गुरुवार, अक्टूबर 31, 2019

सरदारों का सरदार था वह:राम सहोदर पटेल



सरदारों का सरदार था वह
(भारत रत्न सरदार वल्लभ भाई पटेल का संक्षिप्त जीवन परिचय)
०राम सहोदर पटेल
बरस अठारह सौ पचहत्तर में
अक्टूबर इकतीस को जन्म लिया
अपने अद्भुत सद्भावों से,
स्वतंत्रता संग्राम को सफल किया

सरदारों का सरदार था वह,
निर्भय वीर महान था वह
रन कौशल था हिम्मत वाला,
सेना नायक दिलदार था वह

दृढ़ता पर अविचल रहकर के,
भारत का नव निर्माण किया
बारडोली का बन शेरेदिल,
कृषकों का उद्धार किया

कुशल युद्ध संचालन कर,
सरदार उपाधि को प्राप्त किया
अजेय प्रबल पराक्रम से,
दुश्मन का छक्का छुड़ा दिया

मानवीय गुणों में थे भरपूर,
निज स्वारथ पर नहीं काम किया
दयाभाव, अनुशासन से,
जिम्मेदारी का कार्य किया

अपनी असाधारण  बुद्द्धिमत्ता से,
पांच सौ बासठ रियासतें भंग किया
अखंड भारत को रच डाला,
नहीं किसी को तंग किया

प्रेरणा दायक सद्वृत्ति से,
सद्मार्ग दिखाया हम सबको
प्रखर करें उन भावों को,
जो फर्ज सिखाया हम सबको

रचनाकार:राम सहोदर पटेल,एम.ए.(हिन्दी,इतिहास)
स.शिक्षक, शासकीय हाई स्कूल नगनौड़ी 
गृह निवास-सनौसी, थाना-ब्योहारी जिला शहडोल(मध्यप्रदेश)

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भारत को बनाया चमन:रमेश प्रसाद की कविता

भारत को बनाया चमन
●रमेश प्रसाद पटेल
सरदार जी हम तुमको करते हैं नमन।
एकीकरण करा भारत को बनाया चमन।।

त्याग रूढ़ियाँ, सूझबूझ व अटल निर्भीकता।
विराट व्यक्तित्व, चमत्कार भारत की विशालता।।

परहित खातिर हे महा सपूत! राष्ट्र के क्रांति दूत।
पांच सौ बासठ रियासतों को किया एक सूत।।

तुम ही बन कर आए हो भारत के पवन। 
एकीकरण करा भारत को बनाया चमन।।

चक्रव्यूह राजाओं का तोड़, अखंड भारत बनाया।
कर्मठ व संघर्ष जीवन जीने की कला सिखाया।।

आजादी के बाद भार कंधों में अपने ले लिया।
लौह पुरुष बन गौरव-गरिमा से तिरंगा लहरा दिया।।

सब करते हैं तेरा ही गुणगान, तुमको नमन।
एकीकरण करा भारत को बनाया चमन।।

युगों-युगों तक तुम्हारी शक्ति याद करेंगे।
स्वर्णाक्षरों में तुम्हारा नाम लिखेंगे।।

सरदार वल्लभ भाई पटेल की अजब है कहानी।
प्रथम उप प्रधानमंत्री की तुमने दी है निशानी।।

महका दिया फूलों जैसा हुआ भारत का गगन।
एकीकरण करा भारत को बनाया चमन।।
सरदार पटेल
चित्र:गूूूगल से साभार
तुम्हारा जन्मदिन  राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाते। 
नवयुग की बेला से राष्ट्र को हम सब सजाते।।

जलता रहेगा मशाल अब भारत में तुम्हारा।
विशाल भारत को बनाने में तुमने दिया है सहारा।।

कथनी से नहीं करनी से किया मन मगन। एकीकरण करा भारत को बनाया चमन।।

रचना:रमेश प्रसाद पटेल, माध्यमिक शिक्षक 
पुरैना, ब्योहारी जिला शहडोल (मध्यप्रदेश)

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बुधवार, अक्टूबर 30, 2019

सरदार पटेल का संक्षिप्त जीवन परिचय:सुरेन्द्र कुमार पटेल का आलेख


भारत रत्न लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल
यही प्रसिद्ध लौह का पुरुष प्रबल,
यही प्रसिद्ध शक्ति की शिला अटल, 
हिला इसे सका कभी न शत्रुदल,
पटेल पर 
स्वदेश को 
गुमान है।
सुबुद्धि उच्च श्रृंग पर किए जगह,
हृदय गंभीर है समुद्र की तरह,
कदम छुए हुए जमीन की सतह,
पटेल देश 
का निगहबान है।
हरेक पक्ष को पटेल तौलता,
हर एक भेद को पटेल खोलता,
दुराव या छुपाव से उसे गरज?
कठोर नग्न सत्य बोलता।
पटेल हिंद 
की निडर 
जवान है।
-हरिवंश राय बच्चन


सरदार पटेल का जन्म गुजरात के नाडियाद में एक किसान परिवार में 31 अक्टूबर 1875 को हुआ था। उनके पिता का नाम झवेरभाई और माता का नाम लाडबा देवी था। वह अपने पांच भाई बहनों में चौथे नंबर पर थे। सोमाभाई, नरसीभाई और विट्ठल भाई उनके अग्रज थे। बहन डाबीहा सबसे छोटी थी। उनका जन्म एक निर्धन किसान परिवार में हुआ था
सरदार पटेल की स्कूली शिक्षा स्वाध्याय के बल पर हुयी उनका विवाह 16 वर्ष की अवस्था में झाबेरबा के साथ हुआ किन्तु उन्होंने अपने विवाह को पढाई में बाधा नहीं बनने दिया 22 वर्ष की अवस्था में उन्होंने 10वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की आर्थिक अभाव के कारण वे कालेज में नियमित अध्ययन नहीं कर सके किन्तु उन्होंने स्वाध्याय के रूप में अपना अध्ययन जारी रखा उन्होंने स्वाध्याय के बल पर जिला अधिकारी की परीक्षा दी और प्रथम स्थान प्राप्त किया इससे यह सिद्ध होता है कि सरदार पटेल अपने शुरूआती जीवन में ही बहुत अधिक परिश्रमी और संकल्पवान थे

