शुक्रवार, जुलाई 31, 2020

कर उनकी जय-जयकार कलम तू: राम सहोदर पटेल

कर उनकी जय-जयकार कलम तू

कर उनकी जय-जयकार कलम तू,
सरहद पर जान गंवाते जो।
जो मातृभूमि के सच्चे सपूत हैं,
निज भाल से थाल सजाते जो॥
अचल अथक कर्तव्य मार्ग पर,
हमरे सुख की खातिर जो।
अदम्य शूरमा भटमानी हैं,
रहते निडर मुखातिर जो॥
बीबी बच्चों का मोह त्यागकर,
मातृ धरणी से मोहे जो।
भारत माता का कर्ज चुकाने,
अनिमेष दृष्टि खल जोहे  जो॥ 
हे! कलम दुहाई उनको दे तू,
अग्रिम कतार में रहते जो।
आन मान सम्मान बचाने,
है क्षुधा पिपासा सहते जो॥
बलिदान हुए सीमा रक्षण में,
खलदल हैं मार गिराये जो।
माता के अखण्ड सुरक्षा हित
दुश्मन की नींद उड़ाये जो॥
कर उनकी जय-जयकार कलम तू,
परस्वार्थ में स्वाहुति देते जो।
निजप्राण हथेली पर रखकर,
कोरोना मरीज को सेते जो॥
विकट कोरोना काल कलह पर,
निर्भय सेवा देते जो।
कहे सहोदर वे कर्मवीर बन,
जन्मभूमि हित जीते जो॥
कर उनकी जय-जयकार कलम तू,
देशभक्ति हित जीते जो॥

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व्यक्तित्व निर्माण में साहित्य की भूमिका:सुरेन्द्र कुमार पटेल



व्यक्तित्व निर्माण में साहित्य की भूमिका

वह एडीजे के पद पर पदस्थ था। न्याय करना उसका पेशा था। जाहिर है उसने संविधान पढ़ा होगा। अपराध की धाराएं पढ़ी होंगी। उसने संविधान में वर्णित मौलिक कर्तव्यों को भी पढ़ा होगा जिसमें वर्णित है कि भारत का प्रत्येक नागरिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवतावाद व ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे।
उसकी और उसके बेटे की संदिग्ध विषाक्तता के कारण मौत हो जाती है। पुलिस संदेह के आधार पर कुछ लोगों को गिरफ्तार करती है। जांच से पता चलता है कि एडीजे को एक महिला ने तंत्र-मंत्र का सहारा लेने का सलाह दिया था ताकि पारिवारिक कलह दूर हो और स्वास्थ्य अच्छा हो। जिसके बाद महिला और एडीजे के बीच आटे का आदान-प्रदान हुआ था। एडीजे ने स्वयं अपने बयान में बताया कि उस रात उसने उसी मिश्रित आटे की बनी चपाती खाई थी, उसके दोनों बेटों ने भी चपाती खाई थी जबकि पत्नी ने चावल खाया था। छोटे बेटे को जल्दी ही उल्टी हो गई जिससे उसकी तबियत गंभीर रूप से उतनी खराब नहीं हो पाई जबकि एडीजे और उसके बड़े बेटे की तबियत बिगड़ी और अंन्ततः उन दोनों की मौत हो गई। आटा देने वाली महिला का पुराना परिचय था। शक है कि एडीजे द्वारा पैसों की मदद भी की जाती थी। हो सकता है पैसे वापस लेने का दबाव भी रहा हो। जाॅंच का विषय है कि वास्तविकता क्या है।
उक्त घटना मानवीय जीवन के पर्दे के पीछे छिपी धुंधली तस्वीर को साफ करती है। पढ़ा-लिखा, सभ्य, ओहदेदार, चमकते कोट और कमीज में लटकती टाई, चमचमाते जूते, जेब से झांकता कलात्मक कलम, करीने से छांटी गई मूॅंछें, क्लीन सेव या बारीकी से सजाई गई दाढ़ी, नक्काशी की गई हेयर कटिंग और उस पर मुख से ओस की मानिंद या फिर कश्मीरी बर्फ की तरह झड़ते शब्द व्यक्ति का एक ऐसा आभासी चित्र प्रस्तुत करते हैं जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं होता। बल्कि सच यह होता है कि इन आवरणों के मध्य में एक ऐसा आदमी फंसा-पड़ा होता है जिसका निर्माण समाज की नितान्त गिरी हुई रूढ़ियों से हुआ होता है। उसका किताबें पढ़ना रोजगार प्राप्त करने से अधिक कुछ नहीं होता। वह एडीजे कौन है? कोई भी नाम दे लो, कोई फर्क नहीं पड़ता। अकेला एक एडीजे ही क्यों? आप किसी ओहदे को उठाकर देख लीजिए। मैं, आप या हमारे आसपास न जाने कितने ही ऐसे ओहदेदार हैं जिनकी सेवा लगी ही किसी टोने-टोटके के कारण है। कितनों को बाबाओं और ओझाओं का आशीर्वाद मिला हुआ है। अन्यथा वे इस सेवा में होते ही नहीं। और यदि इस सेवा में नहीं होते तो शायद मर जाते। इसीलिये उन्होंने सेवा को इतनी प्राथमिकता दी और उसके ऊपर तंत्र-मंत्र, बाबाओं और ओझााओं के आशीर्वाद को भी। ऐसे लोगों से आप न्याय और पारदर्शिता की उम्मीद करते हैं? ऐसे लोगों से आशा करते हैं कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण की बात करेंगे? असंभव है।

