बचपन की बहार : रिश्तेदारों का प्यार
बात जुलाई 1985 की है, जब खेलते खेलते प्राथमिक पाठशाला कराहिया ( रीवा जिले के
ग्राम बारौ का एक टोला ) पहुंच गया, गणेश पंडित जी स्कूल के फरिकान में पढ़ा रहे थे बच्चों को। मुझे देखा तो इशारे से पास बुलाया (मेरा घर मात्र 200 मीटर दूरी पर था
और पंडित जी कभी कभी घर आते थे, दादा जी के पास
दरबार करने, इसलिए पहचानते
थे), पंडित जी के पास गया तो
उन्होने प्यार से एक सवाल पूंछा, उत्तर सुनकर उनको लगा कि मै पढ़ने में ठीक हूं
(हालांकि अवस्था में कुछ छोटा था ), तो उन्होने बोला कि नाम लिख लेता हूं , जाकर दादा जी से पूछकर आओ, कितने साल के हो?? दौड़ते हुए गया और लौटकर वापस आया , उत्तर मिला था - 5 साल। और इस
प्रकार मेरी प्रवेश पाने की औपचारिकता
(admission
ceremony complete) पूर्ण हुई और स्कूली शिक्षा आरंभ। अब सोचता हूं तो ऐसा
लगता है कि मेरे लिये वो आत्म निर्भरता की पहली सीख थी।
बचपन के उस
दौर में हमारे बैग में पाठ्य पुस्तकों से ज्यादा जरूरी चीज :
बैठने की टाट पट्टी या पुरानी बोरी हुआ
करती थी , बारिश के मौसम में यूरिया
/ डीएपी की बोरी बड़ी काम की होती,
क्यूंकि उसे अगर हल्के गीले फर्श में भी बिछा
दें तो भी पैंट बच जाता था।😁
समय को पंख लग गए
और 1990 में 5 वर्ष की
प्राथमिक शिक्षा पूरी करके अपने ही गांव की जूनियर हाई स्कूल में दाखिला मिल गया ,
तब हम भाई बहन, डेढ़ - दो किलो
मीटर का रास्ता पैदल ही तय करते और उस समय हमारा सपना था कि खुद की साइकिल हो
स्कूल जाने की तो दोस्तों के सामने धाक जम जाए 😁
खैर सपने कहां पूरे होते हैं इतनी जल्दी ,
हमारे भी नहीं हुए । तीन साल की जूनियर हाई
स्कूल की पढ़ाई पूरी करके 1993 में मॉडल स्कूल
रीवा पहुंच गया ।
जब गांव से अपना
सामान लेकर रीवा के लिए निकलना था , तब पहली बार अपने रिश्तेदारों के लिए थोड़ा भावुक हुआ , लेकिन शहर जाने की खुशी में , वह बिछड़ने का भाव धूमिल हो गया। लेकिन जब शहर में ऊब जाता
हूं तो अक्सर रिश्तेदारों को याद करके भावुक हो जाता हूं , आज भी सुबह कुछ ऐसा ही हुआ और मन के भाव साझा 🤝करके सहज महसूस कर रहा हूं ।
भौतिकवाद में
व्यक्तिगत धन संग्रह करने की होड़ सी लगी है, इस होड़ में काफी कुछ उथला सा रह गया है, चाहे वो दोस्ती हो या रिश्तेदारी । ऐसा नहीं है
कि हम बुरे हैं, बस बात सिर्फ
इतनी है कि हमने गहराई में उतरना छोड़
दिया है, इस लिए शायद न गहराई से
खुश होते हैं और न ही हमारे दुख में गहराई है , बड़ी ही सरलता से कह देते हैं :जाने दो (Lets Move
On )
तीन महीने के
एकांतवास में गहराई में उतरने के अवसर ज्यादा मिले, विश्लेषण किया
तो रिश्तेदारों के विषय में एक शानदार बात मालूम हुई और आपसे
साझा करके बहुत अच्छा लग रहा है: मामा और
मौसी ऐसे व्यक्ति हैं, जिनके शरीर के हर
एक कण मेरी मां से मिलते जुलते हैं
क्यूंकि ये दोनों मेरी मां के सहोदर हैं।
ठीक ऐसे ही चाचा और बुआ, वैसे ही बने हैं ,जैसे हमारे पिता जी बने थे। अब मेरे
पिता जी का शरीर इस दुनिया में नहीं है, भावुक होकर अगर मै पिता जी को भौतिक रूप में छूना चाहूं तो मेरे लिए सहज उपलब्ध
हैं , लेकिन ये बात पिता जी के
जाने के 5 वर्ष बाद समझ आ रही है। 🙏
बरसात में जब
चाचा जी लोग खेत जाते तो कभी कभी मुझे भी ले जाते और मोंगा कूदते समय गोद में