सरदार पटेल का भाई के प्रति त्याग 
सरदार पटेल ने कुछ समय तक जिला अधिकारी के पद पर कार्य किया किन्तु उनकी इच्छा वकालत पेशे में जाने की थी, अतः उन्होंने लंदन में वकालत करने के लिए वीजा और पासपोर्ट का आवेदन  जब उनका वीजा और पासपोर्ट बनकर आया तो उसमें उनका नाम संक्षेप में व्ही.बी. पटेल लिखा हुआ था इससे उनके बड़े भाई विट्ठल भाई का नाम भी प्रकट होता था विट्ठल भाई पटेल ने स्वयं लंदन जाकर वकालत करने की इच्छा व्यक्त की जिस पर सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अपना वीजा तथा पासपोर्ट अपने बड़े भाई को दे दिया. साथ ही अपने बड़े भाई को लन्दन भेजने के लिए आर्थिक प्रबंध भी किया
हालांकि उसके तीन वर्ष बाद सरदार पटेल वकालत की पढाई करने लन्दन गए और जो पाठ्यक्रम 36 माह में पूरा होता था उसे उन्होंने 30 महीनों में ही पूरा कर लिया इन तथ्यों से साबित होता है कि सरदार पटेल प्रारम्भ से ही कुशाग्र बुद्धि के थे किन्तु आर्थिक अभाव के कारण उनकी शिक्षा देर से पूरी हुयी यहाँ 36 वर्ष की उम्र में उन दिनों पढाई की जिज्ञासा रखना आज के विद्यार्थियों के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है
सरदार वल्लभ भाई पटेल ने लन्दन से बैरिस्टर की पढाई पूरी कर गुजरात के अहमदाबाद में वकालत करने लगे.सरदार पटेल की वकालत चल निकली

गाँधीजी से पहली मुलाकात-

ऐसा कहा जाता है कि प्रारम्भ में सरदार पटेल महात्मा गाँधी से बिलकुल भी प्रभावित नहीं थे सरदार पटेल अहमदाबाद की जिला व सत्र अदालत में प्रैक्टिस करते थे और प्रैक्टिस के बाद वे गुजरात क्लब में आया करते यह क्लब बुद्धिजीवियों का मंच हुआ करता।  इस क्लब में बड़े-बड़े उद्योगपति, विभिन्न क्षेत्रों के प्रशासनिक अधिकारी और कुछ अंग्रेज नौकरशाह भी आया करते थे। वे सब इस क्लब में अहमदाबाद की राजनीति, संस्कृति और आर्थिक मामलों पर बात करते उधर महात्मा गाँधी भी कानून की पढाई करके 1913 में अहमदाबाद आ गए थे और वे यहाँ आकर भद्र स्थित अदालत में प्रैक्टिस करने लगे थे उन दिनों महात्मा गाँधी देश भर में भ्रमण करते और लोगों के बीच अपने बात रखते तीन फरवरी को अहमदाबाद के पानकोर नाका के पास गांधीजी का संबोधन होना था, सरदार पटेल उनका संबोधन सुनने पानकोर नहीं गये किन्तु आयोजकों ने स्वयम गाँधी जी को गुजरात क्लब ले आए और तब यहीं 3 फरवरी 1915 को दोनों महापुरुषों की पहली बार मुलाक़ात हुयी. गुजरात क्लब में हुयी चर्चा से दोनों नेता एक दूसरे से परिचित हुए
गाँधी जी के साथ मेलजोल का बढ़ना- अब सरदार पटेल महात्मा गाँधी जी के साथ कांग्रेस के अधिवेशनों में जाने लगे. वे पहली बार 1915 में मुम्बई अधिवेशन में महात्मा गाँधी के साथ कांग्रेस अधिवेशन में शामिल हुए और उसके बाद 1916 में हुए लखनऊ अधिवेशन में भी वे महात्मा गाँधी के साथ कांग्रेस अधिवेशन में शामिल हुए. इससे उन दोनों में लगातार मेल-जोल बढ़ने लगा
सरदार पटेल महात्मा गाँधी से ऐसे प्रभावित हुए- लखनऊ अधिवेशन में ब्रिटिश हुकूमत को ज्ञापन देने के लिए एक प्रारूप तैयार किया गया था जो करीब दस पृष्ठों का था. महात्मा गाँधी ने इसे देखा और इस पूरे ज्ञापन को मात्र 10 वाक्यों में समेट दिया इसी से सरदार पटेल महात्मा गाँधी से प्रभावित हुए और बाद में महात्मा गाँधी के कहने पर उन्होंने राजनीति के क्षेत्र में पदार्पण किया और अहमदाबाद नगरपालिका चुनाव लड़ा और वे अहमदाबाद नगरपालिका प्रमुख बने इसके बाद वे आजीवन कांग्रेस और महात्मा गाँधी के साथ रहे और देश की आजादी के लडाई में अपना योगदान दिया
सरदार पटेल का पहला आन्दोलन- सन 1918 में गुजरात के खेडा जिले की पूरे साल के फसल मारी गई ऐसी स्थिति में अंग्रजों को किसानों की लगान माफ़ करनी  चाहिए थी किन्तु अंग्रेजों ने किसानों की लगान माफ़ नहीं की ऐसी स्थिति में महात्मा गाँधी ने उन्हें खेडा जाकर इसके विरुद्ध सत्याग्रह करने की सलाह दी महात्मा गाँधी के आह्वान पर सरदार पटेल ने अपने चलती हुयी वकालत छोड़ दी और वे खेडा के लोगों को एकजुट किया जो जमीन सरकार ने कुर्क कर ली थी उस खेत का किसानों ने जबरिया फसल काट ली. इस जुर्म में कुछ लोगों को जेल व जुरमाना भी हुआ किन्तु सरकार को अपनी भूल का एहसास हुआ और गरीब किसानों की लगान वसूली बंद कर दी. इस प्रकार सरदार पटेल का पहला आन्दोलन सफल रहा
सरदार की उपाधि- सरदार वल्लभ भाई पटेल को सरदार की उपाधि बारडोली सत्याग्रह में हुए सफल योगदान के लिए वहाँ की महिलाओं ने प्रदान किया था 1928 गुजरात में प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में 30 प्रतिशत की वृद्धि कर दी सरदार पटेल ने इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया सरकार ने इस सत्याग्रह को कुचलने के लिए कठोर कदम उठाये पर अंततः विवश होकर उसे किसानों की मांगों को मानना पड़ा एक न्यायिक अधिकारी बूमफील्ड और एक राजस्व अधिकारी माक्सवेल के प्रतिवेदन पर लगान को 6.03 प्रतिशत कर दिया

भारत की आजादी और सरदार पटेल की भूमिका-

कैबिनेट मिशन योंजना 1946 के अनुसार भारत को एक संविधान सभा का गठन करना था तथा इस संविधान सभा को ही अंतरिम सरकार के दायित्व का निर्वहन करना था भारत के प्रधानमन्त्री के बतौर अधिकांश प्रान्तों ने सरदार पटेल के नाम पर अपनी सहमति दी थी किन्तु जवाहरलाल नेहरु ने महात्मा गाँधी से स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि वह किसी के अधीन रहकर काम नहीं कर सकते ऐसी स्थिति में महात्मा गाँधी की इच्छा का सम्मान करते हुए सरदार पटेल ने अपना प्रस्ताव वापस ले लिया और इस प्रकार जवाहर लाल नेहरु आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने तथा सरदार पटेल को गृह और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई

भारत के एकीकरण में सरदार पटेल का योगदान और लौहपुरुष की उपाधि-

सरदार पटेल की महानतम देन और लौहपुरुष की संज्ञा- भारतीय स्वतंत्र अधिनियम, 1947 के प्रावधानों के अनुसार भारत का विभाजन कर दो अधिराज्यों इण्डिया और पकिस्तान की स्थापना की गयी थी तथा इसमें यह प्रावधान किया गया था कि देशी रियासतें अपनी इच्छा से इन दोनों में से किसी भी अधिराज्य में शामिल होने अथवा किसी में भी शामिल न होकर स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखने के लिए स्वतंत्र हैं इसके कारण देशी रियासतों के नवाब एवं महाराजाओं ने आजादी के सपने देखने लगे उस समय 562 देशी रियासतें थीं इनके भारतीय संघ में विलय के बिना अखंड एवं सम्पूर्ण भारत का सपना पूरा नहीं हो सकता था. ऐसे में सरदार पटेल ने अपनी सूझबूझ, कूटनीतिक कुशलता से अधिकांश देशी रियोसतों को विना किसी खुनी क्रांति के भारत में विलय के लिए सहमत कर लिया हैदराबाद, जूनागढ़ और जम्मूकश्मीर का प्रकरण जटिल बना रहा जिसमें हैदराबाद को पुलिस कार्यवाही के द्वारा और जूनागढ़ को जनमत संग्रह के द्वारा भारत में मिला लिया गया जम्मू एवं कश्मीर की स्थिति अनेक कारणों से भिन्न थी. कश्मीर का प्रकरण प्रधानमन्त्री स्वयम देख रहे थे. हालाँकि पाकिस्तान के आक्रमण के पश्चात् वहां के राजा की सहमति से जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय हो गया किन्तु युद्ध विराम के पश्चात लगभग 32000वर्ग मील क्षेत्रफल अभी भी पकिस्तान के कब्जे में बना हुआ है सरदार पटेल जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह कराने एवं इस प्रकरण को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने के पक्ष में नहीं थे भारत के एकीकरण के उनके योगदान के कारण ही उन्हें लौहपुरुष कहा जाता है उन्हें भारत का बिस्मार्क भी कहा जाता है किन्तु कुछ इतिहासकारों का मानना है कि सरदार पटेल के सामने बिस्मार्क कुछ भी नहीं था क्योंकि बिस्मार्क ने जर्मनी का एकीकरण खूनी क्रांति के बल पर कर पाया था जबकि सरदार पटेल ने वही काम बिना खून बहाए अल्प समय में कर दिखाया
सरदार पटेल और नेहरु के सम्बन्ध- आजादी के बाद कई ऐसे प्रकरण आए जिसमें नेहरु और सरदार पटेल के बीच मतभेद उजागर हुए किन्तु यह मतभेद दोनों की कार्यप्रणाली को लेकर था जवाहर लाल नेहरु सम्भवतः रोक-टोक पसंद नहीं करते थे और सरदार पटेल, किसी काम को यथार्थ रूप में जाने बिना आगे नहीं बढाते थे हालाँकि वे महात्मा गाँधी   की इच्छा का सम्मान करते हुए आजीवन सरकार में बने रहे 
महात्मा गाँधी की हत्या और सरदार पटेल का क्षुब्ध होना- 30 जनवरी 1948 को  महात्मा गाँधी की हत्या हो गयी इसे सरदार वल्लभ भाई पटेल ने ह्रदय से लिया। वे उस समय भारत के गृहमंत्री थे। कदाचित महात्मा गाँधी की हत्या ने उन्हें अत्यधिक क्षुब्ध किया और इसके बाद वह बीमार भी रहने लगे। बीमारी के चलते 15 दिसंबर 1950 को 75 वर्ष की अवस्था में मुम्बई(उस समय बाम्बे) में भारत के एकीकरण का महान नायक अस्ताचल में समा गया
सरदार पटेल का सम्मान-
भारत सरकार ने सन 1991 में उन्हें  मरणोपरान्त "भारतरत्न" सम्मान से नवाजा।यह भी हतप्रभ करता है कि अखंड भारत का नक्शा बनाने वाले महापुरुष को भारत रत्न देने में इतना अधिक समय लगा देश भर में उनके नाम से कई संस्थानों का नामकरण किया गया है। सरदार पटेल के 137वीं जयंती के अवसर पर भारत सरकार द्वारा  गुजरात में सरदार सरोवर बाँध के सामने 3.2 किलोमीटर दूरी पर नर्मदा नदी के बीचोंबीच स्थित एक टापू  साधूबेट  पर उनका स्मारक बनाया गया है। जिसकी कुल ऊंचाई "स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी" से लगभग दुगुनी है।इसकी ऊंचाई 182 मीटर है। इसे "एकता की मूर्ति" अर्थात "स्टेचू ऑफ़ यूनिटी" के नाम से जाना जाता हैसरदार वल्लभ भाई पटेल के जन्मदिन को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है

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मंगलवार, अक्टूबर 29, 2019

सरदार पटेल का व्यक्तित्व:सुरेन्द्र कुमार पटेल का आलेख


भारतरत्न लौहपुरुष  सरदार वल्लभ भाई पटेल का व्यक्तित्व
भारतरत्न लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल को अखंड भारत के निर्माण और देशी रियासतों के एकीकरण के लिए गर्व से याद किया जाता है. उन्हें भारत का बिस्मार्क कहा जाता है किन्तु सरदार पटेल ने जो कार्य भारत में किया वह बिस्मार्क के किये गए कार्य से कहीं अधिक महत्वपूर्ण था. सरदार पटेल ने बिना किसी खूनी क्रांति के भारत के देसी रियासतों के एकीकरण का कार्य किया. जबकि बिस्मार्क के एकीकरण का कार्य हिंसा पर आधारित था. यह जटिल कार्य उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण ही संभव हो पाया. 

यथार्थवादी चिन्तन पर आधारित सरदार पटेल का व्यक्तित्व इतना विराट है कि उसे शब्दों में समेटना सूरज को दीपक दिखाने के समान है. वह कुशाग्र बुद्धि तो थे ही उनमें पर्वत के समान अचल-अटल निर्भीकता भी थी. मन और हृदय से उठने वाली क्षणिक भावनाएं उन्हें उनके निश्चित किये गये मार्ग से डिगा नहीं सकती थी परन्तु जब परहित और राष्ट्रहित की बात आई तो बड़ा से बड़ा त्याग भी उनके लिए तिनके से तुच्छ महसूस हुआ. इस विराट व्यक्तित्व का ही चमत्कार था कि आज हमें विशाल भारत के दर्शन संभव हो पा रहा है. सरदार पटेल न केवल यथार्थवादी थे बल्कि वह एक बहुत अच्छे स्वप्नदृष्टा भी थे परन्तु उनका स्वप्न कोरा दिवा स्वप्न न होकर सच्ची दूरदर्शिता पर आधारित था. 

