भारतरत्न लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल को अखंड भारत के निर्माण और देशी रियासतों के एकीकरण के लिए गर्व से याद किया जाता है. उन्हें भारत का बिस्मार्क कहा जाता है किन्तु सरदार पटेल ने जो कार्य भारत में किया वह बिस्मार्क के किये गए कार्य से कहीं अधिक महत्वपूर्ण था. सरदार पटेल ने बिना किसी खूनी क्रांति के भारत के देसी रियासतों के एकीकरण का कार्य किया. जबकि बिस्मार्क के एकीकरण का कार्य हिंसा पर आधारित था. यह जटिल कार्य उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण ही संभव हो पाया.
यथार्थवादी चिन्तन पर आधारित सरदार पटेल का व्यक्तित्व इतना विराट है कि उसे शब्दों में समेटना सूरज को दीपक दिखाने के समान है. वह कुशाग्र बुद्धि तो थे ही उनमें पर्वत के समान अचल-अटल निर्भीकता भी थी. मन और हृदय से उठने वाली क्षणिक भावनाएं उन्हें उनके निश्चित किये गये मार्ग से डिगा नहीं सकती थी परन्तु जब परहित और राष्ट्रहित की बात आई तो बड़ा से बड़ा त्याग भी उनके लिए तिनके से तुच्छ महसूस हुआ. इस विराट व्यक्तित्व का ही चमत्कार था कि आज हमें विशाल भारत के दर्शन संभव हो पा रहा है. सरदार पटेल न केवल यथार्थवादी थे बल्कि वह एक बहुत अच्छे स्वप्नदृष्टा भी थे परन्तु उनका स्वप्न कोरा दिवा स्वप्न न होकर सच्ची दूरदर्शिता पर आधारित था.
गरीब किसान परिवार में जन्में सरदार पटेल ने गरीबी के आगे घुटने नहीं टेके. उन्होंने 22 वर्ष की अवस्था में स्वाध्याय के दम पर अपनी स्कूली शिक्षा पूर्ण की तो वहीं स्वाध्याय के ही दम पर उन्होंने जिला अधिकारी जैसे पद की परीक्षा दी और अव्वल प्रथम स्थान प्राप्त किया. आज लोग बेरोजगारी की असुरक्षा से भय खाकर और पद मोह में फंसकर अपनी रूचि और इच्छाओं का समर्पण कर आजीवन एक सेवा में रहकर दमघोटू जीवन जीते रहते हैं लेकिन सरदार पटेल को जिला अधिकारी जैसा पद भी अपने मोहपाश में बाँध नहीं सका और उन्होंने अपनी रूचि के पेशे को प्रमुखता देते हुए उन्होंने 36 वर्ष की अवस्था में जब लोग अपने पेशे की संरचना में स्थायी रूप से बंध जाते हैं, उन्होंने लन्दन जाकर बैरिस्टर की पढाई करने का निश्चय किया. पढ़ाई और स्वाध्याय के प्रति लगातार मोहभंग हो रहे युवावर्ग के लिए उनसे प्रेरणा लेने की आवश्यकता है.
किन्तु उनका यह स्वप्न तत्काल पूरा नहीं हो सका क्योंकि उनके पासपोर्ट में उनका संक्षेप नाम लिखा हुआ था जिसके कारण उनके बड़े भाई ने स्वयम लन्दन जाकर बैरिस्टर की पढाई करने की इच्छा व्यक्त की. सरदार पटेल ने अपना वीजा और पासपोर्ट अपने बड़े भाई विट्ठल भाई को देते हुए उनके वहां जाने का आर्थिक प्रबंध भी किया. इसके 3 साल बाद में सरदार पटेल बैरिस्टर की पढाई करने लंदन गये जहाँ उन्होंने 36 माह का पाठ्यक्रम 30 माह में पूर्णकर एक कीर्तिमान रच डाला.
सरदार पटेल का व्यक्तित्व इतना विराट था कि वह बहुत जल्दी किसी और से प्रभावित नहीं होते थे. इसका एक उदाहरण यह है कि जब अहमदाबाद में महात्मा गाँधी जी लोगों को अपना संबोधन देने आए तो वह उनका संबोधन सुनने तक नहीं गये. यह बात अलग है कि संयोग ऐसा था कि आयोजकों ने खुद गाँधी को उस क्लब में ले आए जहाँ सरदार पटेल अक्सर जाया करते थे और उसके बाद सरदार पटेल आजीवन गाँधी जी के सच्चे अनुयायी और कांग्रेस के समर्पित सिपाही के रूप में खड़े रहे.
एक बार वे जो संकल्प कर लेते, उस पर अंत तक डंटे रहते. फिर चाहे वह खेडा का सत्याग्रह आन्दोलन हो या बारडोली का आन्दोलन जिसमें वहां की महिलाओं ने उन्हें सरदार की उपाधि दी.
