सोचो तो इंसान गिरगिट का
नमूना है।
किसी से प्रेम करे, बैर किसी से दूना है ॥
स्वारथ के पीछे भागे, कोर-कसर न कुछ भी राखे।
रिश्ता-नाता पीछे राखे, परमारथ दिल सूना है ॥
सम्मुख में शुभचिंतक बनकर, बसी करे प्रिय वाणी से।
पीठ के पीछे कसर न छोड़े, भितरघात
करे दूना है ॥
लल्लो-चप्पो बात करे वह, स्वारथ सिद्धि होने तक।
झूठी शान बघारत निशदिन, चले
लगावत चूना है ॥
शेखी करे सबा शेर बने, सिख
देत शिखा के शिरोमणि बन।
शक्त सूरमा यदि पड़ जाए, फिर
नौ दो ग्यारह हूना है ॥
स्वर्थार्थ हित करे प्रशंसा,
धोखा-धडी में नंबर वन।
बनावटी शान सजाबत है, बना
हाथी का दांत नमूना है ॥
बक-बक बक बकबास करे, बचकानी
बनाय रखे सबको।
माता-पिता को भी मात करे, चहे
स्वारथ डोर पिरूना है ।
स्वर्थार्थ वह घुटने टेके, पाँव चूमकर मतलब सेके ।
मतलब सरका वह भी सरका, सरक
चला चढ़ लूना है।
अपना मतलब तुमसे साधे,
तुम्हारे काम में डाले बाधा।
ज्यों पृथ्वीराज की बढ़ती न
सह जयचंद लगाया हूना है ॥
इस कामचोर कुटिल कपटी को
सहा न जाय पराय विभूती।
ज्यों सकुनी मामा पांडव को लाक्षागृह में भूना है ॥
झूठी शान बघारत बढ़-बढ़ बन बफादार का ढोंग करे।
मन में पाप है मुंह में जाप है, अंतर्मन सब सूना है ॥
मुंह में राम बगल में छूरी,
रखे पात्रता इसमें पूरी।
शिष्ट सिखावै औरन का,
अशिष्ट स्वयं दिन दूना है ॥
राम सहोदर सिखबन मानो, लोक
लाज को भी पहचानो।
नर तन पाया इस जीवन में तो
बुरे कर्म नहिं छूना है॥
[इस ब्लॉग में रचना प्रकाशन हेतु कृपया हमें 📳 akbs980@gmail.com पर इमेल करें अथवा ✆ 8982161035 नंबर पर व्हाट्सप करें, कृपया देखें-नियमावली]
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया रचना के संबंध अपनी टिप्पणी यहाँ दर्ज करें.