गरीब किसान परिवार में जन्में सरदार पटेल ने गरीबी के आगे घुटने नहीं टेके. उन्होंने 22 वर्ष की अवस्था में स्वाध्याय के दम पर अपनी स्कूली शिक्षा पूर्ण की तो वहीं स्वाध्याय के ही दम पर उन्होंने जिला अधिकारी जैसे पद की परीक्षा दी और अव्वल प्रथम स्थान प्राप्त किया. आज लोग बेरोजगारी की असुरक्षा से भय खाकर और पद मोह में फंसकर अपनी रूचि और इच्छाओं का समर्पण कर आजीवन एक सेवा में रहकर दमघोटू जीवन जीते रहते हैं लेकिन सरदार पटेल को जिला अधिकारी जैसा पद भी अपने मोहपाश में बाँध नहीं सका और उन्होंने अपनी रूचि के पेशे को प्रमुखता देते हुए उन्होंने 36 वर्ष की अवस्था में जब लोग अपने पेशे की संरचना में स्थायी रूप से बंध जाते हैं, उन्होंने लन्दन जाकर बैरिस्टर की पढाई करने का निश्चय किया. पढ़ाई और स्वाध्याय के प्रति लगातार मोहभंग हो रहे युवावर्ग के लिए उनसे प्रेरणा लेने की आवश्यकता है. 

किन्तु उनका यह स्वप्न तत्काल पूरा नहीं हो सका क्योंकि उनके पासपोर्ट में उनका संक्षेप नाम लिखा हुआ था जिसके कारण उनके बड़े भाई ने स्वयम लन्दन जाकर बैरिस्टर की पढाई करने की इच्छा व्यक्त की. सरदार पटेल ने अपना वीजा और पासपोर्ट अपने बड़े भाई विट्ठल भाई को देते हुए उनके वहां जाने का आर्थिक प्रबंध भी किया. इसके 3 साल बाद में सरदार पटेल बैरिस्टर की पढाई करने लंदन गये जहाँ उन्होंने 36 माह का पाठ्यक्रम 30 माह में पूर्णकर एक कीर्तिमान रच डाला. 

सरदार पटेल का व्यक्तित्व इतना विराट था कि वह बहुत जल्दी किसी और से प्रभावित नहीं होते थे. इसका एक उदाहरण यह है कि जब अहमदाबाद में महात्मा गाँधी जी लोगों को अपना संबोधन देने आए तो वह उनका संबोधन सुनने तक नहीं गये. यह बात अलग है कि संयोग ऐसा था कि आयोजकों ने खुद गाँधी को उस क्लब में ले आए जहाँ सरदार पटेल अक्सर जाया करते थे और उसके बाद सरदार पटेल आजीवन गाँधी जी के सच्चे अनुयायी और कांग्रेस के समर्पित सिपाही के रूप में खड़े रहे. 

एक बार वे जो संकल्प कर लेते, उस पर अंत तक डंटे रहते. फिर चाहे वह खेडा का सत्याग्रह आन्दोलन हो या बारडोली का आन्दोलन जिसमें वहां की महिलाओं ने उन्हें सरदार की उपाधि दी. 

सरदार पटेल ने समस्याओं को चाहे वे जितनी जटिल रही हों, स्वयं पर हावी नहीं होने दिया. नमक कानून तोड़ने के लिए ग्रामीणों को उकसाने के आरोप में उन्हें 7 मार्च, 1930 को बम्बई सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और गुप्त रूप से उन्हें एक विशेष ट्रेन से साबरमती से यरवदा जेल में डाल दिया गया. उन्हें खाने में एक दिन के अन्तराल में ज्वार का दलिया और ज्वार की रोटी दी जाती. उन दिनों वे दांत के दर्द से पीड़ित थे, जब उनके किसी शुभचिन्तक ने उनसे पूछा कि उन्हें ज्वार की रोटी खाने में तकलीफ नहीं होती तो उन्होंने इसका उत्तर हँसते हुए दिया,“ओह, मैंने उसे पानी में भिगोकर तोड़ दिया और बड़ी आसानी से खा लिया.” उनकी पत्नी की मृत्यु से जुड़ी घटना की भी अक्सर चर्चा की जाती है. सरदार पटेल की पत्नी झावेर बा कैंसर से पीड़ित थीं. उन्हें साल 1909 में मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. अस्पताल में ऑपरेशन के दौरान ही झावेर बा का निधन हो गया. उस समय सरदार पटेल अदालती कार्यवाही में व्यस्त थे. कोर्ट में बहस चल रही थी. तभी एक व्यक्ति ने कागज़ में लिखकर उन्हें झावेर बा की मौत की ख़बर दी.पटेल ने वह संदेश पढ़कर चुपचाप अपने कोट की जेब में रख लिया और अदालत में बहस जारी रखी जब अदालती कार्यवाही समाप्त हुई तब उन्होंने अपनी पत्नी की मृत्यु की सूचना सबको दी.

सरदार पटेल ने वह किया जो देश और समाज को जरूरत थी. यदि ऐसा करने में उन्हें अपनी इच्छाओं की तिलांजलि देनी पड़ती तो वह पीछे नहीं हटते. सरदार पटेल का वकालत पेशा अच्छा चल रहा था और वे राजनीति में जाना नहीं चाहते थे किन्तु जब महात्मा गाँधी ने उन्हें सक्रिय राजनीति में जाने की सलाह दी तो वे अहमदाबाद नगरपालिका का चुनाव जीतकर अहमदाबाद नगरपालिका प्रमुख बने. 

सरदार पटेल ने सम्प्रदाय आधारित राजनीति को कभी स्वीकार नहीं किया. वे अंग्रेजों की भारतीयों में सम्प्रदायिक फूट डालने की साजिश से बाकायदा चौकन्ने थे और उन्होंने साम्प्रदायिक निर्वाचन पद्धति को कभी स्वीकार नहीं किया. सरदार पटेल सत्ता के लिए लालायित नहीं थे. वे एन-केन-प्रकारेण सत्ता प्राप्त करने के पक्ष में नहीं थे. बल्कि उनके मन में सम्पूर्ण भारत के लिए सम्पूर्ण आजादी का स्वप्न बस रहा था. क्रिप्स मिशन जो 1942 में भारत आया उसका उन्होंने विरोध किया क्योंकि उससे देसी रियासतों के एकीकरण का स्वप्न पूरा नहीं होता. 

सरदार पटेल की संगठनात्मक शक्ति अद्भुत थी. जब-जब आन्दोलन हुए, सरदार पटेल ने पूरे देश में भ्रमण कर कांग्रेस पार्टी के उद्देश्यों को लोगों तक पहुँचाया. यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि कांग्रेस को मजबूती के डोर में बांधे रखने में सरदार पटेल का ही हाथ था. महात्मा गाँधी एक ऊर्जावान शिक्षक थे तो सरदार पटेल एक अनुशासित किन्तु दृढ़ अनुयायी.

