मंगलवार, जुलाई 21, 2020

बचपन (कविता) : बी एस कुशराम

‼️"बचपन"‼️
काश बहुरि के दुबारा,आ जाता मेरा बचपन।
झमेला न झेलता, सदा रहता खेलता, यही तो है बचपन।।
   बार-बार आता है याद, दस-ग्यारह का मियाद,
   परिवार की परवरिश में, अब उम्र पार पचपन।
   काश बहुरि के----------------
मातु-पिता से जिद करना,बात-बात में मचलना,
बिन रोष मांग पूरी करते, हों चाहे निर्धन।
काश बहुरि के-----------------
   भाई- बहनों से रूठ जाना, तुरंत फिर मान जाना,
   बचपन में दोस्तों से, कई बार हो जाता अनबन।
   काश बहुरि के-----------------
अमराई में पहुंच जाते, पके आम तोड़ लाते,
माली से छुपते छुपाते, खाते मिल सखा जन।
काश बहुरि के-------------------
   लुका- छुपी का खेलते खेल,गुल्ली डंडा का मेल,
   आपस में होता हेलमेल, ऐसा होता है बालपन।
   काश बहुरि के--------------------
"कुशराम" की है नसीहत, करो ना कभी शरारत,
लिखाओ सु- इबारत,कोरा कागज है बाल मन।
काश बहुरि के दुबारा,आ जाता मेरा बचपन,
झमेला न झेलता ,सदा रहता खेलता, यही तो है बचपन।।
रचनाकार-बी एस कुशराम बड़ी तुम्मी
जिला-अनूपपुर (मध्य प्रदेश)
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