रविवार, जून 14, 2020

बी एस कुशराम: प्रकृति के दोहे




प्रकृति के दोहे
प्रकृति पुकारे आह्भर , चलो प्रकृति की ओर।
पेड़ लगा कर धरा को ,  हरित करें चहुँ ओर॥
मातु-पिता ये प्रकृति है , हमको सब कुछ देय।
हमसे मांगे कछु नहीं ना हमसे कछु लेय॥
जलः जंगल-जमीन ये , सभी प्रकृति के रूप।
इन्हें बचायें हम सभी , करें न इन्हें  कुरूप॥
प्रकृति सम्पदा सभी की , हम पर रक्षण भार।
कर्ज रूप में मांग फिर , चुकता करें उधार॥
प्रकृति सम्पदा बैंक है , जरुरत में लें कर्ज।
सूद सहित चुकता करें , हम सबका है फर्ज॥
जल संरक्षण कीजिए , वन- उपवन को सजाव।
धरा में जीवन धरा है ,इनका करें बचाव॥
दो बच्चों को पालिए , पालिय विटप हजार।
तरण तारिणी वृक्ष हैं , इनको रखो सम्हार॥
मानव जन अति लोभ वश , प्रकृति पे करता वार।
धरा पटल को चीरता , प्रकृति करे चीत्कार॥
प्रकृति का दोहन रोकने , हम सब करें विचार।
प्रकृति बची तो हम बचे , जो है जीवनाधार॥
प्रकृति से हम हमसे प्रकृति , मूल मंत्र ये जान।
प्रकृति सुरक्षित जब रही , तबै बचेंगे प्रान॥
प्रकृति प्रदूषण मुक्त हो , युक्ति से करना काम।
तभी चराचर बचेंगे , ये कहता कुशराम॥

बी एस कुशराम प्रभारी प्राचार्य

शासकीय हाई स्कूल बड़ी तुम्मी

[इस ब्लॉग में रचना प्रकाशन हेतु कृपया हमें 📳 akbs980@gmail.com पर इमेल करें अथवा ✆ 8982161035 नंबर पर व्हाट्सप करें, कृपया देखें-नियमावली

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कृपया रचना के संबंध अपनी टिप्पणी यहाँ दर्ज करें.