मंगलवार, जून 29, 2021

फगुनाहटी बघेली कविता : अशोक त्रिपाठी 'माधव'



फगुनाहटी बघेली कविता 

सनन्-सनन् सुर्रा चलय, बिरबा झारैं पात।
लगत झकोरा हिय कंपै,फगुनाहटी कय बात।।

कबौ निचंदर कबौ बदरिया,कबौ बरसि चंहदर्रा।
कबौ धुंध पुनि कबौ बड़ेबर,कबौ बहै खरभर्रा।।

महुआ पत्ता झारि रहा है,बौर आम मा आई।
गय पियराय उन्हारी सगली,बहै लाग पुरबाई।।

गेहूं है गदरान चना अउ अरहर मसुरी साथय।
गा झुराय सरसबा लगे हां माहू झोंथय-झोंथय।।

सोंध महक भुंइया से आबय मादक बहै बयारी।
बूढ़ सयान सबय एंह रित मा मारि परैं हुलकारी।।

गा सिहिलाय मौसमउ खासा सबके मन उमहान।
लूमरि-डांगरि सब कुलकारैं हां खासा बउरान।।

सूर मकरगत तिल-तिल बाढ़ैं घट का बहुंकय लमहरि।
सांझ सकारे नगदि जड़ाबय कसमसाय दिन दुपहरि।।

पाकत देख उन्हारी खेतिहर देउता -पितर मनाबय।
पाथर अउर दौंगरा के भय जगि के रात बिताबय।

कोइली कुहुक करेजा सालय बिरहिन के मन माहीं।
जेकर प्रियतम छांड़ि बसे हां जाय बिदेसे माहीं।।

सिहरै देहिंया लगतय सुर्रा करै करेजा घायल।
मांग सिन्दुरबा अंगरा लागय बैरी करधन पायल।।

फाग-ददरिया परै जो काने बजुर बान अस लागय।
बसे जाय बालम परदेसय सुधि कय राति मा जागय।

मादक महिना फागुन आबा रितु बंसंत रितुराजा।
माधव मगन निरखि के सोभा हरसित सबय समाजा।।

सब जिउ-जंत खुसी से नाचैं मिलै पेट भर दाना।
फगुनहटी परकित कय सोभा को कइ सकै बखाना।

रचना:
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