मेरे मित्र का एक मित्र है। वह पटवारी है। उसने सालाना लगने वाले मेले में एक बाबा से अंगूठी ली और साथ में आशीर्वाद भी। अगला मेला लगने के पूर्व उसकी नियुक्ति पटवारी पद पर हो गई। हालांकि वह पढ़ने में पहले से ही होशियार था और उसी क्षेत्र के उसी के जैसे और लड़कों की भी पटवारी में नियुक्ति हुई थी। अब वह उस बाबा का गुलाम है। श्रद्धा से उसके पांव में माथा टेकता है और पटवारी में हुई नियुक्ति का पूरा श्रेय उस बाबा को देता है। वैसी श्रद्धा न तो उसकी अपने माता-पिता के प्रति है और न उसके उन गुरुजनों के प्रति जिन्होंने उसे सतत ज्ञान, समझ और मार्गदर्शन दिया।

अखबारों के माध्यम से आए दिन बाबाओं के भ्रम जाल में अपना सबकुछ लुटते हुये देखा जा सकता है। यह इस बात के लिये चिन्तित करती है कि वास्तव में पढ़ना-लिखना क्या है? क्या यह सूचना का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में स्थानांतरण मात्र है? क्या हम अपने चारों तरफ घटती घटनाओं से कोई निष्कर्ष निकालने में अक्षम हैं?

उक्त घटना से कुछ बातें निकलकर सामने आती हैं। व्यक्ति का पढ़ना-लिखना अलग बात है और जीवन की वास्तविकताओं के प्रति समझ रखना अलग बात है। किसी परिवार का पढ़ा-लिखा होना इस बात का प्रमाण नहीं है कि उसके परिवार में सब कुछ ठीक ही होगा। बल्कि उसके परिवार में सब कुछ ठीक होने के लिये उसके परिवार के सभी सदस्यों में प्रेम, सहयोग, समन्वय और एक-दूसरे के प्रति सही समझ होना आवश्यक है। पढ़ने-लिखने के बावजूद व्यक्ति अपने जीवन की समस्याओं को मानवीय व्यवहार में छिपी कठिनाइयों को समझने के स्थान पर बाबाओं, ओझाओं के शरण में जाना ज्यादा पसन्द करता है। यह प्रत्येक परिवार के लिये घातक है। यह इस बात का सूचक है कि हमारे भीतर वैज्ञानिक चिन्तन की बहुत अधिक कमी है। हमारे व्यक्तित्व का निर्माण जिन आधार स्तम्भों के माध्यम से हुआ है उनमें अंधविश्वास भी एक मजबूत आधार स्तम्भ है।
एक और बात है कि व्यक्ति अपने निजी रिश्तों में स्वयं सुधार लाने के बजाय बाहरी रिश्तों में टिक जाता है। फिर उस रिश्ते का खेल न जाने कहाॅं ठहरता है। पारिवारिक तनाव की एक मुख्य वजह यह भी होती है। व्यक्ति अपने परिवार से तृप्त नहीं है। व्यक्ति अपने काम और पेशों से मिली शान से भी तृप्त नहीं है। किन्तु बाहरी रिश्तों में वह तृप्त है। ऐसा इस कारण भी है कि लोगों के मस्तिष्क में उन्मुक्तता और वैयक्तिक स्वतंत्रता के संबंध में, सुख के संबंध में अधकचरी अवधारणा है।
संचार क्रान्ति के युग के आरम्भ में यह विश्वास किया गया होगा कि इससे समाज में फैली भ्रान्तियों, रूढ़ियों को दूर करने में मदद मिलेगी। यह भी आशा की गई होगी कि संचार क्रान्ति के फलस्वरूप साहित्य का प्रचार-प्रसार अधिक होगा और साहित्य अंधविश्वासों और रूढ़ियों को रोकने में मदद करेगा। अफसोस है कि साहित्य, फिल्म और धारावाहिक जगत ने समाज को वापस वही परोसा जो समाज में पूर्व से दीमक की तरह फैला था। लेखक हों या फिल्मकार ऐसी चीजों का सृजन करते हैं जिन्हें जनमानस सराहे। पाठक या दर्शक पैदा करे। वे भी समाज की उसी मुख्यधारा में बहना पसन्द करते हैं जिसमें वे लाश की तरह बहने का आनंद उठा सकें।
यदि एडीजे जैसे पदों पर आसीन व्यक्ति की मौत का कारण उसका टोने-टोटके में अंधश्रद्धा है तो यह सम्पूर्ण समाज के लिये चिन्ता का विषय होना चाहिए और साहित्य के लिये भी कि उसने अब तक अपनी कैसी भूमिका निभाई है और आगे उसे अपनी भूमिका का कैसे निर्वहन करना है। साहित्य का काम मात्र हृदय में स्पन्दन पैदा कर मनोरंजन करना नहीं है बल्कि समाज का सही दिग्दर्शन करना भी है।
आलेख:सुरेन्द्र कुमार पटेल
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सोमवार, जुलाई 27, 2020

गीत मल्हार: मनोज कुमार चंद्रवंशी

"गीत मल्हार"

पिया गए  परदेश  सुनसान  हृदय  आँगन।
स्निग्ध स्मित नीरस विरह वेदना है साजन॥
              कैसे गाऊँ मैं गीत मल्हार।

