रविवार, मई 31, 2020

प्रकृति-प्रेम: राम सहोदर


खुद को समझदार कहते ही कहते तू।
बना रहा बेवकूफ पागल आवारा है।।
गलती तू करता रहा कभी सोचा नहीं तूने।
आबादी को रोका नहीं पाया पौबारा।।
संख्या बढ़ाया तूने प्रकृति तो है दोषी नहीं।
ऐश है कीन्हा तूने पौधों को रुलाया है।।
उद्योग व कारखाना स्वारथ में कीन्हें निर्मित।
केमिकल का गन्दा नाली नदी में बहाया है।।
पानी प्रदूषित कीन्हां जल चर बिनष्ट हुए।
इन्हीं के दुर्गंध से वायु भी नशाया है।।
रेलगाड़ी मोटरकार हित में बनाया अपने।
उड़ेल रहे धुआं आसमान मंडराया है।।
समय रहते सोच मानव अभी कुछ ही बिगड़ा है।
पेड़ लगाय प्रदूषण रोको निज परहित समाया है।।
प्रकृति को सहोदर मान रक्षा करो नित्य प्रति।
केमिकल उपयोग को न्यूनतम करबाया है।।
प्रतिकूल जलवायु उपयोग होगा तभी।
प्राणवायु शुद्धि वाले वृक्षों को लगाया है।।
दुर्गन्ध नाली रोको नदी जल को बचाना है।
सलिल न प्रदूषित हो जन कल्याण समाया है।।
रचनाकार:
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