उठाकर जंप ... ..शायद वो जोखिम उठाने का पाठ पढ़ा रहे थे , थैंक यू चाचा जी, आई लव यू❤️
बचपन में जितने
मीठे बिस्किट मेरी बुआ और मौसी ने खिलाए,
लगता है अब वो बिस्किट
बनते ही नहीं , आई लव यू मौसी , आई लव यू फुफू ❤️
बचपन में मामा जी
जब मां को बुलाने आते तो (छोटा होने की वजह से मुझे साथ जाने का अवसर मिलता ),
रास्ते में एक बीहड़ नदी पड़ती और उसे पार करते
समय मामा जी मुझे कंधे पे बिठा लेते थे, बचपन की उस राइड में जो खुशी मिली थी, वो अब इमैजिका और वाटर वर्ल्ड जैसी जगह पर कहां मिलती है । हालांकि मेरे एल्बम
में मामा जी के कंधे में बैठने की सेल्फी नहीं है, पर उनके प्यार की गहराई ने
मेरे मन में उस तस्वीर को इतने गहरे रंग दिए हैं कि अगले जन्म में भी वो
रंग हल्के नहीं पड़ेंगे 🙏 मामा जी : आई लव
यू मामा जी ❤️
अपने भांजे को
प्यार करने की जो ट्रेनिंग मामा जी ने दी है, उससे बेहतर ट्रेनिंग की मै कल्पना भी नहीं कर सकता ।
हालांकि मै भी दीदी के बच्चों को बहुत प्यार करता हूं, पर गहराई थोड़ी कम जान पड़ती है, लेकिन अब ये भाव जागने के बाद, मुझे लगता है कि
मै एक बेहतर मामा बनूंगा , आई लव यू इशू ,
आई लव यू मन्नू❤️: बेटा , तुम दोनों मेरे मामा जी से मिलकर उनको थैंक यू
जरूर बोलना ।
ऐसा लगता है कि
अपनी हैसियत वाले दोस्त खोजते खोजते, हम अपने जैसे
शरीर और आत्मा वाले रिश्तेदार भूल गए हैं 🤔
जैसे हमारे मन की कई परत हैं, ठीक वैसे ही रिश्तों की , जितने गहरे उतरेंगे उतना ही blissfulness feel करेंगे। 13 वर्ष हो गए दादा जी ने शरीर छोड़ दिया था। जब उनकी छोटी बहन से मिलता हूं तो खुद को दादा जी के बहुत करीब पाता हूं। दादी जब मेरी गले लगाकर रोने लगती हैं, मेरी हथेली चूमती हैं तो जो अनुभूति होती है, उसे व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं हैं 🙏आई लव यू दादी ❤️
आपका
-जनार्दन
मेरे दादा जी की छोटी बहन , मेरी सबसे प्यारी दादी |
आपका
-जनार्दन
Ⓒजनार्दन
नवी मुंबई
Is chakachaundh vali duniya me har rishton ki ahamiyat samjhna apne aap me ek safalta hai.bahut kuch seekhna hai apse...
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार भाई 👌👌🙏
जवाब देंहटाएंएक एक रिस्तो को जिस तरह से आपने याद कर उनकी अहमियत को सामने रखा है आज की पीढ़ी को जो सिर्फ बहुत सीमित लोंगो को ही अपना रिस्तेदार मानते है उनके लिए एक सीख है
जवाब देंहटाएंआप के बचपन के संघर्ष से प्रभावित हूं 🙏🙏
जवाब देंहटाएंरिश्तों के खजानों की अनमोल यादें।।जीने की ललक कोई आपसे सीखे।।।बहुत खूब भाई साब।।
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी यादे है भैया आपकी, जान के बहुत अच्छा लगा और बहुत कुछ सीखने को मिला ।
जवाब देंहटाएंहालांकि मेरे एल्बम में मामा जी के कंधे में बैठने की सेल्फी नहीं है, पर उनके प्यार की गहराई ने मेरे मन में उस तस्वीर को इतने गहरे रंग दिए हैं कि अगले जन्म में भी वो रंग हल्के नहीं पड़ेंगे 🙏 बहुत अच्छी तरह वव्यक्त किया, एक उम्दा लेख👍
जवाब देंहटाएंbahut sunder abhivyakti hai janardan. apni jado se jude rehne wala vraksh hi mazboot bana rehta hai aur jeevan ke har jhanjhavaat jhel pata hai. tumhare bheetar ek bahut pyara insaan hai, jisne apne balswaroop ko zinda rakha hai ab tak, aur yahi tumhari visheshta hai aur taqat bhi. lage raho.