निष्ठुर  काली   कोयलिया  कुहुक  रही  है।
हृदय में अंतर्द्वंद स्वास  कंठ सूख  रही  है॥
             कैसे गाऊँ मैं  गीत मल्हार।

दर्द  भरा  है  बदन  में सदन में  हूँ  अकेली।
हिंडोला झूलते दृष्टिगोचर न कोई अलबेली॥
              कैसे गाऊँ  मैं गीत मल्हार।

आशा  की  असंख्य  रश्मियाँ  बुझ  चुकी  है।
अब  स्वास  डोर  अधर   में   रुक  चुकी   है॥
            कैसे गाऊँ मैं  गीत मल्हार।
क्रोध अग्नि ज्वलित हिय  में  मन  है बेहाल।
नित  दिन खटक  रहा कोरोना का  जंजाल॥
            कैसे गाऊँ मैं  गीत मल्हार।

बंद पड़े  हैं  मंदिर,  मस्जिद,  चर्च,  गुरुद्वारे।
चारु  चंचल  चित्त  स्थिर   मन  के  हूँ  मारे॥
          कैसे गाऊँ मैं  गीत मल्हार।
सावन  कजरिया  की  सुन मधुर  सुर ताल।
मन विक्षिप्त  तन अग्नि  ज्वलंत विकराल॥
         कैसे गाऊँ मैं  गीत मल्हार।

असहनीय कसक  सकल बदन अकुलाए।
स्वर्णिम  स्वप्न  अधूरी  कुछ  न  मन भाये॥
          कैसे गाऊँ मैं  गीत मल्हार।
सजल नयन टकटकी  पिय पथ की ओर।
सुहागन उजड़ा मिटा  काजल  दृग  कोर॥
        कैसे गाऊँ  मैं  गीत मल्हार।

पग रंग  बिरंगी  महावर  फीकी  पड़ गई।
अब हाथों की सुवासित  मेहंदी मिट गई॥
         कैसे गाऊँ मैं  गीत मल्हार।

                  रचना✍
        स्वरचित एवं मौलिक
       मनोज कुमार चंद्रवंशी
     जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश
    रचना दिनाँक-25/07/2020
नोट- मैं घोषणा करता हूँ कि मेरा यह रचना अप्रकाशित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित है।

बुधवार, जुलाई 22, 2020

हे! मेघ बरसो (वर्ण पिरामिड): मनोज कुमार चंद्रवंशी

हे! मेघ बरसो: (वर्ण पिरामिड)

            (१)

             हे!
             मेघ
             बरसो
             घनघोर
             धरती पर
              उमड़ घुमड़
              चारों दिशाओं की ओर।

              (२)

               तू
               धरा
               तपन
               विनाशक
               सुखदायक
               जग चराचर
               सुख शांति प्रदाता।

               (३)

               तू
               सदा
               बादल
               आया कर
               काली घटाओं
               को साथ लेकर
               रिमझिम बूंदों में।

               (४)

               हे!
               मेघ
               तुम्हारे
               सुरम्य घटा
               मनभावन
               अति सुहावन
               प्रमुदित हो गया।

                रचना✍
               स्वरचित एवं मौलिक
               मनोज कुमार चंद्रवंशी
               जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश
               रचना दिनांक-२१|०७|२०२०

मंगलवार, जुलाई 21, 2020

बचपन (कविता) : बी एस कुशराम

‼️"बचपन"‼️
काश बहुरि के दुबारा,आ जाता मेरा बचपन।
झमेला न झेलता, सदा रहता खेलता, यही तो है बचपन।।
   बार-बार आता है याद, दस-ग्यारह का मियाद,
   परिवार की परवरिश में, अब उम्र पार पचपन।
   काश बहुरि के----------------
मातु-पिता से जिद करना,बात-बात में मचलना,
बिन रोष मांग पूरी करते, हों चाहे निर्धन।
काश बहुरि के-----------------
   भाई- बहनों से रूठ जाना, तुरंत फिर मान जाना,
   बचपन में दोस्तों से, कई बार हो जाता अनबन।
   काश बहुरि के-----------------
अमराई में पहुंच जाते, पके आम तोड़ लाते,
माली से छुपते छुपाते, खाते मिल सखा जन।
काश बहुरि के-------------------
   लुका- छुपी का खेलते खेल,गुल्ली डंडा का मेल,
   आपस में होता हेलमेल, ऐसा होता है बालपन।
   काश बहुरि के--------------------
"कुशराम" की है नसीहत, करो ना कभी शरारत,
लिखाओ सु- इबारत,कोरा कागज है बाल मन।
काश बहुरि के दुबारा,आ जाता मेरा बचपन,
झमेला न झेलता ,सदा रहता खेलता, यही तो है बचपन।।
रचनाकार-बी एस कुशराम बड़ी तुम्मी
जिला-अनूपपुर (मध्य प्रदेश)
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इंसान (कविता) :राम सहोदर पटेल