सरदार पटेल ने समस्याओं को चाहे वे जितनी जटिल रही हों, स्वयं पर हावी नहीं होने दिया. नमक कानून तोड़ने के लिए ग्रामीणों को उकसाने के आरोप में उन्हें 7 मार्च, 1930 को बम्बई सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और गुप्त रूप से उन्हें एक विशेष ट्रेन से साबरमती से यरवदा जेल में डाल दिया गया. उन्हें खाने में एक दिन के अन्तराल में ज्वार का दलिया और ज्वार की रोटी दी जाती. उन दिनों वे दांत के दर्द से पीड़ित थे, जब उनके किसी शुभचिन्तक ने उनसे पूछा कि उन्हें ज्वार की रोटी खाने में तकलीफ नहीं होती तो उन्होंने इसका उत्तर हँसते हुए दिया,“ओह, मैंने उसे पानी में भिगोकर तोड़ दिया और बड़ी आसानी से खा लिया.” उनकी पत्नी की मृत्यु से जुड़ी घटना की भी अक्सर चर्चा की जाती है. सरदार पटेल की पत्नी झावेर बा कैंसर से पीड़ित थीं. उन्हें साल 1909 में मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. अस्पताल में ऑपरेशन के दौरान ही झावेर बा का निधन हो गया. उस समय सरदार पटेल अदालती कार्यवाही में व्यस्त थे. कोर्ट में बहस चल रही थी. तभी एक व्यक्ति ने कागज़ में लिखकर उन्हें झावेर बा की मौत की ख़बर दी.पटेल ने वह संदेश पढ़कर चुपचाप अपने कोट की जेब में रख लिया और अदालत में बहस जारी रखी जब अदालती कार्यवाही समाप्त हुई तब उन्होंने अपनी पत्नी की मृत्यु की सूचना सबको दी.
सरदार पटेल ने वह किया जो देश और समाज को जरूरत थी. यदि ऐसा करने में उन्हें अपनी इच्छाओं की तिलांजलि देनी पड़ती तो वह पीछे नहीं हटते. सरदार पटेल का वकालत पेशा अच्छा चल रहा था और वे राजनीति में जाना नहीं चाहते थे किन्तु जब महात्मा गाँधी ने उन्हें सक्रिय राजनीति में जाने की सलाह दी तो वे अहमदाबाद नगरपालिका का चुनाव जीतकर अहमदाबाद नगरपालिका प्रमुख बने.
सरदार पटेल ने सम्प्रदाय आधारित राजनीति को कभी स्वीकार नहीं किया. वे अंग्रेजों की भारतीयों में सम्प्रदायिक फूट डालने की साजिश से बाकायदा चौकन्ने थे और उन्होंने साम्प्रदायिक निर्वाचन पद्धति को कभी स्वीकार नहीं किया. सरदार पटेल सत्ता के लिए लालायित नहीं थे. वे एन-केन-प्रकारेण सत्ता प्राप्त करने के पक्ष में नहीं थे. बल्कि उनके मन में सम्पूर्ण भारत के लिए सम्पूर्ण आजादी का स्वप्न बस रहा था. क्रिप्स मिशन जो 1942 में भारत आया उसका उन्होंने विरोध किया क्योंकि उससे देसी रियासतों के एकीकरण का स्वप्न पूरा नहीं होता.
सरदार पटेल की संगठनात्मक शक्ति अद्भुत थी. जब-जब आन्दोलन हुए, सरदार पटेल ने पूरे देश में भ्रमण कर कांग्रेस पार्टी के उद्देश्यों को लोगों तक पहुँचाया. यह कहना अतिशयोक्ति न होगी कि कांग्रेस को मजबूती के डोर में बांधे रखने में सरदार पटेल का ही हाथ था. महात्मा गाँधी एक ऊर्जावान शिक्षक थे तो सरदार पटेल एक अनुशासित किन्तु दृढ़ अनुयायी.
अवसर को अपने पक्ष में करने का उनमें बखूबी गुण था किन्तु वे अवसरवादी कतई नहीं थे. ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस पार्टी और सरकार के मंत्रिमंडल से पूछे बिना भारत को द्वितीय विश्वयुद्ध में शामिल घोषित कर दिया था. इसका सरदार पटेल ने जमकर विरोध किया. सरदार पटेल का मानना था कि भारतीयों की इच्छा जाने बिना भारत के विश्वयुद्ध में शामिल करने से भारत के लोगों का अपमान हुआ है. तथापि वे चाहते थे कि ब्रिटिश सरकार भारत को स्वतंत्र घोषित करे और तब भारतीय स्वनिर्णय के आधार पर ब्रिटेन का सहयोग करने के लिए तैयार हैं.