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सर।। आपसे काफी कुछ सीखा है।।
हटाएंबहुत ही सुन्दर तरीके से चित्रण किया है आपने, आपकी सारी बातें अनुभूत हो गई मन में।
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनाएं सर।
दिल छू लिया आपने ।🙏
Nice bhaiya ji
जवाब देंहटाएंBahut hi badhiya bhaiya ji
जवाब देंहटाएंबचपन की यादें वर्तमान में ऊर्जा भर देती है।सुंदर प्रस्तुति करण।यकीनन तुम्हारे अंदर एक लेखक विद्यमान है।
जवाब देंहटाएंVery impressive
जवाब देंहटाएंKitne sahaj bhav se aapne ullekh kiya hai jeevan k un palon ko jinhe log taumra yaad karte Hain..Ati Sundar..Keep continue Sir..
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआप अतुलनीय हैं, आप में एक अलग बात है, जो आप को भीड़ से अलग करती है 🙏
जवाब देंहटाएंSir, बहुत ही सुन्दर चित्रण आपने किया है,
जवाब देंहटाएंBeautifully explained Sir,how being slef reliant at the age of 5 years, and got an admission in school for himself is so good. Later on, walking kilometres and going school without being excusey is all about determinations, which is why there is a sweet result in your life today. Beautifully explained about, importance of taking risks in the life and sweetness of relations are just amazing. A wonderful and success story came through a long journey. Thank you Sir for sharing with us.
जवाब देंहटाएंजिन चुनौतियों का सामना करके आप ने मक़ाम हासिल किया हैं वाह बहुत ही कठिन हैं, लेकिन इस चुनौती भरे सफर मेँ शायद ही आपसे कुछ ना देखे हो क्योंकि गाँव के बचपन बिताना वहा की धुल मेँ गाय भैस के बछड़ो के साथ खेलना आज के मोबाइल गेम से कम नहीं हैं! धान के पुआल मेँ कूदना ऊपर से नीचे आना किसी राइड से कम नहीं होता! बचपन की इन्ही यादो के साथ अगर आप दुनिया के किसी कोने मेँ पहुंच जाये गाँव नहीं भूलता!
जवाब देंहटाएंAap ki kahani ko padte samay aisa lag raha tha jaise ham apni kahani likh rahe Hain I miss those days thanks u remember everyone who lived in 1990
जवाब देंहटाएंBut in present everywhere is changing
बेशक आपमें मे उम्दा काबिलियत है मार्मिकता के साथ जोड़कर जो प्रस्यूतिकरण आपने किया कबीले तारीफ ...बहुत ही शानदार लेख
जवाब देंहटाएंनिःशब्द हू भैया मैं मैं ये लेख पढ़ के ।
जवाब देंहटाएंसर आपने बहुत ही सुंदरता से जो बीते समय की याद तरोताजा कर दिए !
जवाब देंहटाएंSo touching sir ... Felt the warmth of feelings in each & every line..
जवाब देंहटाएंLearnt a lesson of valuing the relations so that no regrets remain thereafter..