                         
इंसान
सोचो तो इंसान गिरगिट का नमूना है।
किसी से प्रेम करे, बैर किसी से दूना है
स्वारथ के पीछे भागे, कोर-कसर न कुछ भी राखे।
रिश्ता-नाता पीछे राखे, परमारथ दिल सूना है
सम्मुख में शुभचिंतक बनकर, बसी करे प्रिय वाणी से।
पीठ के पीछे कसर न छोड़े, भितरघात करे दूना है
लल्लो-चप्पो बात करे वह, स्वारथ सिद्धि होने तक।
झूठी शान बघारत निशदिन, चले लगावत चूना है
शेखी करे सबा शेर बने, सिख देत शिखा के शिरोमणि बन।
शक्त सूरमा यदि पड़ जाए, फिर नौ दो ग्यारह हूना है
स्वर्थार्थ हित करे प्रशंसा, धोखा-धडी में नंबर वन।
बनावटी शान सजाबत है, बना हाथी का दांत नमूना है
बक-बक बक बकबास करे, बचकानी बनाय रखे सबको।
माता-पिता को भी मात करे, चहे स्वारथ डोर पिरूना है
स्वर्थार्थ वह घुटने टेके, पाँव चूमकर मतलब सेके
मतलब सरका वह भी सरका, सरक चला चढ़ लूना है।
अपना मतलब तुमसे साधे, तुम्हारे काम में डाले बाधा।
ज्यों पृथ्वीराज की बढ़ती न सह जयचंद लगाया हूना है
इस कामचोर कुटिल कपटी को सहा न जाय पराय विभूती।
ज्यों सकुनी मामा पांडव को लाक्षागृह में भूना है
झूठी शान बघारत बढ़-बढ़ बन बफादार का ढोंग करे।
मन में पाप है मुंह में  जाप है, अंतर्मन सब सूना है
मुंह  में राम  बगल में छूरी, रखे पात्रता इसमें पूरी।
शिष्ट सिखावै औरन का, अशिष्ट स्वयं दिन दूना है
राम सहोदर सिखबन मानो, लोक लाज को भी पहचानो।
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सोमवार, जुलाई 20, 2020

शिक्षा सफलता के दरवाज़े खोलती है-अविनाश सिंह

शिक्षा सफलता के दरवाज़े खोलती  है-अविनाश सिंह
जिस प्रकार हमें जीने के लिए वायु की आवश्यकता होती है, ठीक उसी प्रकार जीवन में सफल व्यक्ति बनने के लिए शिक्षा का बेहद महत्व है, शिक्षा के बिना जीवन में सफलता की किसी भी सीढ़ी को नही चढ़ा जा सकता है। यह किसी बच्चे के सर्वांगीण विकास से लगाये देश के विकास और सशक्तिकरण का स्तम्भ होता है।

शिक्षा का मतलब सिर्फ किताबी ज्ञान से न होकर वास्तविक ज्ञान से होना चाहिए, शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य के नैतिक मूल्यों का विकास होना चाहिए। भारत के संविधान रचयिता बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर जी का तीन ही सूत्र था- शिक्षा, संगठन और संघर्ष। वे आह्वान करते थे, शिक्षित करो, संगठित करो और संघर्ष करो। पढ़ो और पढ़ाओ। शिक्षा में कभी भी भेद भाव नही होता है यह सबके लिए समान होती है।

हमारे समाज में बेटियों को शिक्षा से वंचित किया जाता, उसे घर के कामों में उलझाया जाता है पिता को उसके जन्म से उसकी शादी की चिंता होती है किन्तु वही पिता उसकी शिक्षा के बारे में नही सोचता। ऐसा करना किसी पाप से कम नही है, शिक्षा शेरनी के दूध की तरह होती है जो जितना पिएगा उतना ही दहाड़ेगा। इसलिए आधी रोटी कम खाओ लेकिन अपने बच्चों को जरूर पढ़ाओ।

शिक्षा जीवन की वह कुंजी है जो सारे सफलता के दरवाजे खोल देती है,शिक्षित व्यक्ति हर जगह पूजे जाते हैं, हर जगह उन्हें सम्मान मिलता है, शिक्षा के बिना जीवन का कोई भी उद्देश्य नही है। कोई व्यक्ति गरीब या अमीर नही होता है यह शिक्षा ही है जो किसी को गरीब या अमीर बनाती है। ‘सा विद्या या विमुक्तये’ अर्थात शिक्षा वही है जो हमे मुक्ति दिलाती है। जो हमें उचित अनुचित का ज्ञान प्रदान करती है।

शिक्षा वह साधन है जिसके माध्यम से हर समस्या का हल निकाला जा सकता है हर युद्ध लड़ा जा सकता है हर कार्य को सरल और सहज बनाया जा सकता है।जो देश जितना प्रगति कर रहा है उस देश की शिक्षा का स्तर भी उतना ही ऊपर है चाहे वो अमेरिका ही क्यों न हो।

जीवन में शिक्षा का कोई अंत नही है,आप जब तक जीवित है तक तक शिक्षा ले सकते है चाहे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में। मैं अविनाश सिंह पूरे समाज वर्ग से यह प्रार्थना करता हूं की भले आप एक रोटी कम खाइए किन्तु अपने आने वाले भविष्य को शिक्षित जरूर करियेगा ताकि हमारा देश एक समृद्धशाली देश बन सके।

आलेख:
अविनाश सिंह
8010017450
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रविवार, जुलाई 19, 2020

गाँव की ओर (कविता): मनोज कुमार चंद्रवंशी

                  गाँव की ओर

हम ग्रामीण संस्कृति के उन्नयन में अग्रणी रहें,
गाँव में समरसता, सद्भाव का रसधार  बहायें।
हर    विकट  परिस्थितियों   में   अडिग   रहें,
सदाचार, सद्  मार्ग  को   हृदय  में  अपनाएँ,
हम  गाँव  को  ले  जायें   शिखर  की  ओर॥
        हमारा एक कदम गाँव की ओर।
             

