शनिवार, अक्टूबर 26, 2019

हर घर में दीवाली हो:सुरेन्द्र कुमार पटेल की कविता



हर घर में दीवाली हो

सुरेन्द्र कुमार पटेल 

दीपों की सजे कतार,
हर घर में दीवाली हो।
उजास हृदय हो सबका,
सबके घर में खुशहाली हो।1।

हर दिया को तेल मिले,
हर दिया में तमहरणी बाती हो।
ऐसी अमावस्या हर रोज रहे,
जो अंजुली में भर प्रकाश लाती हो।2।

रह न जाए मन में गांठें,
खुले, ऐसे जैसे पटाखा सुतली वाला हो।
प्रमुदित करे आपकी शुभकामना
जैसे कहता कोई मुरलीवाला हो।3।

पूजा हो लक्ष्मी की पुरजोर,
समदृष्टि न ओझल होने वाली हो।
वंदन, अभिनंदन आगंतुक लक्ष्मी का
वह मन को न बोझल करने वाली हो।4।

दीप-दीप को दे सम्बल,
कहता जले चलो, जले चलो।
मानव सीखेगा इन दीपों से
कहना बढ़े चलो, बढ़े चलो।5।

निज अंधकार मिटाने खातिर,
बाती दूजे को सुलगाने वाली हो।
तूफानों से करे नैन मटक्का,
वह संकट में मुस्काने वाली हो।6।

एक दीप जले देवालय में,
वह अन्धविश्वास मिटाने वाली हो।
जाति-धर्म के झगड़ों को ललकारे,
और मानवता को उठाने वाली हो।7।

एक दीप जले कोषालय में,
एक दीप जहाँ धानों की बाली हो।
एक दीप श्रम के श्वेद बिंदु पर,
और एक दीप जहाँ से सीमा की रखबाली हो।8।

बच्चों के हाथ लगे फुलझड़ियां
उनकी सभा कलरव-गुंजन करने वाली हो।
हर हाथ में हो माखनरोटी, और एक दीप
जो क्षुधा-रुदन का भंजन करने वाली हो।9।

अमावस से आच्छादित आकाश तले,
तारों की बारात उतरने वाली हो।
ले ज्ञानदीप कर में इस दीपोत्सव,
शिक्षा स्वयं उर में उतरने वाली हो।10।
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