(1)
साईं मन मौजी तू छोड़।
प्रकृति पिता है प्रकृति है माता नाता इनसे जोड़।
प्रकृति बन्धु है भ्रात सखा है प्रकृति बड़ा अनमोल॥
ये ही श्वास है ये ही आश हैं ये जीवन के मोल।
इनके बिन जीवन है कोरा, इनसे कटुता छोड़॥
जीवन में यदि सुख है चाहो सान्निध्य में इनके डोल।
पेड़ लगाय करो संरक्षण मैत्री भाव के बोल।
राख सहोदर भाव सदा ही प्यार करो दिल खोल॥
(2)
जल बिन जीवन जग में जीरो।
जल नहीं तो जलद नहीं, नहीं जलज जागीरो॥
न अनाज फल न ही अंकुर, न ही मिले पनीरो।
जल नहीं तो हल नहीं न शीतल मंद समीरो॥
जग में जीवन जीना चाहो, जतन बचाओ नीरो।
जल बिन कूलर पंखा एसी जल बिन नहीं शरीरो॥।
वृक्ष सहोदर तेरा भी है, है जल का भी हीरो।
समझ सोच समझाओ सबहीं, बन शाह अमीरो॥
रचनाकार:
उत्कृष्ट रचना
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