निज   हृदय  पटल   में   शुचि   संस्कार  हो,
हमारे  हृदय  में  विश्व  बंधुत्व  की  भाव  हो।
हम   ग्रामीण  विरासत  के  परिपोषक   हों,
हम ग्राम अशांति,अव्यवस्था के नाशक  हों,
परपीड़ा दृष्टिपात कर हो जाएँ भाव विभोर॥
      हमारा एक कदम गाँव की ओर।

हम  गाँव  में  जन  जागृति के अलख जगायें,
दीन, दुखियों के सुख - दुख  में   काम  आयें।  
ग्राम स्वराज्य उन्नयन में समर्पण का भाव हों,
ग्राम पल्लवित, पुष्पित में हमारा सहयोग हों,
गाँव में  संकट का  साया  मंडराता चहुँ ओर॥
      हमारा एक कदम गाँव की ओर।
        

जब हम ग्रामीण गरीबी उन्मूलन के प्रेरक हों,
स्वर्णिम   गाँव  के  निर्माण   के  उत्प्रेरक  हों।
शिक्षा की ज्योति जलाने का प्रयास करते हों,
ग्राम्य चहुँमुखी विकास में हमारी भूमिका हों,
गाँव में  मिटाने  को तैयार  रहें  अशांति,शोर॥
          हमारा एक कदम गाँव की ओर।

गाँव को स्वर्णिम बनाने का भाव तिरोहित  हों,
ग्राम्य  विकास  में  पूर्ण  रूप  से  समर्पित  हों।
जब  गाँव  में  खुशियों   का  अंबार  लाते  हों,
ग्राम्य  नव सृजन में  तन, मन, धन अर्पित  हों,
जब गाँव में विकास की गंध बिखेरें चहुँ ओर॥
           हमारा एक कदम गाँव की ओर।
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                        रचना ✍
              स्वरचित एवं मौलिक
         मनोज कुमार चंद्रवंशी (शिक्षक)
    पुष्पराजगढ़ जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश
    रचना दिनाँक-18/07/2020

शुक्रवार, जुलाई 17, 2020

परीक्षा में कम अंक आने पर भी नही होना निराश या परेशान :-अविनाश सिंह


परीक्षा में कम अंक आने पर भी नही होना निराश या परेशान :-अविनाश सिंह।

जी हां,जैसा कि आपको विदित है कि बोर्ड के रिजल्ट आने  शुरू हो गए हैं और हर बोर्ड में एक से एक धुरंधर निकल रहे हैं। कोई 100 प्रतिशत तो कोई 99 प्रतिशत अंक प्राप्त कर रहा है और इसमें कुछ ऐसे भी हैं जो कि विभिन्न परिस्थितियों के कारण अनुत्तीर्ण हो रहे या कम अंक प्राप्त कर कर रहे हैं। किन्तु इसका यह मतलब नही कि जिंदगी यही खत्म हो गयी है या इसके आगे कुछ नही है।
यह तीन घंटे का पेपर आपकी जिंदगी नहीं बदल देगा, किन्तु आप यदि प्रयास करेंगे तो अनेक सफलताएं हासिल कर सकते हैं।
अक्सर अखबारों में यह पढ़ने को आ रहा कि कम अंक आने की वजह से वह डिप्रेशन या आत्मदाह कर लिया,यह एकदम अनुचित कदम है जीवन में सफल सिर्फ 90 प्रतिशत अंक लाकर नही हुआ जा सकता है इसके अन्य माध्यम भी हैं सफल होने के, जो अध्यापक आपकी कॉपी की जाँच कर रहा होगा वह भी जीवन में आपसे कम अंक प्राप्त किया होगा किन्तु आज वह इस लायक है कि आपको अंक दे रहा है।

जीवन में सफल होने का मतलब है आप एक अच्छे नागरिक बनिये, एक अच्छा बेटा बनिये, एक अच्छा शिष्य बनिये, एक अच्छा पिता बनिये, यही असली सफलता है।
परीक्षा के अंक आपको कहीं पर काम आएंगे वह भी आज के कंपीटिशन के दौर में एक काजग के टुकङे समान हैं।
अनेक ऐसे महान पुरुष हुए जो असफलता को सफलता की कुंजी माने। जिसके प्रत्यक्ष उदहारण थे राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी जो स्वयं आर्मी के चयन बोर्ड से कई बार बाहर हुए थे, किन्तु वह हिम्मत नही हारे थे और आज उन्हें मिसाइल मैन के नाम से जाना जाता है।
मैं अविनाश सिंह स्वयं एक कवि होने के नाते अपनी बात बताऊँ तो मैं शुरू से 90 प्रतिशत के ऊपर अंक प्राप्त किया अनेको बोर्ड में। किन्तु आज सारी डिग्री एक कोरे कागज के समान हैं जिसका कुछ ही महत्व है। आप स्वयं में एक यूनिक इंसान है आपके अंदर अनेक छमताएं हैं जिन्हें आपको स्वयं पहचानना है और उसपर कार्य करना है और एक दिन सफलता आपके कदमों को चूमेगी।
यदि इन सब बातों पर भी आपको विश्वास नही है तो आप अपने अभिभावकों से उनके बोर्ड के अंक पूछियेगा वो आपको स्वयं बताएंगे कि वो कितने अंक अपने समय में प्राप्त किये थे। आप यह सोचिये जो आपने पाया है वह आपकी मेहनत का फल है और मेहनत का कोई अंत नही तो इस बार कम किये मेहनत तो कम फल, अगली बार और दुगने रफ्तार से मेहनत करके और अच्छा फल प्राप्त करना है।
कभी गलत कदम उठाने से पहले अपने परिवार के सदस्यों के बारे में सोचिएगा,मैं अभिभावकों से भी अनुरोध करता हूं कि यदि आपके बच्चे के कम अंक आये हैं तो उसे प्रोत्साहित करिये कि आगे और अच्छा करें न कि उस पर दबाव बनायें या उसे प्रताड़ित करें। मैं कुछ पंक्तिया देता हूं जिसे अपने जीवन में उतारिएगा:-
सफलता दूर है पर नामुमकिन नहीं,
 कदम छोटे हों पर रुकें नहीं।
जरूरी नहीं हर किसी को मुकाम मिल जाये,
सफलता के परचम भी हर कोई फहरा जाए। मिलेगी सफलता कुछ प्रयासों के बाद,
होगी खुशी दोगुनी इसी मंजिल के साथ।
प्रयास करो, प्रयत्न करो भूल करो, अभ्यास करो,
मिलेगी सफलता  बस थोड़ा तुम विश्वास रखो।
न हारो हिम्मत बस कदम को तुम आगे बढ़ाओ,
लड़खड़ाओ अगर तो अडिग होके खड़े हो जाओ।

