कोरोना
का कहर-देश बना समर
देख कोरोना का
कहर,
कांप उठा है गांव
शहर॥
बिन प्याला कंठ
लगाये,
बदन में विष फैलाये।
विदग्ध है मन देख
सन्नाटा,
बंद कर दिए सैर
सपाटा।
सोचो एक ही लाल
किसी का,
चला विषैला दीप
बुझा कर।
देख कोरोना
का कहर,
कांप उठा है गांव
शहर॥
दिन की खुशियाँ
रात का मातम,
बदल रहा है पहर-
पहर।
बिना पैर ही कदम
बढ़ाए,
कुचल रहा है नगर
नगर।
देख कोरोना का
कहर,
काँप उठा है गांव
शहर॥
कितने अभागे 'मां' से दूर
मांग से मिटे
कितने 'सिन्दूर'।
कोरोना के
बलि-वेदी में।
बाबा के सपने
चकनाचूर।
विपदा के इस कल्प
में,
बन जाए गरीबों का
नूर।
यत्किंचित उनका
भार उठाकर,
बन कर
देखे मददगार।
आज देश के धीर-
वीर भी,
विषाक्त रक्त की
धार प्रवर में।
"पर" कटे विहग
सा,
बहने को है वह
मजबूर।
विशालकाय किंतु
अदृश्य,
पिशाच मचा रहा है
हाहाकार।
देख कोरोना
का कहर,
काँप उठा
है गांव शहर॥
दारुण दु:ख के
महा प्रलय से,
समर के लिए हैं
हम तैयार ॥
मास्क और सामाजिक
दूरी का,
बना लिया है हमने
हथियार।
मौन चीत्कार खाई
सा गहर,
देख कोरोना का
कहर,
काँप उठा है गांव
शहर॥
रचनाकार
उच्च
माध्यमिक शिक्षक
शा.उ.माध्यमिक विद्यालय भाद जिला-अनूपपुर
- आपसे अनुरोध है कि कोरोना से बचने के सभी आवश्यक उपाय किये जाएँ।
- बहुत आवश्यक होने पर ही घर से बाहर जाएँ, मास्क का उपयोग करें और शारीरिक दूरी बनाये रखें।
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