अवसर को अपने पक्ष में करने का उनमें बखूबी गुण था किन्तु वे अवसरवादी कतई नहीं थे. ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस पार्टी और सरकार के मंत्रिमंडल से पूछे बिना भारत को द्वितीय विश्वयुद्ध में शामिल घोषित कर दिया था. इसका सरदार पटेल ने जमकर विरोध किया. सरदार पटेल का मानना था कि भारतीयों की इच्छा जाने बिना भारत के विश्वयुद्ध में शामिल करने से भारत के लोगों का अपमान हुआ है. तथापि वे चाहते थे कि ब्रिटिश सरकार भारत को स्वतंत्र घोषित करे और तब भारतीय स्वनिर्णय के आधार पर ब्रिटेन का सहयोग करने के लिए तैयार हैं. 

सरदार पटेल ने महात्मा गाँधी की सदिच्छा का हमेशा सम्मान किया किन्तु सरदार प्रत्येक निर्णय व्यापक हित को ध्यान में रखकर ही लेते थे. कैबिनेट मिशन योजना 1946 के अंतर्गत निर्मित संविधान सभा में मुस्लिम लीग के न शामिल होने के परिप्रेक्ष्य में लन्दन में आयोजित बैठक में वे नहीं गए. क्योंकि अब उनका यह दृढ़ निश्चय हो गया था कि भारत की आजादी कांग्रेस और मुस्लिम लीग की एकता की शर्त पर नहीं होगी. बल्कि अब तो अंगेजों को बिना शर्त भारत से जाना होगा.उन्होंने मुस्लिम लीग को आड़े हाथों लेते हुए कहा,”... वह चाँद के लिए रो रहा है, सच्चाई यह है कि गुलामों के पास न तो पाकिस्तान है और न ही हिंदुस्तान.” 

सरदार वल्लभ भाई पटेल सभी को साथ लेकर चलने के पक्ष में थे. किन्तु तुष्टिकरण के पक्ष में नहीं थे. वे चाहते थे कि मुस्लिम लीग संविधान सभा में शामिल हो किन्तु वह अलग पाकिस्तान का राग अलापना बंद कर दे. सरदार पटेल के ही प्रयासों से संविधान सभा में अलग-अलग पार्टियों के लोगों का योगदान प्राप्त हो सका.तथा कुछ ऐसे लोग भी संविधान सभा में शामिल हुए जो किसी पार्टी से नहीं थे. 

अक्सर भारत विभाजन को लेकर तत्कालीन नेतृत्व को कोसा जाता है. यह सरदार पटेल के व्यक्तित्व की भी परीक्षा थी. अंग्रेज हमेशा की तरह यह चाहते थे कि दो सम्प्रदायों के विवाद में भारत की स्वतंत्रता की मांग लंबित रही आए. किन्तु अब वक़्त और अधिक इंतजार करने का नहीं था. इसलिए शेष भारत के नवनिर्माण का सपना संजोकर भारत विभाजन को स्वीकार किया गया. 

इसके बाद देशी रियासतों के एकीकरण में सरदार पटेल ने जो निष्ठा, परिश्रम, कूटनीतिक सूझबूझ और न झुकने वाला जो व्यक्तित्व प्रस्तुत किया, उसके कारण सरदार पटेल को न केवल देश बल्कि अन्तर्रष्ट्रीय स्तर पर उनको याद किया जाता है. उन्होंने एक अखंड और विशाल भारत के अपने सपने को देशी रियासतों के सामने रखा. राजाओं और नवाबों की असुरक्षा का भय दूर किया उनके अधिकारों के प्रति उन्हें आश्वस्त किया और इस प्रकार सरदार पटेल के विराट व्यक्तित्व के सामने देशी रियासतें नतमस्तक होती हुयीं विशाल भारत के सपनों में खुद को खोने के लिए ख़ुशी-ख़ुशी राजी हो गयीं. जो समस्याग्रस्त रियासतें थीं-हैदराबाद, जूनागढ़ और जम्मू-कश्मीर वे भी उनके सूझ-बूझ से भारत का हिस्सा बन गयीं. 

सरदार पटेल के प्रधानमंत्री न बनने का मलाल देशवासियों को सदा रहेगा किन्तु उन्होंने अपना प्रस्ताव केवल महात्मा गाँधी के कारण वापस नहीं लिया बल्कि उस समय कोई गतिरोध उत्पन्न हो और उनके सपनों का भारत न बन सके, वे यह चाहते नहीं थे. उनके व्यक्तित्व में त्याग का यह महानतम गुण ही था जिसके कारण भारत के प्रधानमन्त्री का पद उन्हें तिनके से भी अधिक तुच्छ लगा. आज चाहे राजनीतिक संगठन हों, सामाजिक संगठन हो या घर-परिवार हों छोटे-छोटे पदों के लोभ में लोग संस्था से अलग हो जाते हैं अलग संगठन बना लेते हैं. सरदार पटेल ने कांग्रेस का सिपाही होकर और महात्मा गाँधी का सच्चा अनुयायी होकर वह किया जिसमें कांग्रेस और भारत का हित था. भारत का प्रधानमन्त्री न होते हुए भी सरदार पटेल ने भारत को एकीकृत करके विश्व-पटल पर स्थापित कर दिया. 
उनके अनुशासित, दृढ़प्रतिज्ञ, अद्भुत और  विराट व्यक्तित्व के कारण ही उन्हें "लौहपुरुष" कहा जाता है.
भारत की आजादी और उसके बाद  भारत के एकीकरण में किये गये उनके योगदान के कारण उनके नाम का सितारा  स्वर्णिम भारत के आकाश में सदैव चमकता रहेगा.

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रविवार, अक्टूबर 27, 2019

दीपों की झिलमिल रोशनी:अंजली सिंह की कविता



दीपों की झिलमिल रोशनी

अंजली सिंह

जहां दीपों की झिलमिल रोशनी हो, 
जहां गोबर से लीपित द्वार और आंगन हो,
जहां फसलों से सजे खेत, खलिहान हों,
 जहां रोशनी से सजे घर और आंगन हों।

जहां गायों के गले में घंटी की सुमधुर आवाज हो,
जहां खेतों में धान और बाजरे की  फसलों की खुशबू हो,
जहां मंदिरों से आती राम नाम की आवाजें हो,
जहां राम के अयोध्या लौटने के उत्सव की खुशी हो,
जहां नव वस्त्र धारण कर लक्ष्मी पूजन की खुशी हो,
जहां अमावस के घने अंधेरों में रोशनी का संदेश हो,
जहां कृषि औजारों औरधन धान्य की पूजा हो,
जहां हर किसी के लिए प्रेम और समृद्धि की कामना हो।