आलेख:-अविनाश सिंह
चलभाष: 8010017450
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मंगलवार, जुलाई 14, 2020

हृत-वंदन : रजनीश


हृत-वंदन  
-रजनीश हिंदी(प्रतिष्ठा)   
           
हूँ मैं श्रवण
हूँ मैं लक्ष्मण
चिरकाल से हूँ मैं सदाचारी
स्मरण मुझको
सेवा, सद्भाव
आदिकाल से हूँ हृत-विचारी
धरा नूतन,राग नूतन
सच हूँ मैं अनुराग विस्तारी
स्मृति सदा मुझको
पूर्वजों की अप्रतिम अवतारी
सच, पूर्वकाल से हूँ व्यावहारी
रतन हूँ, चमन हूँ
मातृभूमि का अनुगमन हूँ
शीष अपनी भेंट करता
भारत भूमि का हवन हूँ
है समर्पित जीवन-त्याग मेरे
स्वीकार कर ऐ माँ मेरी धरती
मैं तेरी कभी भाई, कभी छोटी बहन हूँ
हूँ मैं शुभचिन्तक
हूँ मैं विस्तारक
और दीर्घकाल से हूँ आचारी
सृष्टि मेरी पूजा, सेवा मेरा कर्म
मैं सर्वजन का हूँ कल्याणकारी

नर हूँ, नारी हूँ

जल हूँ ,जीव संचारी हूँ                         
प्यारी माँ धरती को 
सब मेरे मातृ-बन्धुत्व                             
सादर समर्पित 
सृष्टि मिलनसारी हूँ
वीर हूँ,धीर हूँ
इस अंतरिक्ष का मैं शूर-प्रवीण हूँ
विस्तृत जग-शिला का
निर्भीक हूँ, विचित्र हूँ
कलश-रूप चित्र का
मनोरम हृत-कृत्य हूँ
फूल हूँ, फल हूँ
उपवन सुरम्य का 
मैं स्नेही भृंग हूँ
धर्म हूँ, दर्शन हूँ
धरा का सत्य हिन्दुत्व हूँ
मैं विश्व-शिला का प्रभावक प्रभुत्व हूँ
आज इस विश्व के
एक-एक जन को
वीरभद्र, श्रवण-लक्ष्मण होनी चाहिए
शूरता,प्रेम-सद्भाव का प्रसार कर गीत गानी चाहिए
सब बने फूल
सब बने गीत
कृत्य कुछ ऐसे विशेष हो
कि सृष्टि हो प्रमीत
हाँ,आज हम शपस्थ हों
सुकर्म में व्यस्त हों
कोई दोष न छूने पाए
ऐसा हमारा हस्त हो
यहाँ सब श्रवण हैं
भारत भूमि के भ्रमण हैं
माँ माटी को तर्पण है
माँ धरती को सर्वस्व समर्पण है
माँ भारती को जगवंदन है
सहृत अभिनंदन है
कलश–शिखा की सुंदर छाया से
भारत माँ के सब स्पन्दन हैं।
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तिरंगा: बी एस कुशराम



"तिरंगा"
भारत भू के लिए  वरदान है तिरंगा।
भारतीयों का ये स्वाभिमान है तिरंगा।।
   तिरंगा में है रंग तीन, घबरा गया है चीन-2
   अब ना लेगा वह,भारतीय भूमि से पंगा।
   भारत भू के लिए------------
केसरिया श्वेत हरित, संविधान में है पारित-2
भारतीय संविधान कहता, सभी रहे चंगा।
भारत भू के लिए----------
   प्रतीक है ऑन का,  जांबाजों के बलिदान का-2
   जज्बा जगाएं जवानों का, ना होंगे तब दंगा।
   भारत भू के लिए---------
श्वेत है सादगी रंग,स्वच्छता भी है संग-2
स्वच्छ रखो तटिनी,है जो पावन गंगा।
भारत भू के लिए------------
   सोंधी माटी यहां की, प्रेरक है जहां की-2
   कोई ना रहेगा अब, भूखा और नंगा।
   भारत भू के लिए-----------
"कुशराम"करो सम्मान,यह तिरंगा है महान-2
लहराएगा तिरंगा, जिस में समाया त्रय रंगा।
भारत भू के लिए, वरदान है तिरंगा।
भारतीयों का ये, स्वाभिमान है तिरंगा।।
   रचनाकार- बी एस कुशराम बड़ी तुम्मी
   जिला-अनूपपुर (मध्य प्रदेश)
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वसुधा:बी एस कुशराम


