हे! मेघ बरसो: (वर्ण पिरामिड)
(१)
हे!
मेघ
बरसो
घनघोर
धरती पर
उमड़ घुमड़
चारों दिशाओं की ओर।
(२)
तू
धरा
तपन
विनाशक
सुखदायक
जग चराचर
सुख शांति प्रदाता।
(३)
तू
सदा
बादल
आया कर
काली घटाओं
को साथ लेकर
रिमझिम बूंदों में।
(४)
हे!
मेघ
तुम्हारे
सुरम्य घटा
मनभावन
अति सुहावन
प्रमुदित हो गया।
रचना✍
स्वरचित एवं मौलिक
मनोज कुमार चंद्रवंशी
जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश
रचना दिनांक-२१|०७|२०२०
(१)
हे!
मेघ
बरसो
घनघोर
धरती पर
उमड़ घुमड़
चारों दिशाओं की ओर।
(२)
तू
धरा
तपन
विनाशक
सुखदायक
जग चराचर
सुख शांति प्रदाता।
(३)
तू
सदा
बादल
आया कर
काली घटाओं
को साथ लेकर
रिमझिम बूंदों में।
(४)
हे!
मेघ
तुम्हारे
सुरम्य घटा
मनभावन
अति सुहावन
प्रमुदित हो गया।
रचना✍
स्वरचित एवं मौलिक
मनोज कुमार चंद्रवंशी
जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश
रचना दिनांक-२१|०७|२०२०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
कृपया रचना के संबंध अपनी टिप्पणी यहाँ दर्ज करें.