जहां बरसात के बाद मौसम बदलने की खुशी हो,
जहां  नूतन बही खाते की शुरुआत हो,
जहां मंगल कार्य सर्वत्र प्रारम्भ हो जाते हों,
जहां  रचनात्मक कार्य होने लगते हों,
जहां प्रकृति आरोग्य का मौसम तैयार कर देती हो,
जहां हर गरीब और अमीर के मन में उल्लास हो।
ऐसे दीपोत्सव की सब को बधाई हो।

*शुभ दीपोत्सव* 🙏🙏 
रचनाकार:श्रीमती अंजली सिंह 
(राज्यपाल पुरस्कार प्राप्त, 2018)
     उच्च माध्यमिक शिक्षक
 शास. उ. मा. विद्यालय भाद
   जिला-अनुपपुर (मध्यप्रदेश)

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शनिवार, अक्टूबर 26, 2019

हर घर में दीवाली हो:सुरेन्द्र कुमार पटेल की कविता



हर घर में दीवाली हो

सुरेन्द्र कुमार पटेल 

दीपों की सजे कतार,
हर घर में दीवाली हो।
उजास हृदय हो सबका,
सबके घर में खुशहाली हो।1।

हर दिया को तेल मिले,
हर दिया में तमहरणी बाती हो।
ऐसी अमावस्या हर रोज रहे,
जो अंजुली में भर प्रकाश लाती हो।2।

रह न जाए मन में गांठें,
खुले, ऐसे जैसे पटाखा सुतली वाला हो।
प्रमुदित करे आपकी शुभकामना
जैसे कहता कोई मुरलीवाला हो।3।

पूजा हो लक्ष्मी की पुरजोर,
समदृष्टि न ओझल होने वाली हो।
वंदन, अभिनंदन आगंतुक लक्ष्मी का
वह मन को न बोझल करने वाली हो।4।

दीप-दीप को दे सम्बल,
कहता जले चलो, जले चलो।
मानव सीखेगा इन दीपों से
कहना बढ़े चलो, बढ़े चलो।5।

निज अंधकार मिटाने खातिर,
बाती दूजे को सुलगाने वाली हो।
तूफानों से करे नैन मटक्का,
वह संकट में मुस्काने वाली हो।6।

एक दीप जले देवालय में,
वह अन्धविश्वास मिटाने वाली हो।
जाति-धर्म के झगड़ों को ललकारे,
और मानवता को उठाने वाली हो।7।

एक दीप जले कोषालय में,
एक दीप जहाँ धानों की बाली हो।
एक दीप श्रम के श्वेद बिंदु पर,
और एक दीप जहाँ से सीमा की रखबाली हो।8।

बच्चों के हाथ लगे फुलझड़ियां
उनकी सभा कलरव-गुंजन करने वाली हो।
हर हाथ में हो माखनरोटी, और एक दीप
जो क्षुधा-रुदन का भंजन करने वाली हो।9।

अमावस से आच्छादित आकाश तले,
तारों की बारात उतरने वाली हो।
ले ज्ञानदीप कर में इस दीपोत्सव,
शिक्षा स्वयं उर में उतरने वाली हो।10।
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शुक्रवार, अक्टूबर 25, 2019

धनतेरस:सुरेन्द्र कुमार पटेल का आलेख


धनतेरस:सुरेन्द्र कुमार पटेल का आलेख
आज कार्तिक मास की त्रयोदसी अर्थात तेरहवीं तिथि है. आज का दिवस  अलग-अलग मान्यताओं के कारण विशेष महत्व रखता  है. मान्यताएं धार्मिक ग्रंथों एवं जनश्रुतियों पर आधारित होती  हैं. प्रत्येक मान्यता के पीछे एक सन्देश छिपा रहता है, जिसे प्रतीक के रूप में लोग मनाते चले जाते हैं. कई बार ऐसा होता है कि सिर्फ  प्रतीक शेष रह जाता है और उसका सन्देश पूरी तरह गायब हो जाता है. आइये जानते हैं आज के दिन के लिए प्रचलित विभिन्न मान्यताओं और उसके पीछे छिपे संदेशों के बारे में.
1. ऐसा माना  जाता है कि  समुद्रमंथन के परिणामस्वरूप आज के ही दिन भगवान धन्वन्तरी अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे. धन्वन्तरी को हिन्दू धर्म में देवता का पद प्राप्त है.कुछ जनश्रुतियों के आधार पर  ऐसा माना जाता है कि वे सेन(नाई) वंश के थे तथा वह महान चिकित्सक थे. उन्हें विष्णु का अवतार भी माना जाता है. आज के दिन उनका अवतरण दिवस है और चिकित्सा क्षेत्र में उनकी उपलब्धियों के कारण भारत सरकार ने आज के दिन को आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है. धन्वन्तरी को आरोग्य का देवता कहा जाता है.
2.  जैन सम्प्रदाय की मान्यता के अनुसार आज के दिन को "ध्यानतेरस" के रूप में मनाया जाता है. महावीर स्वामी आज के ही दिन ध्यानस्थ हुए थे तथा तीन दिन के ध्यान के बाद दीपावली के दिन महानिर्वाण को प्राप्त हुए थे.
3. कुछ स्थानों पर आज के दिन धनिया खरीदते हैं और दीपवाली के बाद उसे खेतों में बोते हैं.
4. आज के दिन चांदी खरीदने की प्रथा है. चांदी को चन्द्रमा का प्रतीक माना जाता है और चंद्रमा को  शीतलता का प्रतीक माना जाता है. शीतलता को संतोष का पर्याय माना गया है. संतोष सभी प्रकार के सुखों का मूल माना गया है. इस प्रकार चांदी खरीदना हमारे संतोष भाव का प्रतीक है.
5. आज के दिन सोना खरीदने की भी प्रथा है. ऐसा माना जाता है कि आज के दिन खरीदी गयी वस्तु अपने मूल्य का तेरह गुना वृद्दि करती है. इसीलिये लोग सोना खरीदते हैं. 
6. आज के दिन दक्षिण दिशा में दीपदान की भी प्रथा है. लोककथा के अनुसार हेम नाम के देवता के पुत्र  की कुंडली में विवाहोपरांत अकाल मृत्यु  का योग था. हेम ने अपने पुत्र को आजन्म अविवाहित रखने के उद्देश्य से एकांत में रख दिया किन्तु संयोग से उस एकांत में भी एक कन्या से मुलाकात हो जाती है और उस कन्या के मोहपाश में फंसकर हेम का पुत्र  उस कन्या से गंधर्व विवाह कर लेता है. तब यमदूत को उसके प्राण हरने ही पड़ते हैं. हेम ने जब यमदूत से पूछा कि क्या अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय नहीं है तो उसने बताया  कि जो लोग धनतेरस की शाम को यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखते हैं उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है। इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम लोग आँगन में यम देवता के नाम पर दीया जलाकर रखते हैं। इसी कारण आज से ही दीप जलाने की शुरुआत हो जाती है.
          इसी प्रकार  अन्य कथाएं भी प्रचलित हैं. हमें धार्मिक प्रथाओं एवं मान्यताओं को हमेशा वर्तमान परिदृश्य में उसकी प्रासंगिकता के अनुसार मनाना चाहिए. धनतेरस का दिन हमें आरोग्य रहने की प्रेरणा देता है. हमें अपने स्वास्थ्य के प्रति सतर्क और सावधान रहने की सीख देता है. साथ ही दीपक हमारी दृष्टि का प्रतीक है. दीपक हमें जागरूक रहने की प्रेरणा देता है. धन की अपनी महिमा है. धनतेरस हमें सिखाता है कि जीवन में धन का कितना महत्व है. महात्मा गाँधी ने भी कहा है धन का जीवन में बहुत महत्व है. धन के अभाव में बहुत से कार्य पूरे नहीं हो पाते. किन्तु जिस प्रकार धन के अभाव में बहुत सी बुराईयाँ होती हैं वैसे ही धन के आधिक्य में भी बुराई है क्योंकि अधिक धन अहंकार का कारण बनता है.
                   धनतेरस के दिन बहुत से लोग विशेष वस्तुएं  खरीदते हैं. किन्तु बहुत से लोग  नहीं खरीद पाते. वह मन मसोस कर रह जाते हैं. जिनके पास अधिक सामर्थ्य है वे ऐसे लोगों की कोई आर्थिक सहायता करके धनतेरस के दिन अपने धन से लोगों का सहयोग कर वास्तविक आशीष प्राप्त कर सकते हैं.
              धनतेरस का दिन हमें उपयोगी कार्यों के लिए धन बचाकर रखने तथा उस धन से जरूरतमंद व्यक्तियों का सहयोग करने की याद दिलाता है. हमारे धन से कई छोटे-बड़े दुकानदारों की आजीविका चलती है, अतः हमें अपने धन से जरूरत की चीज खरीदनी चाहिए किन्तु किवदंतियों के फेर में पड़कर आवश्यक कार्यों के लिए संचय किये गये धन को व्यर्थ नष्ट होने से बचाने का भी संकल्प लेना चाहिए.
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प्रतियोगी परीक्षाओं में अच्छे अंक कैसे प्राप्त करें:महेशचंद्र 'राही' का आलेख