🌲वसुधा🌲
वसुधा को हमें सजाना है,पर्यावरण बचाना है।
इस का मान बढ़ाना है,पर्यावरण बचाना है।।
   धरा धरातल धरनी धरती,
   हम सबके ये उदर को भरती।
   हमसे ना कुछ मांगे धरती,
   बिन मांगे पालन है करती।।
धानी चुनर ओढा़ना है,पर्यावरण बचाना है।
वसुधा को हमेंसजाना है,पर्यावरण बचाना है।।
   आओ सब मिल पेड़ लगाए ,
   वसुधा में हरियाली लाएं।
   वायु प्रदूषण करें नियंत्रण,
   स्वच्छता का लेवें हम प्रण।।
ये प्रण हमें निभाना है, पर्यावरण बचाना है।
वसुधा को हमें सजाना है,पर्यावरण बचाना है।।
   माना प्रगति है अति आवश्यक,
   अति लोलुपता बना विनाशक।
   सीमा रहित कर रहे हैं दोहन,
   प्रदूषण को नहिं करते नियंत्रण।
उद्योगों को अब चेताना है,पर्यावरण बचाना है।
"कुशराम"ने यह ठाना है,पर्यावरण बचाना है।।
वसुधा को हमें सजाना है, पर्यावरण बचाना है।
इसका मान बढ़ाना है,पर्यावरण बचाना है।।
दिनांक 11/07/ 2020 दिन-शनिवार
Ⓒरचनाकार- बी एस कुशराम बड़ी तुम्मी
         जिला अनूपपुर (मध्य प्रदेश)
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सावन गीत: धर्मेन्द्र कुमार पटेल


🌧️🌧️सावन गीत🌧️🌧️
🌤️🌤️🌤️🌤️🌤️🌤️🌤️🌤️

बहुत ही व्यथित भाव से यह सावन गीत लिख रहा हूं,जिस सावन में घनाघोर वारिस होती थी, ठण्डी हवा प्रवाहित होती थी,आज परिस्थितियां उल्टी हो गयी हैं उमस और गर्मी से हालत गंभीर बनी हुई है...... एहसास करें🙏
  1.
सावन का महीना,धूप है चहुं ओर।
गर्मी ऐसे लागे, जैसे आग लगे  चारों ओर।।

गर्मी ऐसे लागे..........

सावन का महीना...........2

       2.

कहां गये बदरिया , कहां पवन का झकझोर।
मेघ गर्जन बिजली चमकन, का थम गया है शोर।।

मेघ गर्जन बिजली चमकन........

सावन का महीना............2

       3.

धान का पौधा तैयार हो गया ,रोपा का है इंतजार।
बिन पानी सब सून पड़ी है, खेत बाड़ी खनिहार।।

बिन पानी सब सून........

सावन का महीना...............2

                 4.

किसान भाई हैरान हो रहे,और हो रहे परेशान।
जल्दी आओ बरसने वाले , बनकर तुम मेहमान।।

जल्दी आओ बरसने..........

सावन का महीना.............2

आपका भाई - धर्मेंद्र कुमार पटेल✍️✍️
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हाइकु:-श्रावण मास: अविनाश सिंह


हाइकु:-श्रावण मास
******************

श्रावण मास
रिमझिम बारिश
मनमोहक।

कोयल कूक
रंग बिरंगे खेत
आया सावन।

गरजे मेघ
कड़कती बिजली
चले पवन।

कजरी गाये
रोपे धान के खेत
मन को भाये।

चले बहार
रिमझिम फुहार
मिले ठंडक।

सजनी ओढ़े
हरी भरी चुनरी
खोजे साजन।

सूखी धरती
हुई जल से धन्य
आये सुगंध।

सावन माह
भोलेनाथ की पूजा
चढ़ाओ जल।

श्रावण बेला
रिमझिम फुहार
मेघ मल्हार।

साजन देख
सजनी इठलाई
खूब रिझाई।

भोले की भक्ति
राखी का है त्योहार
आया सावन।

पपीहा बोले
कहाँ हो रे साजन
आओ आँगन।

पुतरी पीटे
सखिया झूले झूला
गगन नीला।

हुआ सपना
कागज़ वाली नाव
फिर बनाओ।

दिखे नभ में
काले घने बादल
फिर उजाला।

हे भोलेनाथ
तुमसे है ये भक्ति
दो हमें शक्ति।

Ⓒअविनाश सिंह
गोरखपुर
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"भारत का युवा शक्ति" : मनोज कुमार चंद्रवंशी

"भारत का युवा शक्ति"