कैसे भूला जा सकता है, बचपन का अतुलित आनंद ।।
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर मार्मिक चित्रण आप ने प्रस्तुत किया है परेणादायक है
जवाब देंहटाएंBahut aatmiyata ka varanan kiya hy janardan sir apsay milany ka bahut abhilasi hu apka chota bhai hitesh Patel.... Thx you Vernice
जवाब देंहटाएंआप सभी के ब्लॉग में पधारने और अपनी टिप्पणियों से लेखक को प्रोत्साहन देने का बहुत-बहुत शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंभैया, बहुत ही भावुक कर देने वाली कहानी है आपकी और मुझे लगता है कि जब गांव पहुंचते है तब हमें वो सारे ही रिश्ते सहज ही याद आने लगते है, गांव में प्यार जो इतना मिलता है ।
जवाब देंहटाएंइस शहर कि चकाचौंध में हम रिश्ते नाते यहां तक कि अपनों को भी भूल से गए हैं।
बहुत सुंदर भैया
17 जून 2020 , शाम 7 बजे
जवाब देंहटाएंदोस्तों,
15 जून को मैंने अपने जीवन के उन पलों को पंक्तियों में पिरोया था , जिनसे ये जाहिर होता है कि रिश्तेदारों ने अपने लाड़ प्यार से मेरे जीवन को कितना समृद्ध किया है। *कभी कभी हम उनके प्रति कृतज्ञता का भाव व्यक्त करने में कंजूसी कर देते हैं* , विश्वास मानिए जितना दिल खोल के हम दूसरों के अच्छे कामों की तारीफ करते हैं, हमारा जीवन उतना ही समृद्ध होता है।
*15 जून की सुबह के दो घंटों में मैंने अपना बचपन दोबारा जी लिया* ऐसा लग रहा था कि जिनका नाम लिख रहा हूं, वो सामने प्रगट होते जा रहे हैं, कई बार मोबाइल स्क्रीन गीली हुई, कुल मिलाकर, जो अनुभव हुआ है, शब्दों में बयां नहीं कर सकता। *कई साथियों ने मुझे व्यक्तिगत संदेश भेजा कि लेख पढ़ते पढ़ते, मेरे सामने से पूरा बचपन दोबारा गुजर गया , सारी यादें तरो ताजा हो उठीं* ।
आप सबके उत्साह वर्धन ने मेरी खुशी दो गुनी कर दी है। हम लोग प्रयास करते हैं कि ग्रुप में कम से कम संदेश आएं और किसी को असुविधा न हो, इसलिए *आप सभी के लिए मेरा प्यार, मेरा आभार, इसी संदेश में समाहित है* । आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद । आग्रह है कि आप भी अपने मनोभावों को जरूर लिखिए , हमसे साझा कीजिए।
*हम सब एक ही मिट्टी के बने हैं, इसलिए मेरी पंक्तियों में आपके मनोभावों की झलक मिलना अत्यंत स्वाभाविक है* 🙏
आपका दोस्त जनार्दन
सर आप का लेख पढ़ा और पाया कि मेरी कहानी भी कुछ ऐसे ही है, बहुत कुछ मिलती जुलती है वैसे भी ८० के दशक में जन्म लिए हर एक व्यक्ति का अनुभव अमूमन एक ही होंगे। सन् १९९२ में मैं भी अपने माता पिता से दूर गया और घर से निकलते वक़्त मां से दूर होने के गम के कारण आंसू भी निकले लेकिन जीप में बैठते वक़्त मां कि तरफ ना देखा गया, मां की याद बहुत आती थीं (हालांकि मेरे साथ मेरे ३ बड़े भाई रहते थे और उनके प्यार से मां की याद थोड़ी काम हो जाया करती थी), पिता जी की भी याद आती थी लेकिन अक्कसर ऐसा होता है कि हम पिताजी वाला थोड़ा छुपा के रखते हैं (ना जाने ऐसा क्यूं है).
जवाब देंहटाएंमें वैसे भी बहुत दुर्भाग्यशाली हूं में इतना दूर हूं कि मेरे सारे रिश्ते नाते बहुत दूर होगाए हैं। ना मामा जी ना मासी जी और ना बुआ जी के पास जा पाता हूं यह आधुनिकता की सच्चाई है पैसे कमाने की होड़ में सब पीछे छूट गए, साल में एक बार मां जी और पिता जी से मिल लेता हूं, छुट्टी ही नहीं मिलती छुट्टी का प्लान करो तो मैनेजर सहमति देने से पहले वापस आने की तारीख पूछता है, क्या करें पैसे भी बहुत जरूरी है इस भौतिक जीवन में बिना पैसा बच्चे ना मुंह देखना पसंद करें।
खैर यह मेरा एक्सक्यूज होसक्ता है, लेकिन आप के लेख को पढ़ने के बाद यह सोचा है कि इस बार मामा जी मासी जी और बुआ जी के पास जरूर जाऊंगा चाहे घंटे भर के लिए ही क्यूं ना हो।
धन्यवाद सर इस मार्मिक लेख के लिए।
हमें अपना कुछ समय अपने मित्रों व रिश्तेदारों के साथ जरूर बिताना चाहिए।विशेषकर बुजुर्गों से मिलते रहना चाहिए।
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