प्रतियोगी परीक्षाओं में अच्छे अंक कैसे प्राप्त करें
                                                                                                                  -महेशचंद्र 'राही'

कोई दो प्रतियोगी जो बहुत अच्छे ढंग से सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा की तैयारी किये हों। उनमें से एक परीक्षा देने की तकनीक जनता हो; दूसरा यह तकनीक न जानता हो,एक ही साथ परीक्षा देने पर उनमें से परीक्षा की तकनीक जानने वाले प्रतियोगी को अपेक्षाकृत अधिक अंक प्राप्त होंगे। आप सोचते होंगे ऐसा कैसे हो सकता है?  हम कहते हैं हो सकता है। तकनीक तो दुनिया के हर काम में चमत्कार दिखा रहा है। 

निश्चित रूप से आप भी यह तकनीक जानना चाहेंगे। ठीक है हम आपको यह तकनीक बता रहे हैं। इसे जानिए और पूर्वाभ्यास ,छद्म परीक्षाओं के द्वारा इसका अच्छी तरह से अभ्यास कीजिये। आपको निश्चित रूप से इसका लाभ मिलेगा। 

यह तकनीक  परीक्षा के ठीक पूर्व और परीक्षा कक्ष में परीक्षा के दौरान आपके द्वारा की जाने वाली गतिविधियों के सम्बन्ध में है

प्रारंभिक परीक्षा देने की तकनीक- 
हम यह मानकर चलते हैं कि आप अच्छी तैयारी कर चुके हैं। आप अपनी परीक्षा पद्धति से भी अवगत हैं। कल आपको परीक्षा देने जाना है। आज १० बजे रात तक आप अपनी पढ़ाई हर हालत में बंद कर दीजिये। अपने  आपमें यह आत्मबल पूर्ण सोच बनाये रखिये कि आपने  बहुत अच्छी तैयारी की है और परीक्षा में आप सारे प्रश्नों को अच्छे से हल करेंगे । आपकी परीक्षा निकल ही जाएगी। माना यदि कुछ प्रश्न न भी बन पाए तो कोई मौत की सजा तो नहीं होने वाली है। अगली बार फिर से हम अपनी कमियों को सुधारते हुए अच्छी तैयारी करेंगे और अगले साल तो परीक्षा निकाल ही लेंगे।  

हमारा तात्पर्य परीक्षा के भय को आपको ऐसे जीतना है कि  वह आपको छू भी न पाए। परीक्षा की सारी सामग्री (जैसे पेन,पेंसिल,रबर व अन्य)आप पहले दिन ही  सहेज कर रख लेवें। पीने के पानी का भी आपको इंतजाम करना होगा। रात में इत्मीनान के साथ सुपाच्य भोजन कीजिये और सुबह में सही समय एलार्म लगा कर चैन के साथ सो जाइए। आत्मबल व बिना हड़बड़ाहट के गहरी नींद लीजिए। सुबह समय पर उठिये,नित्य क्रिया,स्नान,भोजन से निपट कर आधे घंटे पूर्व परीक्षा भवन पहुँच जाइये। साथ में परीक्षा सामग्री और पानी का बॉटल ले जाना न भूलें। साथ में पानी ले जाने की बात इसलिए कही गई है कि परीक्षा के  समय आप बीच-बीच में थोड़ा-थोड़ा पानी प्यास न लगने पर भी पीते रहें। इससे आपके दिमाग और शरीर में तरावट बानी रहेगी। और आपको अपेक्षाकृत अधिक सरलता से सही उत्तर सूझेंगे। अन्यथा पानी न पीने पर आपको सिरदर्द और मानसिक तनाव की परेशानी हो सकती है।

और हाँ, यदि आप परीक्षा भवन लेट पहुंचेंगे तो अफरा-तफरी और हड़बड़ाहट पैदा हो सकती  है,जो आपकी परीक्षा के लिए बेहद नुकसानदायक हो सकता है। और आपको भय और हड़बड़ाहट से हर हालत में दूर रहना है। आपको हमेशा पल-पल आत्मबल बनाए रखना है।

परीक्षा भवन पहुँच कर, नोटिस बोर्ड में देख कर, अपना कमरा नंबर व रोलनंबर ध्यानपूर्वक देखकर पता कर लें। साथ ही कमरा व रोलनंबर का लोकेशन पता कर लेवें। कमरा खुलने पर अपनी जगह पर जाकर बैठ जाएँ। ध्यान रखें कि कोई अवांछित सामग्री न रखें।

जब आपको इन्फॉर्मेशन सीट प्राप्त हो जाये तो बहुत सावधानी और इत्मीनान के साथ खानापूर्ति कर लीजिये। हर हालत में आपको गलती से बचना है। किसी भी समय अनावश्यक गलतियाँ आपके आत्मबल को तोड़ने का कारण बन सकती हैं और इससे आपको नुकसान भी उठाना पड़ सकता है। खानापूर्ति के बाद प्रश्न-पत्र प्राप्त होंगे।

