वृक्ष (चौपाई)
पादप जगत हरे परितापा।
मिटे दुख अरु मिटे संतापा॥
विटप दल लता महि श्रृंगारा।
तरु तृण मनुज प्राण आधारा॥
तरुवर भूषण बहुत सुहाई।
बेला हरित पर्ण मन भायी॥
झुरमुट कानन दल मन मोहा।
सुरम्य वन प्रसून दल सोहा॥
पादप जगत जीव रखवारे।
कानन तरु दल प्रानन प्यारे॥
तरुवर सरस सुहृद फल दीन्हा,
सकल अंग प्रमुदित कर दीन्हा॥
मिलकर एक एक वृक्ष लगावा।
मेदिनीआँचल अति मन भावा॥
अवनि हरीतिमा अति सुहाई।
रोपित तरु जीवन सुखदाई॥
तरु सलिलअरु समीर प्रदाता।
सकल चराचर हरते त्राता॥
हरित वृक्ष सौ पुत्र समाना।
करे बखान"मनोज" सुजाना॥
कानन तरु दल प्रानन प्यारे॥
तरुवर सरस सुहृद फल दीन्हा,
सकल अंग प्रमुदित कर दीन्हा॥
मिलकर एक एक वृक्ष लगावा।
मेदिनीआँचल अति मन भावा॥
अवनि हरीतिमा अति सुहाई।
रोपित तरु जीवन सुखदाई॥
तरु सलिलअरु समीर प्रदाता।
सकल चराचर हरते त्राता॥
हरित वृक्ष सौ पुत्र समाना।
करे बखान"मनोज" सुजाना॥
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रचना
स्वरचित एवं मौलिक
मनोज कुमार चन्द्रवंशी
बेलगवाँ जिला अनूपपुर मध्यप्रदेश
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