बुधवार, जून 30, 2021

बरसात पर मनोज कुमार चंद्रवंशी की एक अच्छी कविता

बरसात का मौसम

रिमझिम - रिमझिम बरसो घनश्याम,
प्यासी धरती माँ  का प्यास मिटाओ।
नन्हा सुप्त बीजअंकुरित हों खेतों में,
प्रकृति की  गोद में हरियाली लाओ॥

धरा  का  तीक्ष्ण  तपन  मंद हो गई,
सुखद  बरसात का मौसम आने से।
सर्व चराचर शीतलता की अनुभूति,
चहुँ ओर  काली घटा  छा जाने से॥

भीषण उष्णता का हुआ गृह गमन।
धरा  में  चहुँ  ओर  हरियाली छाई,
प्रकृति  परिदृश्य  अति मनभावन॥

काली   घटाओं  के  तीव्र गर्जना से,
कानन  में  नाचे   मोर  पंख  पसार।
द्रुम डाल पर कलियाँ प्रस्फुटित हुई,
विहग  फुदक  रहें हैं वृक्षों के डार॥

उमड - घुमड  कर  काले  मेघ चले,
शीतल,  मंद,  सुगंध  चले  पुरवाई।
टप टिप-टप टिप धरा में मेघ बरसे,
सकल वसुंधरा में हरियाली छायी॥

हरित - हरीतिमा धरा  की  परिधान,
कृषक खेतों में श्रम साधना करतें हैं।
खग,मृग,मोर, पपीहा, मुदित होकर ,
कानन में स्वच्छंद विचरण करते हैं॥

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                 ✍रचना
         स्वरचित एवं मौलिक
          मनोज चन्द्रवंशी मौन
बेलगवाँ जिला अनूपपुर मध्यप्रदेश 

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