                              (१)
हे! भारत का युवा शक्ति, भारत में नव विहान करो।
कर्मवीर,  रणधीर,   राष्ट्र   का   नव  निर्माण  करो॥
            हृदय में  नव  स्वर  सृजन  कर,
            युग प्रवर्तन का दामन थाम लो।
            तरुण  भारत  के  अभ्युदय  में,
            संकल्प शक्ति का गाँठ बांध लो॥
                            (२)
हे!  साहसी वीर पुत्र, राष्ट्र के लिए कुछ कुर्बान करो।
निज प्रबल इच्छाशक्ति से,राष्ट्र का नव निर्माण करो॥
             तरुण  तव   स्फूर्त   स्कंध   में,
             राष्ट्र  नव  सृजन  का   भार  है।
             तुम ही राष्ट्र के प्रकाश पुंज  हो,
             स्वालंबन  जीवन  का  सार  है॥
                             (३)
हे! अरुण, तरुण,  राष्ट्र नव उत्कर्ष का भाव बोध हो।
उन्नत राष्ट्र का नव निर्माण में, किंचित न अवरोध हो॥
             पावन  हिंद  के  पुण्य  भूमि  में,
             विकास   का  नव   प्रभात   हो।
             तुम्हारे  शौर्य  शक्ति, अदम्य  से,
             राष्ट्र नव  उत्थान  की आश  हो॥
                            (४)
नव राष्ट्र का सपना साकार,मुट्ठी में सारा जहान हो।
स्वर्णिम,सशक्त,खुशहाल, राष्ट्र का नव निर्माण  हो॥
             शोषित, पीड़ित का हितैषी बनो,
             न्याय,  सम्मान  दिलाना फर्ज है।
             असमानता की खाई को पाटना,
             तुम्हीं   पर   राष्ट्र   का   कर्ज  है॥
                           (५)
जागो भारत के युवा शक्ति,नवप्रवर्तन के कर्णधार हो।
स्वर्णिम, सशक्त, खुशहाल,  राष्ट्र  का नव निर्माण हो॥
              समरसता, सद्भाव का संचार हो,
              उत्पीड़न, हिंसा का प्रहार  करो।
              राष्ट्र  के  शुभचिंतक   नवयुवक,
              राष्ट्र नवप्रवर्तन का आगाज करो॥
                             (६)
तुम्हीं भारत का भाग्य विधाता, प्रवर्तन का हुंकार भरो।
हे!  भारत  का  युवा शक्ति, राष्ट्र का नव निर्माण  करो॥
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                         रचना✍
                स्वरचित एवं मौलिक
         मनोज कुमार चंद्रवंशी बेलगवाँ
     पुष्पराजगढ़ जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश
     रचना दिनाँक-१०|०७|२०२० (शुक्रवार)
नोट- मैं घोषणा करता हूँ कि रचना अप्रकाशित है।

शनिवार, जुलाई 11, 2020

बी एस कुशराम की दो कविताएँ


🌹प्रशंसा🌹
यह सत्य है प्रशंसा से, बढ़ता है हौसला,
विरोधी की प्रशंसा से, घटता है फासला।
   प्रशंसा करो ऐसी कि, दिखावा ना होवे-2
   सच्ची हो प्रशंसा तो, सुलझता है मसला।
  यह सत्य है---------
झूठी प्रशंसा तो,चापलूसी कहलाती-2
भेद खुल जाने से, बढ़ जाता है फासला।
यह सत्य है-----------
   चापलूसी भरी प्रशंसा, गुलामी की निशानी-2
   आज की प्रशंसा में, झलकती है यह कला।
   यह सत्य है-----------
सच्ची प्रशंसा से, निखरता है कौशल-2
झूठी प्रशंसा से, होता नहीं है भला।
यह सत्य है----------
   प्रशंसा करो वीरता,कर्मठता व साहस की-2
   प्रशंसा स्वीकारो नहीं,जो होवे दिलजला।
   यह सत्य है-------------
"कुशराम" कहें प्रशंसा करो, कवियों कलमकारों की-2
जिनमें विविध आयामों में, लिखने की है कला।
यह सत्य है प्रशंसा से, बढ़ता है हौसला।
विरोधी की प्रशंसा से, घटता है फासला।।
🌷अधूरापन🌷
गर समाज में न हो अपनापन, छाया हो अकेलापन।
अपूर्ण रहे सामाजिक जीवन, तभी लगता अधूरापन।।
   संगिनी साथ छोड़ दे, साजन अपना मुंह मोड़ ले,-2
   रह जाता है अकेलापन, यही तो है अधूरापन।
   गर समाज में-----------
खुशहाल परिवार हो,वैभव की भरमार हो-2
संतति की किलकारी न हो, तो लगता है अधूरापन।
गर् समाज में------------
   पत्नी करे सोलह श्रंगार,पिया संग लुटाए प्यार,
   गर गोदी रहे सूनापन, तो लगता है अधूरापन।
   गर समाज  में------------
धरा में हरियाली आए, सावन में घटा छाए,
तभी याद आए बचपन,तो लगता है अधूरापन।
गर समाज में-----------
   संगदिल संग न हो,विरहणी में उमंग न हो,
   जब भी देखे दर्पन, तभी लगता अधूरापन।
   गर समाज में---------
"कुशराम"का यह कहना है, अब अकेले ही रहना है,
उम्र पार हुआ छप्पन, लगता है अधूरापन,
गर समाज में न हो अपनापन,छाया होअकेलापन,
अपूर्ण रहे सामाजिक जीवन,तभी लगता अधूरापन।।
रचनाकार-बी एस कुशराम बड़ी तुम्मी
     जिला अनूपपुर (मध्य प्रदेश)


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