बादल
देख-देख
सब नाच रंग को
मन
से भी शर्माए बादल।
अकड़ू-बकड़ू
जिया को पकड़ू
देख-देख
हहराता बादल
पानी की जलबूँदों से
सबका मन सहलाता बादल।
तपन
खींचता ठंडक देता
धरती
पर यह प्यारा बादल
मनभर
मन में दीप जलाता
और
मन को सुलगाता बादल।
हे
बादल!
तुम जलवाहक हो
बरसो
कि हम भर जाएँ
जल
से तू
आपूरित करना
कि
सारी सृष्टि तर जाये।
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