प्रश्न-पत्र मिल जाने पर आप प्रश्न-पत्र को तीन चरणों में  हल कीजिये। क्रमशः प्रश्न क्रमांक एक से प्रश्नों को बहुत सावधानी पूर्वक पढ़िए और इत्मीनान के साथ उत्तर देते जाइये। कभी-कभी प्रश्न को सरसरी निगाह से देखने पर वह बहुत सरल दिखाई पड़ता है। और फट से लगता है कि इसका उत्तर 'अमुक ' नंबर का विकल्प है। आप फट से उस नंबर  कायम कर देते हैं। परन्तु दर असल वह उत्तर गलत होता है। ऐसा आपके अति उत्साह और अति उतावलेपन के कारण होता है। जब आप परीक्षा भवन से बाहर आते हैं तो आपको पता चलता है कि वह उत्तर गलत था। अतः आप बड़े धैर्य और सावधानी के साथ, और पूरा प्रश्न पढ़ने के बाद, और जरा सोचने के बाद ही उत्तर कायम करें।

प्रश्न हल करने का प्रथम चक्र: 

इस तरह से सरलता से जितने उत्तर आपसे आते जाएँ उन प्रश्नों को पूरा कर डालें। उन पर जरा-जरा सा पेंसिल से निशान लगाते जाएँ। परन्तु जिन प्रश्नों के उत्तर आपको बिलकुल न आएँ उन पर व्यर्थ में समय की बर्बादी बिलकुल ही न करें। अनुमान है कि आप एक घण्टे में  प्रथम चक्र पूरा कर डालेंगे। और यह भी अनुमान है कि इस बार आप लगभग 75-80 तक प्रश्न हल कर डालेंगे। अब आपके 20-25 प्रश्न अनुत्तरित बचे होंगे। जिन्हें आपको दूसरे चरण में हल करना है।

प्रश्न हल करने का द्वितीय चक्र: 

इस बार आपको बिना निशान वाले अनुत्तरित प्रश्नों पर जाकर उसी तरह से इत्मीनान के साथ प्रश्नों के उत्तर ढूंढना  है। इस बार चूँकि आपके 20-25 प्रश्न ही शेष रह गए हैं, और समय 1 घण्टे शेष है, अतः आपके अंदर पलने वाला अवांछित तनाव खत्म हो चुका होगा। और इस बार कुछ और प्रश्नों के सही उत्तर आपको सूझ सकते हैं। ऐसे उत्तरों को हल करके उन पर निशान लगा दें। हाँ, इस बार आपको एक नई तकनीक अपनानी है। वह यह कि जिन प्रश्नों के उत्तर आपको न आ सकें बड़ी सावधानी के साथ उनके ऐसे उत्तरों  को ढूंढ़िये जिनके बारे में लगे कि अमुक उत्तर तो बिलकुल नहीं हो सकता और उसे अलग करने के बाद आपके पास तीन विकल्प बचे होंगे। अब उनमें से भी एक नकरात्मक उत्तर को अलग कीजिये। फिर बचे हुए दो विकल्पों में से एक नकारत्मक उत्तर को अलग कीजिये। इस प्रक्रिया के बाद बचा हुआ उत्तर ही सही उत्तर होगा। उसे कायम कर दीजिये। इसी तरह से प्रश्न हल करते हुए आगे बढ़ते जाइये। जिन प्रश्नों के विषय में आपको कोई भी अनुमान न लगे उन्हें तीसरे चक्र के लिए छोड़ दीजिये। हल किये गए प्रश्नों पर उसी तरह से निशान लगाते जाइये। इस बार उम्मीद है कि आपके 10-15   प्रश्न और भी हल  जाएँ। जिससे  आपके पास 10-15 तक प्रश्न और आधा घंटे टाइम बचा होगा। और आपका प्रेशर बिलकुल ही ख़त्म हो चुका होगा।  


प्रश्न हल करने का तृतीय चक्र: 

अब आप प्रश्न-पत्र हल करने का तीसरे चक्र का कार्य प्रारम्भ कीजिये। इत्मीनान के साथ प्रश्नों को पढ़ते हुए उत्तर ढूँढिये। इस बार भी दूसरे चक्र की प्रणाली अपनाइये। यदि आपको किसी प्रश्न का उत्तर सूझ जाये तो उसे अंकित कर दीजिये। अन्यथा आप आन्सर शीट पर निगाह डालिये। उस पर जिस क्रमांक पर अधिक उत्तर अंकित दिखाई पढ़ें उसी क्रमांक को आप सारे अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर के लिए कायम कर  दें। यदि आपको उत्तर-पत्रक पर ऐसा कुछ समझ में न आए तो आप या तो क्रमांक 'बी' को या तो क्रमांक 'सी' को अनुत्तरित प्रश्नों के उत्तर के लिए अंकित कर दीजिये। सभी के लिए एक  ही क्रमांक का उपयोग कीजियेगा। भूल कर भी अलग-अलग क्रमांकों का उपयोग करना बेहद नुकसान दायक हो सकता है।  

परिणाम:

प्रश्नों के हल करने की इस प्रक्रिया से आपको आपके पास उपलब्ध ज्ञान के अधिकतम अंक प्राप्त होंगे। और आपके चयन के अवसर काफी बढ़ जायेंगे। यदि आप यह तकनीक नहीं अपनाते तो आपके अंक बहुत काम रहेंगे।
प्रेरणा: 
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की यह कविता अवश्य ध्यान में रखें-

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है ।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है ।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है ।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में ।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।
असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो ।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम ।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। 
लेखक: महेशचंद्र राही,
तक्षशिला साहित्य पब्लिकेशंस,आमडीह,
ब्योहारी,जिला-शहडोल (मध्यप्रदेश)

लेखक के सम्बन्ध में: आप ख्यातिलब्ध साहित्यकार हैं. आपकी  बहुत-सी रचनाएँ देश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं. आपको इस क्षेत्र में बहुत-सारे पुरूस्कार व  सम्मान प्राप्त है. वर्तमान में आपके द्वारा हिन्दी फिल्मों की  पटकथा लिखी जा रही है तथा आपके निर्देशन में फ़िल्में तैयार की जा रही हैं. इसके साथ ही आपके मार्गदर्शन में तक्षशिला साहित्य पब्लिकेशन के द्वारा विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए पुस्तकों का प्रकाशन किया जा रहा है. यह पुस्तकें इण्डिया मार्ट और अमेजन जैसी प्रतिष्ठित साईटों पर उपलब्ध है. प्रस्तुत आलेख उनके ब्लॉग से साभार लिया गया है. इस सम्बन्ध में और  अधिक लेख-सामग्री के लिए  कृपया उनके ब्लॉग में जाने के लिए यहाँ क्लिक करें.

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