सरदार पटेल ने महात्मा गाँधी की सदिच्छा का हमेशा सम्मान किया किन्तु सरदार प्रत्येक निर्णय व्यापक हित को ध्यान में रखकर ही लेते थे. कैबिनेट मिशन योजना 1946 के अंतर्गत निर्मित संविधान सभा में मुस्लिम लीग के न शामिल होने के परिप्रेक्ष्य में लन्दन में आयोजित बैठक में वे नहीं गए. क्योंकि अब उनका यह दृढ़ निश्चय हो गया था कि भारत की आजादी कांग्रेस और मुस्लिम लीग की एकता की शर्त पर नहीं होगी. बल्कि अब तो अंगेजों को बिना शर्त भारत से जाना होगा.उन्होंने मुस्लिम लीग को आड़े हाथों लेते हुए कहा,”... वह चाँद के लिए रो रहा है, सच्चाई यह है कि गुलामों के पास न तो पाकिस्तान है और न ही हिंदुस्तान.”
सरदार वल्लभ भाई पटेल सभी को साथ लेकर चलने के पक्ष में थे. किन्तु तुष्टिकरण के पक्ष में नहीं थे. वे चाहते थे कि मुस्लिम लीग संविधान सभा में शामिल हो किन्तु वह अलग पाकिस्तान का राग अलापना बंद कर दे. सरदार पटेल के ही प्रयासों से संविधान सभा में अलग-अलग पार्टियों के लोगों का योगदान प्राप्त हो सका.तथा कुछ ऐसे लोग भी संविधान सभा में शामिल हुए जो किसी पार्टी से नहीं थे.
अक्सर भारत विभाजन को लेकर तत्कालीन नेतृत्व को कोसा जाता है. यह सरदार पटेल के व्यक्तित्व की भी परीक्षा थी. अंग्रेज हमेशा की तरह यह चाहते थे कि दो सम्प्रदायों के विवाद में भारत की स्वतंत्रता की मांग लंबित रही आए. किन्तु अब वक़्त और अधिक इंतजार करने का नहीं था. इसलिए शेष भारत के नवनिर्माण का सपना संजोकर भारत विभाजन को स्वीकार किया गया.
इसके बाद देशी रियासतों के एकीकरण में सरदार पटेल ने जो निष्ठा, परिश्रम, कूटनीतिक सूझबूझ और न झुकने वाला जो व्यक्तित्व प्रस्तुत किया, उसके कारण सरदार पटेल को न केवल देश बल्कि अन्तर्रष्ट्रीय स्तर पर उनको याद किया जाता है. उन्होंने एक अखंड और विशाल भारत के अपने सपने को देशी रियासतों के सामने रखा. राजाओं और नवाबों की असुरक्षा का भय दूर किया उनके अधिकारों के प्रति उन्हें आश्वस्त किया और इस प्रकार सरदार पटेल के विराट व्यक्तित्व के सामने देशी रियासतें नतमस्तक होती हुयीं विशाल भारत के सपनों में खुद को खोने के लिए ख़ुशी-ख़ुशी राजी हो गयीं. जो समस्याग्रस्त रियासतें थीं-हैदराबाद, जूनागढ़ और जम्मू-कश्मीर वे भी उनके सूझ-बूझ से भारत का हिस्सा बन गयीं.
सरदार पटेल के प्रधानमंत्री न बनने का मलाल देशवासियों को सदा रहेगा किन्तु उन्होंने अपना प्रस्ताव केवल महात्मा गाँधी के कारण वापस नहीं लिया बल्कि उस समय कोई गतिरोध उत्पन्न हो और उनके सपनों का भारत न बन सके, वे यह चाहते नहीं थे. उनके व्यक्तित्व में त्याग का यह महानतम गुण ही था जिसके कारण भारत के प्रधानमन्त्री का पद उन्हें तिनके से भी अधिक तुच्छ लगा. आज चाहे राजनीतिक संगठन हों, सामाजिक संगठन हो या घर-परिवार हों छोटे-छोटे पदों के लोभ में लोग संस्था से अलग हो जाते हैं अलग संगठन बना लेते हैं. सरदार पटेल ने कांग्रेस का सिपाही होकर और महात्मा गाँधी का सच्चा अनुयायी होकर वह किया जिसमें कांग्रेस और भारत का हित था. भारत का प्रधानमन्त्री न होते हुए भी सरदार पटेल ने भारत को एकीकृत करके विश्व-पटल पर स्थापित कर दिया.
उनके अनुशासित, दृढ़प्रतिज्ञ, अद्भुत और विराट व्यक्तित्व के कारण ही उन्हें "लौहपुरुष" कहा जाता है.
उनके अनुशासित, दृढ़प्रतिज्ञ, अद्भुत और विराट व्यक्तित्व के कारण ही उन्हें "लौहपुरुष" कहा जाता है.
भारत की आजादी और उसके बाद भारत के एकीकरण में किये गये उनके योगदान के कारण उनके नाम का सितारा स्वर्णिम भारत के आकाश में सदैव चमकता रहेगा.
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Nice
जवाब देंहटाएंअच्छा आलेख सर
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंहम सब को एक स्मरण करना चाहिए।
जवाब देंहटाएंसुंदर आलेख
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