शुक्रवार, मई 01, 2020

मजदूरों की श्रम साधना:मनोज कुमार चंद्रवंशी

*मजदूरों की श्रम साधना*
(कविता)

भोर काल में उठकर,
लग जाते हैं कामों मेंl
धरती मां की सेवा में,
जीवन तपती खलिहानों मेंll

श्रम साधना हमारा जीवन,
श्रम करते परोपकार मेंl
निज जीवन लगा रहता है,
भारत मां के उपकार मेंll

जग को हरा-भरा कर,
धरती मां को करते हैं खुशहालl
धन-धान्य से परिपूर्ण कर,
हम करते हैं मालामालll

हम भारत भूमि के सुत हैं,
इस धरती के सच्चे सपूतl
श्रम साधना हमारा जीवन,
मातृभूमि है जीवन का सबूतll

मरूभूमि को सिंचित करेंगे,
निज नयनों के नीरl
श्रम साधना से बदल देंगे,
इस मातृभूमि की तस्वीरll

त्याग समर्पण भाव से,
हम करेंगे धरती मां की सेवाl
श्रम साधना ही सच्ची पूजा,
हम इस धरती के श्रम देवाll

इस धरा को समतल करेंगे,
इस जीवन के रसतल मेंl
श्रम साधना जीवित है,
श्रमिकों के जीवन के बल मेंll

नित दिन हम श्रम करेंगे,
निज जीवन में नहीं मानेंगे हारl
धरा में फैलेगी हरीतिमा,
सर्वत्र गूंजेगी जय जयकारll

(मजदूर दिवस पर समर्पित)

रचनाकार
मनोज कुमार चंद्रवंशी (प्राथमिक शिक्षक) संकुल-खाटी
एम.ए.(भूगोल एवं अंग्रेजी साहित्य) MP SET, DOUBLE NET

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